सौरभ शेखर श्रीवास्तव की रिपोर्ट : कैथी लिपि को ‘‘कायस्थी लिपि‘‘ के नाम से भी जाना जाता है। कैथी की उत्पत्ति ‘‘कायस्थ‘‘ शब्द से हुई है जो कि उत्तर भारत का एक सामाजिक समूह (हिन्दू जाति) है। इन्हीं के द्वारा मुख्य रुप से व्यापार संबंधित ब्यौरा सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहले इस लिपि का प्रयोग किया गया था। कायस्थ समुदाय का पुराने सामंतों, राजाओं तथा बाद में ब्रिटिष काल में ब्रिटिष षासकों से काफी सकारात्मक रिष्ता रहा । ये उनके यहाँ विभिन्न प्रकार के ऑकड़ों (लेखा जोखा) का प्रबंधन एवम् भण्डारण करने के लिए नियुक्त किए जाते थे। कायस्थों द्वारा प्रयुक्त इस लिपि को बाद में ‘‘कैथी लिपि के नाम से जाना जाने लगा।
मध्य कालीन भारत में ‘‘कैथी लिपि‘‘ एक महत्वपूर्ण लिपि रहा हैं। उत्तर भारत व उत्तर पूर्व भारत खासकर आज के उत्तर प्रदेष एवम् बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में विधि व न्यायालय, प्रषासनिक व लेखा-जोखा का कार्य किए जाने का प्रमाण पाए गए हैं। वैसे इसका प्रभाव बंगाल व उड़ीसा में भी रहा।
कैथी लिपि एक पुरानी लिपि है, जिसका प्रयोग 16वीं व 19वीं षताब्दी के मध्य तक धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत के दौरान इसका प्रयोग काफी व्यापक था। ब्रिटिष षासकों द्वारा इसके बाद अन्य लिपियों के आगवन से इसके प्रयोग कम हुए फिर भी यह चलता रहा, सीमित क्षेत्रों में। 1880 के दषक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायालयों में आधिकारिक लिपि का दर्जा दिया गया था, जैसे खगड़िया जिला का न्यायालय । एक वो वक्त था जब मेरे बिना काम न चलता था, एक ये वक्त है, जब मेरा नाम भी गुमनाम चलता है। कैथी लिपि अगर षायर होती, तो षायद यही बात कहती। उसके पास ऐसा कहने का वजह भी है। 16 वीं सदी में इजाद की जानेवाली और 1880 के दषक में एकीकृत बिहार में अधिकारिक लिपि का दर्जा हासिल करने वाली कैथी को जानने वाले आज कुछ गिने-चुने लोग ही बचे हैं। कैथी के जानकार कोर्ट के सरकारी वकील का कहना है कि न्यायालयों में टाइटल सूट काफी लगते हैं, जिनमें 20 प्रतिषत डाक्यूमेण्ट कैथी लिपि में ही लिखे हुए होते हैं। कैथी लिपि में बिहार, झारखण्ड, समेत यूपी के हजारों अभिलेख लिखे गए हैं। इनसे संबंधित कोई न कोई दीवानी मुकदमा कोर्ट में आता रहता हैं। जबकि इन राज्यों में कैथी लिपि पढ़ने वाली, गिने-चुने लोग ही बचे हैं। अतः जानकारों की संख्या बढ़ाने की सख्त आवष्यकता हैं। देवनागरी लिपि के महत्व बढ़ने के साथ-साथ, कैथी लिपि का महत्व घटता गया। एक विदेषी भाशा वैज्ञानिक रुडोल्फ हर्नल ने 1880 में भविश्यवाणी की थी कि देवनागरी लिपि कैथी लिपि को सुपरसीड करेगी, क्योंकि यह कम समय में और आसानी से लिखी जा सकती है। बाद में यही हुआ भी। जैसे-जैसे देवनागरी लिपि का प्रसार हुआ, कैथी इतिहास बनती चली गई। आज इसे जानने वाले गिनती के लोग बचे हुए हैं।
कैथी लिपि की संरक्षण की आवष्यकता :–
इस लिपि के संरक्षण की आवष्यकता है, क्योंकि बिहार के कभी लोकप्रिय इस लिपि में लिखे भू-अभिलेखों का अनुवाद आज की प्रचलित लिपि (देवनागरी लिपि) में करना कठिन हो जाएगा अगर कैथी लिपि को संरक्षित कर इसके जानकारों की संख्या न बढ़ायी जाय।
अभी बिहार समेत देष के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस लिपि में लिखे हजारों अभिलेख हैं। समस्या तब होती है जब इन अभिलेखों से संबंधित कानूनी अड़चनें आती हैं। दैनिक जागरण में छपे एक आलेख के अनुसार कैथी लिपि के जानकार अब नगण्य लोग ही बचे हैं। निकट भविश्य में इस लिपि को जानने वाला षायद कोई न बचेगा, और तब इस लिपि में लिखे भू-अभिलेखों का अनुवाद आज की प्रचलिपि लिपि में करना असंभव हो जाएगा। ऐसे में जरुरत है इस लिपि की संरक्षण की।
अमेरिका के मिषिगन विष्व विद्यालय के श्री अंषुमन पाण्डेय ने कैथी लिपि को इनकोड करने का प्रस्ताव दिया था। प्रस्ताव में उन्होंने बताया था कि गवर्नमेंट गजेटियर्स में भी उल्लेख है कि वर्श 1960 तक कैथी में बिहार के कुछ जिलों में काम किया जाता था।
बिहार सरकार के मंत्री द्वारा विधान परिशद् में दिए गए आष्वासन से हम उम्मीद कर सकते हैं कि कैथी लिपि को बिहार मै संरक्षण व संवर्ध्दन का मौका मिलेगा।
कैथी लिपि को सन् 2009 में यूनिकोड नामक मानक 5.2 में शामिल किया गया। कैथी का यूनिकोड में स्थान U+11080 से U+110CF है।
शंकर झा
एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र), एल.एल.बी.
{छ.ग. राज्य वित्त सेवा}
नियंत्रक (वित्त)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)