डेस्क : पितृपक्ष के उपरांत आने वाले आश्विन शुक्ल पक्ष को देवी पक्ष कहा जाता है। देवी पक्ष अर्थात आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक का अंतराल शारदीय नवरात्र कहलाता है। शास्त्रीय मान्यतानुसार शारदीय नवरात्र में जगत जननी माता भगवती की साधना व आराधना से सर्व सिद्घि एवं सर्व मनोभिलषित फल की प्राप्ति होती है। इस बार शारदीय नवरात्र बुधवार 10 अक्टूबर से प्रारम्भ होकर गुरुवार 18 अक्टूबर तक रहेगा। दशहरा यानि विजयादशमी का पावन पर्व शुक्रवार 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसबार नवरात्र व्रत 9 दिनों का है।
ज्योतिषाचार्य केअनुसार काशी एवं दरभंगा के विश्वविद्यालय पंचांगों तथा काशी के अन्य पंचांगों के अनुसार इस बार भगवती दुर्गा का आगमन नौका पर हो रहा है। प्रस्थान में मतांतर है। काशी ऋषिकेश पंचाग व विश्व पंचाग से माता का गमन नर पर जबकि मिथिला विश्वविद्यालय पंचाग व काशी के महावीर पंचांग से माता का गमन गज पर होगा। माता का नौका पर आगमन एवं नर या गज पर गमन सभी शुभ फल प्रदायक हैं। बंगला पंचांग के अनुसार माता का आगमन घोड़ा पर तथा प्रस्थान डोली में होगा। माता का घोड़ा पर आगमन एवं डोली में प्रस्थान दोनों ही प्रतिकूल फलप्रद, अशांति दायक एवं अस्थिरता प्रद है।
कलश स्थापन :- प्रतिपदा तिथि आज दिवा 9:11 बजे से 10 अक्टूबर बुधवार को प्रात: 7:56 बजे तक ही रहेगी। आज ही दिवा 1:05 बजे से चित्रा नक्षत्र का प्रवेश होगा जो कल दिन में 12:36 बजे तक रहेगी। वैधृति योग मंगलवार सायं 4:29 बजे से लगकर बुधवार को अपराह्नï 2:28 बजे तक रहेगा। अत: इसबार कल की प्रतिपदा तिथि चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग से युक्त रहेगी। चूंकि चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग में कलश स्थापन शास्त्रानुसार वर्जित है। अत: काशी के सभी पंचांगों में कलश स्थापन हेतु 10 अक्टूबर को अभिजिन्मुहूर्त में दिवा 11:37 बजे से दिवा 12:23 के मध्य कलश स्थापन का समय श्रेयस्कर है। मिथिला पंचांग में प्रतिपदा तिथि में प्रात: 8:06 बजे से पूर्व ही कलश स्थापन को प्रशस्त किया गया है। शास्त्रीय मतानुसार प्रतिपदा तिथि के अंतिम पाद में प्रात: काल में सूर्योदय 5:47 के उपरांत 7:56 से पूर्व कलश स्थापन प्रतिपदा में तथा उसके उपरांत द्वितीया में भी करना उचित है।
नवरात्र की तिथियों का समयांतराल
-बुधवार 10 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि प्रात: 7:56 बजे तक उपरांत द्वितीया तिथि लगेगी। इस दिन कलश स्थापन, माता शैलपुत्री का आह्वान, ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का प्रथम पाठ, नवरात्र व्रत प्रारम्भ।
-गुरुवार 11 अक्टूबर को द्वितीया तिथि प्रात: 7:08 बजे तक उपरांत तृतीया तिथि। इस दिन माता के द्वितीय स्वरूप ब्रह्मïचारिणी का ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का द्वितीय पाठ, नवरात्र व्रत का दूसरा दिन।
-शुक्रवार 12 अक्टूबर को तृतीया तिथि प्रात: 6:49 बजे तक उपरांत चतुर्थी तिथि लगेगी। इस दिन माता चन्द्रघंटा का ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, नवरात्र व्रत का तीसरा दिन। शनिवार 13 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि प्रात: 6:59 बजे तक उपरांत पंचमी तिथि लगेगी। इस दिन माता कूष्माण्डा का आवाहन, ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, नवरात्र व्रत का चौथा दिन
