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बिदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाएँ हो चुकीं हैं विकृत: मनोज सविता

चकरनगर(इटावा)रिपोर्टर:डॉ0एस0बी0एस0चौहान

“बोली एसी बोलिऐ जो कोई बोले जान, हीऐ तराजू तौल के तब मुख आन” यह बुद्धिजीवी का कथन है कि कोई भी शब्द मुंह से यदि निकाला जाए तो उसके भावों को नाप तौल सोच समझ कर निकालना चाहिए ताकि सामने वाले को, ऊपर नीचे तथा अगल बगल वाले को किसी प्रकार की कोई उलझन न हो लेकिन जब हम किसी बात के दौर में होते हैं या किसी शहर सपाट एम होते हैं तो फिर बिना सोचे समझे कुछ भी कह सकते हैं ज्यादा हुआ तो सॉरी कह कर बात को खत्म कर देने का प्रयत्न करते हैं दैनिक हिंदुस्तान समाचार पत्र की शीर्ष संपादकीय टेबल का यह मानना है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में जो भी शब्द मुद्रित किए जाएं वह शुद्ध हिंदी में या साधारण बोलचाल की भाषा में प्रचलित होना चाहिए जिससे सुधि पाठक को पाठक को समाचार पत्र के पढ़ने में और उसके भाव को ग्रहण करने में जरा सी भी तकलीफ न हो लेकिन अंग्रेजी शब्द का इस्तेमाल कदापि न किया जाए। फिर प्रचलन में यह बात नहीं ली जाती है जैसे कि किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति के द्वारा जो भी शब्द मुंह से निकल जाता है या लिखने में इस्तेमाल किया जाता है तो दूसरे बगैर कोई सोचे और समझे इस्तेमाल कर बैठते हैं। हमनें अक्सर देखा है कि किसी के भी मृत्यु की खबर जैसे ही आती है तो अधिकतर लोग RIP/Rip(रिप) लिखकर भेजने लगते हैं। आजकल सोशल मीडिया पर RIP का प्रयोग तो अच्छे अच्छे पढ़े लिखे लोग भी बिना इसके सही अर्थ को जाने बिना सही भाव को समझे करते हैं। एक दूसरे को देख के RIP(रिप) लिखने कहने की होड़ मानो एक कडी सी बन जाती है|
आखिरकार ये “RIP” है क्या ? इसकी बारे में आज तक किसी ने भी समझने का प्रयास नहीं किया है निरंतर उन्नयन की तरफ अग्रेसित प्रख्यात अखंड भारत के यू0पी0 हैड श्री मनोज सविता जी ने इस बात पर अपना ख्याल प्रसतुत करते हुए इस शब्द के इस्तेमाल और शब्द के अर्थ पर बारीकी से प्रकाश डाला है जो बाकई एक सराहनीय कदम है|श्री सविता जी का कहना हे कि
आजकल देखने में आया है कि किसी मृतात्मा के प्रति RIP लिखने का “फैशन” सा चल पड़ा है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि “कान्वेंटी दुष्प्रचार” तथा विदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाएँ या तो पता ही नहीं हैं, अथवा विकृत हो चुकीं हैं।
RIP शब्द का अर्थ होता है “Rest in Peace” (शान्ति से आराम करो) यह शब्द उनके लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया हो। क्योंकि ईसाई अथवा मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार जब कभी “जजमेंट डे” अथवा “क़यामत का दिन” आएगा, उस दिन कब्र में पड़े ये सभी मुर्दे पुनर्जीवित हो जाएँगे। अतः उनके लिए कहा गया है, कि उस क़यामत के दिन के इंतज़ार में “शान्ति से आराम करो”।लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शरीर नश्वर है, आत्मा अजर अमर है इसलिये हिन्दू शरीर को जला दिया जाता है, अतः उसके “Rest in Peace” का सवाल ही नहीं उठता। हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए काया/ शरीर में नवजात (पुनर्जन्म) के रुप में प्रवेश कर जाती है। उस आत्मा को अगली यात्रा हेतु गति प्रदान करने के लिए ही श्राद्धकर्म की परंपरा निर्वहन एवं शान्तिपाठ आयोजित किए जाते हैं।
अतः किसी हिन्दू मृतात्मा हेतु “विनम्र श्रद्धांजलि”, “श्रद्धांजलि”, “आत्मा को सदगति प्रदान करें” जैसे वाक्य विन्यास लिखे जाने चाहिए। जबकि किसी मुस्लिम अथवा ईसाई मित्र के परिजनों या यू कहा जाए कि जिस धर्म के अंतर्गत यह परंपरा है कि मृत आत्मा के बाद मृत शरीर को दफनाने की परंपरा है यानि जमीन में खोदकर गाडने की परंपरा है, की मृत्यु उपरांत उनके लिए “RIP” लिखा जा सकता है।होता भी यह है कि श्रद्धांजलि देते समय भी हम शॉर्टकट की आदत से हममें से कई लोग हिन्दू मृत्यु पर भी “RIP” ठोंक आते हैं। यह विशुद्ध “अज्ञान और जल्दबाजी” है, इसके अलावा कुछ नहीं। आज के समय में बहुत ऐसे शब्द हैं जो कि अंग्रेजी/आंगल भाषा से लिए गए हैं और उनका उपयोग हम लोग अपनी काबिलियत सिद्ध करने के लिए जी में आकर उल्टा-सीधा इस्तेमाल करते रहते हैं अंग्रेजी भाषा के प्रकांड विद्वान शेक्सपियर जी ने यह सोच कर कभी सपने में भी नहीं देखा होगा कि हमारे द्वारा रचित ग्रंथ से उठाए गए शब्दों का लोग बगैर सोचे समझे इस्तेमाल करेंगे। अब यह समझ लेना चाहिए कि जो शब्द हमारे मुंह से निकले या लेखन में लिखा जाए पर उसका इस्तेमाल और उस का भाव विशुद्ध होना चाहिए।

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