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विशेष :: अलविदा जुम्मे की नमाज अदा, इस्लाम मजहब का सबसे पवित्र माह है रमजान

डेस्क : इस्लाम मजहब के सबसे पवित्र माह रमजान में अलविदा(आखिरी) जुम्मे की मोमिनो ने की अदा नमाज, अल्लाह कि बारगाह मे अपने गुनाहों कि दुआएं मगफिरत मांगी।

रमजान माह के शुरू होने के साथ ही आखरी पखवाड़े मे प्रवेश के साथ ही अलविदा जुम्मे के मुबारक मौके पर शहर की जामा मस्जिद, छोटी मस्जिद, बड़ी मस्जिद में मोमिनो ने नमाज अदा की, शहर के अलावा आसपास के शीशो,रसलपुर, जोरजा,पीरड़ी सहित गांवो के लोगों ने सवेरे से ही मस्जिदों में आना शुरू कर दिया था, दोपहर में सभी मस्जिदों में जुम्मे की नमाज के लिए इकठ्ठा हुए |

जामा मस्जिद के मौलाना ने रमजान माह का आखरी खुत्बा पढ़ा और नमाज अदा करवाई। इस मौके पर उन्होंने सभी को रमाजान माह की नेकी के बारे में बताया, उन्होनें कहा कि रमाजान का आखरी पखवाड़ी शुरू हो गया है, अल्लाह तबारको ताअला ने अपनी हदीस मुबारक में फरमाया है कि रमजान के आखरी पखवाड़े में ज्यादा से ज्यादा गरीब मिस्कीनो की मद्द करें , अपने गुनाहों की माफी मांगे व इस पाक महीने में अल्लाह की इबादत करके अपने गुनाहों से तौबा करने को कहा, नमाज के बाद अलविदा सलातो सलाम पड़ी गई व अल्लाह की बारगाह मे अपने व देश की खुशहाली के लिए दुआए मांगी।

रमजान के आखरी जुम्मे अलविदा की अपनी अलग ही फजीलत है। उलेमाओं के मुताबिक, इस जुम्मे में रमजान के अन्य जुम्मों के मुकाबले अधिक सवाब मिलता है। अलविदा जुम्मा का अपना अलग ही मुकाम है।
अलविदा को लेकर मुस्लिम खासे उत्साहित हैं। रमजान में चार जुम्मे होते हैं। आखरी जुमा अलविदा कहलाता है। इस जुम्मे के बाद रमजान का मुबारक महिना पूरा हो जाता है। मुस्लिम इदुलफितर मनाते हैं। आज अलविदा जुम्मा होगा। इसको लेकर मस्जिदों को सजाया गया है। नगर एवं देहात की मस्जिदों में अन्य दिनों के मुकाबले कुछ देर से नमाजे अता की। यह सिलसिला सवा बजे से लेकर ढाई बजे तक चली। नमाजे जुम्मा में अलविदा जुम्मे की फजीलतें ब्यां होने के साथ साथ जानमाल का सदका, जकात देने पर भी जोर दिया जाएगा। रमजान के हर जुमे का अपना अलग महत्व है। रमजान में शबे कद्र का भी विशेष महत्व होता है। रमजान की पांच रातें शबे कद्र की होती है। खास बात ये है कि इस माह में कुरान मुकम्मल हुआ था। रमजान की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं रातें शबे कद्र की कहलाती हैं। मौलाना ने बताया कि रमजान माह के आखरी रातों में शबे कद्र को तलाशा जाता है। शबे कद्र की रात को नमाज अदा करने ओर कुरआन पढ़ने का हुक्म दिया गया । बताया गया है कि शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर रात है। इस रात में फरिश्तें जमीन पर उतरते हैं। पैगम्बर हजरत मोहम्मद (स.अ.व.) ने शबे कद्र के बारे में कहा कि ‘ऐ लोगों, तुम पर एक बड़ा शान का महीना आने वाला है, जिसमे एक रात कद्र की होगी। वह रात हजार महीनों से अधिक अव्वल है।’ इस महीने में रात को नमाज को खड़े रहने को और अल्लाह की इबादत को पसंद किया गया है। अल्लाह ने कुरान मजीद को शबे कद्र में उतार कर एहसान किया है। उन्होंने कहा है कि इस रात को इबादत करने पर बड़ा सवाब (पुण्य) हासिल होगा। लिहाजा हर मुसलमान को शबे कद्र की रात को इबादत करने से नहीं चूकना चाहिए।

 

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