“कर्ण कायस्थ – परंपरागत संकट आ समाधान” विषय पर सेमिनार का भी होगा आयोजन
बिहार में जमींदारी उन्मूलनक तुरंत बाद कर्ण कायस्थक प्रवासक गति बहुत बढि गेलेक।
शिक्षा आ रोजगारक तलाश मे शहर आ महानगर दिस निकलल कर्ण कायस्थ लोकनि के अपन गोसाउन, पूजा-पाठ, विध-व्यवहार, डीह-डाबर सहित संस्कृति आ परंपरा में से बहुत चीज छुटैत गेलैन।
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एहि से परंपरागत सांस्कृतिक परिवेश पर गंभीर संकट आबि गेलेक अछि मुदा एकर दोसर पक्ष सेहो निर्बल नहि।
शिक्षा चाही, रोजगार चाही, आर्थिक उन्नति चाही आ नीक स्वास्थ्य सेहो चाही।
ऐहि लेल कुछ त्याग कर’ पड़ता
- बेटी-पुतहु के मल्टीनेशनल मे नौकरी करेत मधुश्रावणी आ पचागि पूजबा में असोकर्ज होयब
सामान्य बात।
बटगमनी, बारहमासा, डहकन वा लगनी स्लोगन बिसरि गेलीह, कोनो हर्ज नहि। मुदा भगवती
गीत जै बिना “राग” आवास’ के गाओल जाए त’ संकट बुझना जाइछ।
आऊ ने, एहि विषय पर किछु गप्प करी।
संकटक सूची बनावी, समाधान रास्ता ताकी।
किछ अहाँ कहब, किछ हमर सुनब।
एहि मंथन सँ अपन संस्कृति आ परंपरा सुदृढ होत । हेबेटा करत।