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स्वर्णिम विशेष :: प्राइवेट स्कूलों ने विद्या के मंदिर को बनाया लक्ष्मी का मंदिर, सरकार और प्रशासन के नाक के नीचे जारी है अवैध वसूली

उ.सं. डेस्क : सरकार और प्रशासन के नियम ताक पर रखकर निजी स्कूल फीस वसूलने में जुटे हैं। हर सत्र में फीस बढ़ाना इन विद्यालयों की परंपरा बन चुकी है । साथ ही कंप्यूटर, बिल्डिंग जैसे शुल्क, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी के नाम पर बड़ी रकम वसूली जाती है। आज भी हमारे देश में हर वर्ष लाखों बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते हैं। उसमें अभिभावकों की लापरवाही या फिर स्कूल संचालकों की मनमाने तरीके से अधिक फीस होने के कारण अभिभावकों की मजबूरी भी हो सकती है। क्योंकि निजी स्कूल संचालक तो खुद ही अपने नियम बनाकर शिक्षा के नाम पर अवैध वसूली कर रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों ने विद्या के मंदिर को लक्ष्मी का मंदिर बना रखा है, जहां बच्चों की पढ़ाई के एवज मे माता-पिता से उनकी गाढ़ी कमाई लूट ली जाती है. प्राइवेट स्कूल पैसे उगाहने का वो जरिया बन गए हैं जो प्रशासन के नाक के नीचे आसानी से फल फूल रहा है.

प्राइवेट स्कूलों मे एडमिशन लेना किसी जद्दोजहद से कम नहीं होता पर एडमिशन लेने के बाद भी पैरेंट्स की परेशानियां कम होने का नाम नहीं लेती. अगर पैरेंट्स की माने तो प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि की समस्या समेत जबतब पैसे वसूलने का काम धंधा सा बन गया है.

अभिभावकों के अनुसार आए दिन स्कूलों की फीस मनमाने ढंग से बढ़ा दी जाती है जो पैरेंट्स के बजट को बिगाड़ देती है.पैरेंट्स का कहना है की स्कूल प्रशासन आए दिन अपनी मनमानी करता रहता है.उनकी हर जायज़ या नाजायज मांग को पूरा करना पैरेंट्स की मजबूरी बन जाती है.सिर्फ इतना ही नहीं स्कूल द्वारा स्टूडेंट्स पर भी वसूली को लेकर मानसिक दवाब बनाया जाता है.कुल मिला कर ये कहा जाए की अगर आप अपनी जमा पूंजी का एक बड़ा हिस्सा इन स्कूल्स को चढ़ावा देने को तैयार है तभी स्कूल्स के दरवाजे आपके लिए खुले हैं.

बुकसेलरों से ले रहे 50-60 प्रतिशत तक कमीशन

निरंकुश निजी स्कूल संचालकों ने अपने स्वयं के नियम बनाकर विद्यालयों को शिक्षा की दुकान बनाकर अवैध वसूली करना शुरू कर दिया है। ये निजी संचालक अभिभावकों से स्कूल में हर तरह की सुविधाओं का वादा करके उनकी जेब को हल्का कर रहे हैं। सभी निजी स्कूलों द्वारा अपने स्कूल के कोर्स भी एक निश्चित बुकसेलर पर ही बिकवाये जाते हैं और उस कोर्स पर 50 से 60 प्रतिशित तक कमीशन खुद ही लेते हैं। ऐसे माहौल में गरीब तबके का अभिभावक अपने बच्चों को उचित शिक्षा कैसे दिलाये। यही कारण हैं कि हर चाय की दुकान से लेकर ढाबा एवं किराना आदि की दुकानों पर छोटू या पप्पू मिल जायेगा।

क्या है आरटीई या शिक्षा का अधिकार

01 अप्रैल 2010 को आरटीई यानि राईट टू ऐजूकेशन अर्थात शिक्षा का अधिकार एकसाथ देशभर में लागू किया गया था। पहली कक्षा से आठवीं तक इसके तहत बच्चों को मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है। इस अधिकार के तहत 06 वर्ष से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को अपने आसपास के प्रत्यके स्कूल में दाखिला का अधिकार होगा, चाहे वो स्कूल सरकारी हो या गैर सरकारी या अन्य। इस नियम के तहत गैर सरकारी, निजी या अन्य किसी भी स्कूल में 25 फीसदी सीटें गरीब वर्ग के बच्चों को मुफ्त में मुहैया करानी होंगी। इसके तहत जो गरीब बच्चा निजी या कान्वेंट स्कूल में दाखिला लेते हैं, उनकी सूची प्राप्त होने पर राज्य सरकार उन्हें पैसों का नियमानुसार भुगतान करती है।

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