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शंकर झा लिखित एक कालजयी कहानी ‘मिथिला का आँचल’ का स्पेशल रिव्यू

डेस्क : मिशन टू करोड़ चित्रांश अंतरराष्ट्रीय के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र कर्ण के बचपन के मित्र शंकर झा जी जो प्रशासनिक पदाधिकारी हैं।12 जुलाई को ही इस पुस्तक का विमोचन हुआ।

“मिथिला का आँचल ‘ उपन्यास जो श्री शंकर झा , ग्राम+पो. अंधराठाढ़ी, जिला- मधुबनी द्वारा लिखी एक कालजयी कहानी है , इसकी सार्थकता एवम् पठनीयता पर बहुत सारी प्रतिक्रियाएं आती रहती हैं पर जयपुर, राज. से एक मिथिला की एक वरिष्ठ विदुषी जो कि दर्शनशास्त्र की लब्धप्रतिष्ठित प्राध्यापिका हैं , उनकी प्रतिक्रिया जो कि प्रेरक और लेखक के लिए भविष्य में उत्प्रेरक एवम् मार्गदर्शक का काम करेगी ।

राजेन्द्र कर्ण और शंकर झा


उनकी प्रतिक्रियात्मक उदबोधन “मिथिला का आँचल ” के प्रति कुछ इस प्रकार है –

मिथिला का आँचल ‘ पढ़ना अपनी व्यस्ततम क्षणों से कुछ पल निकालकर एक सुखद अनुभूति रही । आरम्भ में जब किताब पढ़ना शुरू की तो थोड़ी सशंकित थी कि क्या ये किताब पसन्द आएगी और मैं इसे पूरा पढ़ पाऊंगी , क्योंकि कई दफ़े कहानी की रोचकता नहीं होने के कारण मैंने बीच में हीं पढ़ना छोड़ दिया है। परंतु इसको जैसे- जैसे पढ़ती गयी किताब के प्रति रोचकता तथा प्रतिबद्धता बढ़ती गयी । सबसे अच्छी बात जो मैंने इस किताब में अनुभव किया ,वो है इसमें प्रयुक्त भाषा की सहजता एवम् सुगमता ।
हालांकि लघु व्याकरणीय दोष अखरता जरूर है , क्योंकि पाठन का प्रवाह थोड़ा बाधित होता है, पर समग्रता में कहानी की रोचकता उस कमी को पूरी किये देती है।


ग्रामीण दृश्यों का बखूबी संकलन,वर्णन ,और प्राकृतिक छटाओं का अतुलनीय चित्रण मुग्ध करता है , सामाजिक समरसता ,उसकी बुनावट और लोगों का पारिवेशिक जुड़ाव बेजोड़ है ।

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नायक जो कि इस उपन्यास का मुख्य पात्र है , का चारित्रिक विकास अद्वीतीय एवम् उत्कृष्ठ है ।नायक की जिंदगी के हर पहलू को उजागर करता हुआ , उसकी जिंदगी में आनेवाली हर सुगम एवम् दुर्गम झंझावातों का प्रभाव उसके चरित्र निर्माण एवम् समग्र व्यकित्व में शामिल होता है विशेषकर उसकी जिंदगी में आनेवाली दो नायिकाओं का उसको सशक्त और सबल बनाने में बहुत बड़ा योगदान है ।

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मीना का बिछड़ना उतनी पीड़ा नहीं देती क्योंकि वह बचपन की अबोध एवम् बालसुलभ प्रेम को प्रतिबिंबित करती है , परन्तु इंदु का बिछड़ना मन मष्तिष्क को उद्वेलित करता है , क्योंकि तब तक दोनों वयस्क एवम् निर्णायक हो चुके होते हैं । एक और मुख्य बात जो मैंने इस कहानी में व्यक्तिगत तौर पर अनुभव की वो है नायक की बड़ी बहन का अकस्मात परिदृश्य से गायब हो जाना जबकि इस उपन्यास की मूल काया का जब रूपांतरण आरम्भ होता है तो बहन हीं नायक को एक संगिनी, पथ प्रदर्शक के रूप में मार्गदर्शन करती हुई सबलता एवम् विश्वास पैदा करती है ।


“मिथिला का आँचल ” उपन्यास में श्री शंकर झा ,जो कि सम्प्रति इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान ,रायपुर , छत्तीसगढ़ में वित्तीय नियंत्रक सह निदेशक हैं ने मिथिला की संस्कृति एवम् लुप्त होती धरोहरों की हर पहलू का विस्तार से समावेश किया है जिस क्रम में कहानी अपनी मूल आत्मा और गति को खोती नजर आती है , पर लेखक अपनी भाषायी एवम् प्रतिभा की चतुराई से घटनाक्रमों की रोचकता को समेटकर पटरी पर लाकर प्रवाह को स्थापित करने में सफल होते दिखते हैं। कुल मिलाकर यह उपन्यास सरस्, सुबोध ,रोचक एवम् मनोरंजक है जो एक बार पढ़ने को बाध्य जरूर करती है साथ हीं अपनी ज़मीन और मिट्टी की सोंधी खुशबू को कायम रखने में भी सफल दिखती है ।

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