-रविवार 14 अक्टूबर को पंचमी तिथि प्रात: 7:44 बजे तक। उसके उपरांत षष्ठी तिथि लगेगी। इस दिन माता के स्कन्दमाता स्वरूप का आह्वान, ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, नवरात्र व्रत का पांचवा दिन। -सोमवार 15 अक्टूबर को षष्ठी तिथि दिवा 8:54 बजे तक उपरांत सप्तमी तिथि लगेगी। इस दिन माता के छठे स्वरूप कात्यायनी का आह्वान, ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, नवरात्र व्रत का छठा दिन।
-मंगलवार 16 अक्टूबर को सप्तमी तिथि ïदिवा 10:31 बजे तक उपरांत अष्टमी तिथि लगेगी। इस दिन माता के सातवें स्वरूप माता कालरात्रि का आह्वान, ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, महासप्तमी व्रत व नवरात्र व्रत का सांतवा दिन।
-बुधवार 17 अक्टूबर को अष्टमी तिथि दिवा 12:27 बजे तक। इसके उपरांत नवमी तिथि लगेगी। इस दिन माता के आठवें स्वरूप महागौरी का आह्वान, ध्यान व पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, महाअष्टमी व्रत व नवरात्र व्रत का आठवां दिन। काशी के हृषिकेश पंचांग में महाअष्टमी एवं महानवमी दोनों ही व्रत को इसी दिन बताया गया है परंतु काशी के अन्य सभी पंचांगों तथा मिथिला के विश्वविद्यालय पंचांग आदि में महानवमी व्रत को दूसरे दिन 18 अक्टूबर को माना है।
-गुरुवार 18 अक्टूबर को नवमी तिथि अपराह्न 2:32 बजे तक। तदुपरांत दशमी तिथि। नवमी तिथि में ही पाठ, जप, हवन समाप्त कर बलि आदि कार्य कर लेना शास्त्र सम्मत रहेगा। नवमी तिथि के अंत में ही नवरात्र व्रत का पारण भी करना शास्त्रोचित होगा। बलि आदि कार्य दशमी तिथि के लगने से पूर्व अवश्य ही समाप्त कर लेना चाहिए। अपराह्न काल में 2:32 बजे के बाद दशमी तिथि व श्रवण नक्षत्र की युति की मान्यता से विजयादशमी का पर्व, अपराजिता पूजा, शमी पूजन आदि कार्य।
-शुक्रवार 19 अक्टूबर को दशमी तिथि सायं 4:39 बजे तक। इसके उपरांत एकादशी। तिथि प्रधानता व मतान्तर काशी महावीर पंचांग एवं मिथिला पंचांग से विजया दशमी अर्थात दशहरा का पर्व। मतान्तर से दशमी तिथि में भी प्रात: नवरात्र व्रत का पारण किया जा सकता है। इस दिन पंडाल में माता के विसर्जन हेतु कार्य संपन्न होंगे। जयंती ग्रहण, नीलकण्ठ दर्शन, विजय यात्रा आदि धर्म कार्य किए जाएंगे।
कलश स्थापना के लिए सामग्री : लौंग, इलाइची, मिट्टी का कटोरा, कलश, जौ, साफ मिट्टी, रक्षा सूत्र, रोली, कपूर, आम के पत्ते, साबुत सुपारी, अक्षत, नारियल, फूल व फल
-पूजा सामग्र्री : दुर्गा सपृसति, रौली, सिंदूर, कपूर, लौंग, इलाइची, रक्षासूत्र, जनेऊ, हरि दर्शन धूप, अगरबत्ती, मधु, घी, तील, जौ अबीर, गुलाल, अबरख, हल्दी चूर्ण, पंच मेवा, सुपारी, गंगाजल, रुई, पीला सरसो, गुड़, अरवा चावल, बताशा, इलाइचीदाना, मिश्रीदान।
-वस्त्र सामग्र्री : लाल वस्त्र, पीला वस्त्र, सफेद वस्त्र, गमछा।
-श्रृंगार सामग्र्री : चुनरी बड़ा, केशर, सुगंधी तेल, कस्तुरी, गोलाचन, इत्र, सर्वोसंघी, पंचरत्न, सत्पमतिका, सप्तधान, गेंहू, मूंग गोटा, माचिस, अष्टगंध चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन।
-फलहारी : सिंगाढ़ा गोटा, सिंगाढ़ा आटा, कुटू गोटा, कुटू आटा, राम दाना, सवा चावल, टिन्नी, चावल, फूल मखाना, काजू, किसमीस, बादाम लाल, आलू चिप्पस, आलू भुजिया, साबुदाना, साबुदाना पापड़, सेंधा नमक।
-कन्या पूजा सामग्र्री : चुनरी, टिकली, आलता।
-हवन सामग्री : धूप, धुना, मधु, घी, तील जौ, गुगुल, जटामासी, नागर मोथा, कपुर काचरी, चंदन चूर, कमलगट्टा, अगर, तगर, नवग्रहए आम लकड़ी, पापड़, काला उरद, बेलगिरी
-फल : सेव, अनार, अंगूर, नासपति, नारियल।