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तफ्तीश :: अद्भुत नवजात जिसके जन्म का समय ही नहीं

डेस्क : जी हाँ ये घटना है, सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमंत्री​ श्री नितीश कुमार जी के राज्य की यानि बिहार प्रदेश। बिहार प्रदेश जो हमेशा ही अपने कारनामों के कारण सुर्खियों में रहता है। लालू यादव जो इंटरनेशनल हीरो हैं और बिहार के नाम को विश्व पटल पर लाने वाले।आखिरकार उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य​ मंत्री इतने बड़े शिक्षाविद् जो हैं।

बिहार के आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले शहर मुजफ्फरपुर अपनी डाक्टरी एवं स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये भी खूब जाना जाता है। अक्सर अखबारों में बच्चे बदलने, गलत ईलाज करने जैसे मामले नज़र आते हैं। ऐसा हीं मामला नज़र आया शहर के एक बड़े नामी गिरामी डॉक्टर के हॉस्पिटल में। जहाँ नवजात के जन्म का समय हीं नहीं पता चलता है। डॉक्टर साहिबा जच्चा को प्रसव पीड़ा से तड़पाने के बाद सामान्य प्रक्रिया से जटिल बनाने में अपना सर्वस्व झोंक देती हैं ताकि जच्चा के घरवालों से मनमाना पैसा वसूल सकें। ऐसा हीं वाकिया सामने आया जब जच्चा आकांक्षा (बदला हुआ नाम) 03 जून 2017 को रात्रि में डॉक्टर के देखरेख में आ गई और 04 जून 2017 के सुबह लगभग 06:00 बजे जच्चा को प्रसव् पीड़ा होने लगी। डॉक्टर ने बताया कि सब ठीक है! जच्चा और बच्चा दोनों ठीक हैं जो पीड़ा सुबह 06:00 बजे शुरु हुई थी उसे लगभग 7 से 8 घंटे बीत गए थें। जब पीड़ा हद से पार हो गया और परिजन बार-बार सामान्य प्रसव कराने का आग्रह करते रहें तब डॉक्टर टालती रही। अंत में जब जच्चा की हालत ख़राब होने लगी तो डॉक्टर ने आनन्-फानन में ऑपरेशन करने की बात कही। डॉक्टर साहिबा ने खतरे को भांप लिया था और अपनी गलती छुपाने के लिए आनन्-फानन में जटिल ऑपरेशन करने का फैसला किया। 

पीड़िता एवं परिजनों से बात करने से पता चला कि नवजात के जन्म होने पर नवजात के रोने की आवाज़ नहीं आ रही थी। डॉक्टर और उनके सहयोगियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रहीं थी। बच्चा दर्द के कारण नीला पर गया था माँ का भी बुरा हाल था। परिजनों के हस्तक्षेप करने पर डॉक्टर ने पहले कहा कि बच्चा ठीक है! मामला हाथों से निकलता देख डॉक्टर ने बच्चे को कमजोर बताया और शिशु रोग विशेषज्ञ से इलाज की बात कही। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के ऑपरेशन रूम में उपलब्ध थें। शिशु रोग विशेषज्ञ ने अपनी मोटी फ़ीस वसूलने के बाद हीं ईलाज शुरू किया। शिशु रोग विशेषज्ञ ने कुछ समय बिताने के बाद जब मामला हाथ से निकलता देखा तो शिशु के डॉक्टर ने बड़े अस्पताल भेजने की बात कही और दूसरे डॉक्टर का नाम लिख के एम्बुलेंस मंगवा कर नवजात को भेज दिया। जहाँ आनाकानी के बाद हॉस्पिटल में नवजात को भर्ती किया। अब नवजात का प्राथमिक उपचार शुरू होने के बाद डॉक्टर दूसरे डॉक्टर की तरफदारी करने लगे और डक्टरों की गलती पर पर्दा डालने लगें।

बच्चे को अस्पताल में भर्ती करने के बाद जब बच्चे के जन्म का समय पूछा गया तो डॉक्टर समय बताने में असमर्थ दिखें और एक मानक समय दे दिया गया। परिजनों की मानें तो बच्चे के जन्म के बाद परिजन जच्चा-बच्चा के बारे में जानने के लिए बेचैन थें तभी बच्चा परिजनों को दिखा तब समय था 05:39 PM डॉक्टर के अनुसार जन्म समय था 05:45 PM।

अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अस्पताल के एक कर्मचारी ने बताया कि अस्पताल में ज्यादातर मरीजों के साथ यही होता है और ज्यादा पैसे वसूलने के लिये डॉक्टर ऐसा करते हैं।

टीम स्वर्णिम के तफ्तीश् के बाद कुछ महत्वपूर्ण सवाल सामने आए हैं।

1 प्रसूति रोग विशेषज्ञों​ के रिपोर्ट देखने के अनुसार सामान्य प्रसूति की पूरी उम्मीद थी और पीड़िता ने प्रसव् के पहले डॉक्टरों के मुंह से सामान्य प्रसव् के घबराहट भरे बातों को सुना।
क्या डॉक्टर पैसे के लिए जच्चा एवं बच्चे के जान से भी खेल सकते हैं ?
2 डॉक्टर साहिबा को प्रसव् करवाने के वक़्त समय का ख्याल नहीं रहता है। प्रसव् के वक़्त डॉक्टर के साथ अन्य कई सहयोगी और भी रहते हैं
क्या डॉक्टर को प्रसव् समय जन्म प्रमाण पत्र पर लिखना मानवाधिकार नहीं समझ आता? प्रसव् करवाने वाली डॉक्टर को प्रसव् के वक़्त नींद तो नहीं आ गई थी?

यह परिस्थिति केवल एक अस्पताल की नहीं है बल्कि कमोबेश सभी डॉक्टर ऐसा हीं करतें हैं। मगर इन समस्याओं की सुध लेने की फुरसत न तो ज़िला प्रशासन को है न हीं ज़िला चिकित्सा पदाधिकारी को… आखिर वसूली का एक हिस्सा इनको भी तो मिलता है।

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