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गरीब बच्चों में शिक्षा के जरिये बदलाव ला रहे आनंद ने विदेश की 24 प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में चयनित होकर बनाया कीर्तिमान

आनंद कृष्ण मिश्रा को मिली एक करोड़ 20 लाख एक हजार अमेरिकी डॉलर की छात्रवृत्ति


लखनऊ । राजधानी लखनऊ में कानपुर रोड स्थित सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के बहुमुखी प्रतिभा के धनी और मेधावी छात्र आनंद कृष्ण मिश्रा को अमेरिका की प्रतिष्ठित टेक्सास क्रिशिचयन यूनिवर्सिटी में एक लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर की छात्रवृत्ति ( स्कॉलरशिप ) के साथ चयनित किया है । इसके साथ ही 4 अन्य प्रमुख यूनिवर्सिटी ने एक लाख 32 हजार , एक लाख 20 हजार , एक लाख 6 हजार , एक लाख की स्कॉलरशिप देकर आनंद का चयन किया है । आनंद को विदेश की कई प्रमुख यूनिवर्सिटी से कुल 1 करोड़ 20 लाख 1 हजार अमेरिकी डॉलर की छात्रवृत्ति ( स्कॉलरशिप ) प्रदान की गई है । यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन , यूनिवर्सिटी ऑफ टेरेंटो , यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया , ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी , यूनिवर्सिटी ऑफ एरीजोना , यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा सहित विदेश के 24 अन्य प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय में आनंद कृष्ण मिश्रा ने चयनित होकर कीर्तिमान बनाया है। सिटी मॉन्टेसरी स्कूल के संस्थापक डॉ. जगदीश गाँधी , भारती गाँधी एवम कानपुर रोड की सीनियर प्रिंसिपल डॉ. विनीता कामरान ने आनंद को बधाई देते हुए उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की है । उत्तर प्रदेश सरकार में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री एवं यू पी सी एल डी एफ के चेयरमैन वीरेन्द्र तिवारी ने आनंद को बधाई व शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आगे चलकर आनंद अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर अपने माता – पिता के साथ ही विश्वपटल पर भारत का मान सम्मान व गौरव बढायेगा । आनंद के पिता अनूप मिश्रा अपूर्व और माँ रीना पाण्डेय उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के पद पर राजधानी लखनऊ में कार्यरत्त हैं ।

आनंद ने गणित , साइंस , अंग्रेजी सहित कई विषयों के ओलंपियाड में 12 गोल्ड , 1 सिल्वर , 6 ब्रॉन्ज मैडल प्राप्त किया है । राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक प्रतियोगिताओं में भी आनंद ने अपनी कामयाबी का परचम लहराया है , इंटरनेशनल यूथ मथेमैटीसियन कन्वेंशन 2018 में ब्रॉन्ज मैडल , मेथाबोला इवेंट में गोल्ड मैडल , इंडिया इनोवेशन लीग द्वारा आयोजित डिजान स्प्रिंट चैलेंज में विनर , इसकोलास्टिका इंटरनेशनल मैथेमैटिक्स सबमिट में द्वितीय पुरुस्कार ( सिल्वर मेडल) प्राप्त किया है । कोरोना संकट काल में आनंद ने देश विदेश की कई प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से ऑनलाइन प्रोफेशनल कोर्स करके 100 से अधिक प्रमाण पत्र व मैडल हासिल किये हैं ।
पढ़ाई में अव्वल रहने वाले आनंद कृष्ण मिश्रा का सपना है कि देश में कोई भी बच्चा निरक्षर न रहे , इसलिए उसने बचपन से ही पढ़ाई लिखाई से वंचित हो रहे बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने का बीड़ा उठाया और बाल चौपाल परिवार की नींव रखी। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के करीब 180 से अधिक गांवों के न जाने कितने बच्चे आज इस ‘ छोटे मास्टर जी आनंद ’ और ‘ बाल चौपाल ’ के सतत प्रयासों के कारण शिक्षित होने में कामयाब हो रहे हैं। आनंद ने वर्ष 2012 में झुग्गियों में रहकर जीवन व्यतीत करने वाले कमजोर वर्ग के बच्चों को साक्षर बनाने के लिये प्रयास शुरू किया जिसने कुछ समय बाद ” बाल चौपाल ” का व्यापक रूप ले लिया। आनंद प्रतिदिन अपनी व्यस्त दिनचर्या में से एक घंटा निकालते और सूरज ढ़लते ही छोटे मास्टर जी के रूप में अपनी हमउम्र बच्चों को बाल चौपाल में अंग्रेजी , हिंदी , गणित, कंप्यूटर और सामान्य ज्ञान का पाठ पढ़ाते । पिछले 10 वर्षों में आनंद अपनी बाल चौपाल पेप टॉक के माध्यम से करीब 50000 से अधिक कमज़ोर वर्ग के बच्चों को स्कूल जाने के लिये प्रेरित कर चुके हैं , साथ ही बाल चौपाल के प्रयास से 858 बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाया है । अपनी इस बाल चौपाल में आनंद बच्चों को पढ़ाने के अलावा उनकी मनोदशा और माहौल के बारे में भी जानने का प्रयास करते हैं ।

