नालंदा/बिहारशरीफ (कुमार सौरभ) : इस बार की दिपावली पर मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ गई है लोग भारतीय संस्कृति व उसकी महत्ता को समझने व अपनाने को विवश हो रहे हैं। जहां एक ओर जहां चाइना के बने हुए दीये हमारे मनो मस्तिष्क पर छा गई है वहीं दुसरी तरफ भारत के गांव घर मे निर्मित मिटटी के दिये एक बार फिर से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हुए दिख रही है। इसे सिर्फ आर्कषण की दृष्टि से ही नही बल्कि राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति से भी देखा जा रहा है। आज के युवा जागरूक होने लगे हैं और वह यह मानने भी लगे हैं कि हमारे देश की आधी से अधिक कमाई चाईना को चला जाता है तो क्यों न हम इस दिपावली पर मिटटी के दीये जलाये और प्रदुषण दूर भगायें। दीवाली आते ही बाजारों मे चाईना मेड दीये सज चुकी है लेकिन अभी तक खरीदारों की उदासीनता देखी जा रही है। वही मिट्टी के बने विभिन्न वेरायटी के दीये छाये हुए हैं। इस बार की स्थिति कुछ और ही है मिटटी के दीये की तुलना मे इलेक्ट्रोनिक दीये की मांग बहुत ही कम हो गई है इससे दुकानदारों मे मायुसी छायी हुई है। दुकानदारों का कहना है कि पहले रंग बिरंगे इलेक्ट्रोनिक दीये की खुब मांग थी। इस बार इन दीयांे की पसंद ना पसंद मे बदल गई है। इस बार लोगों मे एक अजीब तरह के बदलाव देखे जा रहे हैं। चाइनिज दीयों के स्थान पर मिटटी के दीये की बिक्री काफी बढ़ गई है। लोगों का कहना है कि मिटटी के दीपक के प्रयोग से घर के आसपास के किटाणुओं का सफाया हो जाता है जिससे हम निरोग रहते हैं। चाइनिज दीयो के चकाचैंध ने हमारी आंखें चैधिया दी थी अब हम जाग चुके हैं। इस दीवाली पर हम मिटटी के दीपक जलायेगें और आर्थिक आजादी पुनः वापस लायेगे।
नोट: इस खबर के साथ फाटो संख्या 5 है। दीया बनाती हुई लड़की।
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