पटना/दरभंगा (संजय कुमार मुनचुन) : अमर सुहाग की कामना को लेकर सुहागिन द्वारा वटवृक्ष की पूजा जगह जगह की गई।
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सुहागन महिलाओं ने अपने पति के स्वस्थ्य और दीर्घायु जीवन के लिए शुक्रवार को श्रद्धा और उल्लास के साथ वट सावित्री व्रत किया ।
स्नान ध्यान के बाद सुहागिन नए वस्त्र धारण कर हाथों में पूजा की थाली लिए टोली की शक्ल में वट वृक्ष के नीचे पहुंची। जहां जल, रोली, चावल, सिंदूर, हल्दी, गुड़, भींगा चना, मटर, फल व प्रसाद से विधि-विधान पूर्वक सावित्री तथा सत्यावान की पूजा अर्चना की।
पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री का व्रत रखा। वट वृक्ष के समीप सावित्री की पूजा किया। सावित्री व सत्यवान की कथा सुनी। उसके बाद महिलाएं वट वृक्ष के तना में 108 बार कच्चा सुत लपेटकर अमर सुहाग की कामना करेंगी।
बरगद के पेड़ों के नीचे परिक्रमा किया और पंडित जी द्वारा कहे जाने वाली कथा भी सुनी। शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी बरगद के पेड़ों तक पहुंचकर भारी भीड़ के बीच सुहागिन महिलाओं ने पूजा की। इस दौरान उन्हें लॉक डाउन के तहत शारीरिक दूरी के नियम का भी ख्याल नहीं रहा।
वहीं दूसरी ओर जिन सुहागिन महिलाओं को कोरोना का डर था वे अपने-अपने घरों में ही वट वृक्ष की डाली के साथ पूजा अर्चना कर पति के लंबी उम्र के साथ सुख-शांति और समृध्दि की मंगल कामना की।
गौरतलब है कि सनातन धर्म में पति को परमेश्वर का दूसरा रूप माना गया है। प्रत्येक स्त्री का कामना होता है कि वह सुहागन रहे। स्वयं कोई कष्ट हो पर पति दीर्घायु और स्वस्थ हो। इसी कामना का व्रत है वटसावित्री ।
पतिव्रता स्त्री में इतनी ताकत होती है कि वह यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ला सकती है। वहीं सास-ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की सीख भी इस पर्व से मिलती है।
ईश्वर से पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और उन्नति और संतान प्राप्ति की कामना की गई। वट सावित्री पूजा का सुहागिनों के लिए विशेष महत्व होता है।
वट सावित्री पूजा ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को मनायी जाती है। ऋषिकेश पंचांग के अनुसार इस बार अमावस्या तिथि 21 मई की रात 9.16 बजे से आरंभ होकर सुप्रभात को रात्रि 10.36 बजे तक है।