आनंद के पिता अनूप मिश्रा अपूर्व और माँ रीना पांडेय दोनों ही उनके इस अभियान में पूरा सहयोग देते हैं। आनंद अपने खाली समय में लोगों को पर्यावरण की अहमियत के बारे में जागरुक करने के साथ-साथ पौधारोपण के लिये लोगों को प्रेरित भी करते हैं।
आनंद के माता – पिता बताते हैं , ‘‘ प्रारंभ में आनंद ने बातचीत करके अभावग्रस्त बच्चों को पढ़ने के लिये तैयार किया , धीरे-धीरे समय के साथ इनसे पढ़ने वाले बच्चों को मजा आने लगा और वे अपने दोस्तों को भी आनंद के पास पढ़ने के लिये लाने लगे। इस प्रकार ‘बाल चौपाल’ की नींव पड़ी।’’
लखनऊ के सिटी मांटसरी स्कूल एल.डी .ए ब्रांच में पढ़ने वाला आनंद रोजाना सुबह-सवेरे उठकर अपनी खुद की पढ़ाई के लिये स्कूल जाता स्कूल से लौटने के बाद शाम के पांच बजते ही वह अपनी ‘बाल चौपाल’ लगाने के लिये घर से निकल पड़ता । आनंद कहते हैं, ‘‘मैं बच्चों को पढ़ाने के लिये खेल-खेल में शिक्षा देने का तरीका अपनाता हूँ। मैं रोचक कहानियों और शैक्षणिक खेलों के माध्यम से उन्हें जानकारी देने का प्रयास करता हूँ ताकि पढ़ाई में उनकी रुची बनी रहे और उन्हें बोरियत महसूस न हो। मुझे लगता है कि इन बच्चों को कई कारणों से स्कूल जाने का अवसर नहीं मिल पाता है इसलिये वे पढ़ने नहीं जा पाते हैं। ’’
ऐसा नहीं है कि आनंद अपनी इस बाल चौपाल में बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान ही देते हैं। वे अपने पास आने वाले बच्चों के भीतर देशभक्ति का जज्बा जगाने के अलावा उन्हें एक बेहतर इंसान बननेे के लिये भी प्रेरित करते हैं।

आनंद को अपनी इस बाल चौपाल के लिये भूटान के पूर्व शिक्षा मंत्री ठाकुर एस0 पोड़ियाल द्वारा वर्ष 2019 में एल0एम0ए0 अवॉर्ड , उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री माननीय हरीश रावत द्वारा वर्ष 2015 में यूथ आइकॉन अवार्ड से सम्मानित किया गया । इंटरनेशनल यूथ फेस्टीवल 2015 में बाल चौपाल सरोकार के लिये गोल्ड मैडल और आइकॉन अवार्ड से सम्मानित किया गया । इंटरनेशनल चिल्ड्रेन पीस अवॉर्ड के लिये 3 बार भारत से नामित किया गया है । अब तक आनंद को चेंजमेकर , सोशल ब्रेवरी , सत्यपथ बाल रत्न ,सेवा रत्न , ग्रीन कॉम्बेट के अलावा सैकड़ों अन्य पुरस्कार भी मिल चुके हैं। आनंद के विचार में जो बच्चा पढ़ता ना हो स्कूल ना जाता हो यदि उनके प्रयास से वह पढ़ने लगे स्कूल जाने लगे तो इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं । आनंद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा देने के अलावा विभिन्न स्थानों पर उनके लिये पुस्तकालय खोलने के प्रयास भी करते हैं और अबतक कुछ स्थानों पर जन सहयोग से कुछ पुस्तकालय खोलने में सफल भी हुए हैं। आनंद अब अपने इस अभियान को और आगे बढ़ाने के प्रयासों में हैं और वे इन प्रयासों में लगे हुए हैं कि बोर्ड की परीक्षाओं में टाॅप करने वाले या अन्य मेधावी छात्र इस अभियान में उनके साथी बनें और गरीब बच्चों को शिक्षित करने में उनकी मदद करें।
आनंद प्रतिदिन आस पास के ग्रामीण इलाकों और कच्ची बस्तियों के करीब 100 बच्चों को पढ़ाते हैं। हालांकि परीक्षा के दिनों में उन्हें अपनी इस जिम्मेदारी को कुछ समय के लिये अपने दूसरे साथियों के भरोसे छोड़ना पड़ता है लेकिन उनके साथी उन्हें निराश नहीं करते हैं। आनंद इन बच्चों की मदद के लिये लोगों से अपील करते हुए कहते हैं कि सच मानिए आपका यह छोटा सा प्रयास गरीब बच्चों की जिंदगी में बदलाव ला रहा है , पेंसिल के माध्यम से इन बच्चों को ‘अ ’ से अंधकार को मिटाकर ‘ ज्ञ ’ से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला है।’’

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