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महिला दिवस विशेष :: कड़वी सच्चाई बिहार की 83% महिलाओं की विवशता का

उ.सं.डेस्क : महिला दिवस के अवसर पर आपको एक कड़वी सच्चाई से रूबरू करवा रहे हैं जो बिहार की महिलाओं की विवशता है और राज्य सरकार पर तमाचा है। इस कड़वी सच्चाई से समझ आता है कि माहवारी के मसले पर बिहार का समाज आज भी किस दौर में जी रहा है व महिलाएं किन-किन परेशानियों का सामना कर रही हैं. गरीबी और जागरूकता के अभाव में ज्यादातर महिलाएं माहवारी के दौरान खून सोखने के लिए गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. लोकलाज की वजह से उन्हें छिपा कर रखती हैं, जिससे वह पूरी तरह रोगमुक्त नहीं हो पाता. एक ही कपड़े को बार-बार इस्तेमाल करती हैं. गरीब तबके की महिलाओं के पास पैड बदलने के लिए जगह नहीं है. कई महिलाओं के पास तो सूती कपड़ा भी उपलब्ध नहीं होता. इस संबंध में यूनिसेफ द्वारा कराये गये एक सर्वे के मुताबिक बिहार की 17 फीसदी किशोरियों ने ही कभी न कभी सेनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल किया है.

शेष लड़कियां कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं. इनमें से 96 फीसदी लड़कियां पुराने कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, 28 फीसदी लड़कियां इस्तेमाल से पहले इन कपड़ों को साफ नहीं करती हैं. 75 फीसदी लड़कियों को नहीं मालूम माहवारी के दौरान इस्तेमाल होने वाले कपड़े को अच्छी तरह धोकर सुखाना चाहिए. वहीं एक अन्य संस्था सेवा द्वारा कराये गये सर्वे के मुताबिक 83 फीसदी महिलाएं माहवारी के एक चक्र में एक ही कपड़े को तीन बार इस्तेमाल करती हैं. 38 फीसदी महिलाओं के पास कपड़े बदलने के लिए निजी स्थान नहीं है. और 20 फीसदी महिलाएं दिन में दो बार कपड़े को नहीं बदलतीं.

मधुबनी जिले की एक महिला पेट दर्द से काफी परेशान थी. स्थानीय डॉक्टरों से दिखाया तो बताया गया कि यूटरस में कुछ है. उसे पटना रेफर कर दिया गया. यहां जांच में पता चला कि उसके यूटरस में कनखजूरे का एक बड़ा गुच्छा है. डॉक्टरों ने ऑपरेट करके उसे बाहर निकाला. पूछताछ के दौरान महिला ने बताया कि वह माहवारी में इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा गोबर के गोयठे पर सुखाती थी. डॉक्टरों की राय बनी की संभवतः उसे कपड़े के जरिये कनखजूरा उस महिला के शरीर में चला गया.

पटना के मसौढ़ी की एक महिला माहवारी के दौरान कपड़े बदलने का काम भी उसी वक्त करती थी। जब वह रात में शौच के लिए खेतों में जाती थी. उसके घर में न स्नानगृह है और न ही शौचालय. एक दिन माहवारी वाला कपड़ा बदलते वक्त अंधेरे में कोई कीड़ा उसके शरीर में प्रवेश कर गया. फिर अगले छह माह तक उसे माहवारी नहीं हुई. पहले तो डॉक्टरों ने उसके गर्भवती होने का अंदेशा जताया. मगर अल्ट्रासाउंड में कुछ नहीं निकला तो उसे पटना ले जाना पड़ा. वहां ऑपरेशन करके कीड़े को बाहर निकाला गया.

इस दौरान वह बुरी तरह एनीमिक हो गयी थी. दो साल पहले हुई उस घटना उक्त महिला आज तक उबर नहीं पायी है. अभी भी वह बिस्तर पर है.माहवारी से जुड़ीं भ्रांतियां, जो सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं

महिलाएं मानती हैं कि माहवारी वाला कपड़ा धूप में सुखाने से बचना चाहिये, अगर पुरुष इस कपड़े को देख ले तो महिला बांझ हो जाती है. माना जाता है कि इस कपड़े को बहते पानी में नहीं धोना चाहिये. इससे ब्लीडिंग बढ़ जाता है और माहवारी के दौरान तेज दर्द होता है.

इस दौरान नेल पालिस और अचार को नहीं छूना चाहिये, नेल पालिस सूख जाता है और अचार में फफूंद लग जाता है. पौधों को पानी नहीं देना चाहिये, पौधा मुरझा जाता है. पूजापाठ और खाना पकाने पर तो पहले से ही रोक रहती है, बाल धोने, बांधने और कई समाज में कंघी करने की भी मनाही रहती है.

स्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ कहती हैं कि पुराने, गंदे व दुबारा इस्तेमाल किये गये कपड़े को इस्तेमाल करने से कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं. जैसे यूरिन में इन्फेक्शन, प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन. अगर इन्फेक्शन ऊपर की तरफ बढ़ता है तो इस वजह बांझपन का खतरा भी हो सकता है. इसलिए माहवारी के दौरान सेनेटरी नेपकीन ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. बाजार में हर तरह के नैपकीन उपलब्ध हैं.

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