वर्तमान वैश्विक पटल पर यह देखा जाता है कि अक्सर व्यवसायी वर्ग जिनके किसी सामान की मांग कम हो तो वे अंदर की क्वालिटी वही रखते हुए उसपर आकर्षक पैकेजिंग कर देते हैं। ठीक उसी तरह से बिहार सरकार ने शिक्षक नियोजन नियमावली 2006, संसोधित रूप 2012 के साथ किया है। सरकार ने बड़ी चालाकी के साथ पुराने सामान पर नई परत चढ़ा करके अपनी ब्रांडिंग कर ली। मीडिया में बड़़े बड़े अक्षरों में यह प्रसारित किया गया कि नियोजित शिक्षकों को सरकार यह दे रही है वह दे रही है जबकि यह नियोजित शिक्षक ही समझ रहे हैं कि उन्हें क्या मिल रही क्या नहीं। हमने सेवाशर्त का विस्तृत अवलोकन के पश्चात यही निष्कर्ष पाया कि कुछ विशेष नहीं वही घिसी पिटी बातों को सरकार लागू करने जा रही है जो पूर्ववत थी। पेंशन के रूप में uti, पदोन्नति, अनुकम्पा ये सब तो पूर्व के नियमावली में भी थी और उसमें तनिक संसोधन करते हुए बस कहीं कहीं नाम बदला गया है। हां इतना जरूर किया गया कि शिक्षक के आश्रित जो पहले शिक्षक बनते थे उन्हें अब चपरासी और किरानी बनाने का कोशिश की जा रही है इतना ही नहीं ईपीएफ पर तो हमलोग उच्च न्यायालय से पहले ही न्यायदेश प्राप्त कर चुके हैं और उसी के अनुरूप सरकार कार्य कर रही है तो अर्जित अवकाश एक नया लाभ मिला है लेकिन वह भी कांट छांट करके जहां 300 दिनों का प्रावधान था वहां मात्र 120 दिन देने से मतलब साफ है कि यहां भी धोखा। मोटा मोटी अगर देखा जाए तो मजमून वही है बस लिफाफा बदल गई है। अब जरूरत है एकजुट होकर आगामी विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव के जाति और मजहब की राजनीति से ऊपर उठकर सरकार के विरोध में मतदान करने की।
–शम्भू यादव
प्रदेश उपाध्यक्ष सह
जिलाध्यक्ष
बिहार राज्य प्रारम्भिक शिक्षक संघ, दरभंगा