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विशेष :: सुप्रसिद्ध लेखक शंकर झा द्वारा रचित ‘मिथिला का आँचल’

डेस्क : औपन्यासिक शैली में यश पब्लिकेशन्स नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस रचना के लेखक श्री शंकर झा मिथिला के विद्वनजनों के धवल ज्योत्सना से सुप्रकाशित व ग्राम्य माता परमेश्वरी के आशीष से समुज्ज्वलित तथा भामती मिश्र के निःस्वार्थ प्रेम का प्रतिफल अद्धैत वेदांत का सर्वोच्चगं्रथ ‘‘भामती’’ के रचनाकार वाचस्पति मिश्र सदृश षड्दर्शन टीकाकार से महिमा मण्डित ग्राम अंधराठाढ़ी ग्राम के निवासी हैं।

इस रचना में मिथिलांचल के ग्रामीण परिवेश बच्चों को उनके अभिभावकों द्वारा सुसंस्कारित करने का तरीका, मिथिला का विशिष्ट त्योहारों, पर्यटन हेतु रमणीय व दर्शनीय स्थलों, सुविख्यात साहित्यकारों व उनकी शाश्वत रचनाओं, संकीर्तनीय विभूतियों के समावेश के साथ-साथ मिथिलांचल का आध्यात्मिक पूजा पाठ का महत्व पूजा करने का सही तरीका का भी उल्लेख हैं। आज की युग की कुछ ज्वलंत विषय यथा टेलीविजन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोटर सायकिल, मोबाइल, ए.सी., जंक फूड के कुप्रभाव तथा इसकी सही उपयोग किस प्रकार सुनिश्चित की जाय का भी लेख है। इतना ही नहीं, आज प्रेम प्रसंग जनित अपराध की बाढ़ किस कारण से आई है, उनका निदान के साथ-साथ मिथिला के विशिष्ट प्रेम-प्रसंग की झलकें भी मिलेंगी।
जो मैथिल प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए मिथिला पेंटिग्स/मधुबनी पेंटिग्स का इतिहास उसका विकास, विकास क्रम में बाजारवाद के कारण मूल स्वरूप पर चोट तथा इसके संरक्षण के बारे में विस्तृत जानकारी का संकलन कर प्रस्तुत किया गया है, जो प्रतिभागियों हेतु बहुमूल्य साबित होगा।

संस्कार (अध्याय-7 पुष्ठ 35 व 36)
सुमन अपने विद्यालय के दो कक्षाओं के बीच होने वाले फुटबॉल मैच के समय अपने हेडमास्टर साहब को अपना परिचय देने से पूर्व अन्य छात्रों की तरह हाथ मिलाने के बजाय उनका चरण स्पर्श कर लेता है। अचानक घटी इस घटना से सभी हैरान हो उठे, कारण यह था कि सुमन था ब्राह्मण, जबकि हेडमास्टर साहब थे धानुख। खुद हेडमास्टर साहब अवाक् हो गए थे, विस्मय भरे भाव से सुमन की ओर देखे ही थे कि सुमन गर्व भरे लहजे में बोल उठा-‘‘इस प्रतियोगिता के क्षण में आपका आशीर्वाद जरूरी है’’, केवल शुभकामना नहीं।
सुमन के उक्त भावना उद्बोधन की ओर ध्यान दिए बगैर हेडमास्टर साहब अपनी परम्परागत भावना को छुपाए बिना बोल उठे-तुम हो ब्राह्मण, अर्थात् मुझसे उच्च जाति के, तुमको अपनी सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार मेरा पॉव कभी छूने का अधिकार समाज नहीं देता।
सुमन हेडमास्टर साहब द्वारा व्यक्त इस सामाजिक रीति पर बिना विशेष गौर किए ही तुरन्त बोल उठा-हेडमास्टर साहब! आप जानते है कि मेरे पिताजी उच्च विद्यालय के हेडमास्टर हैं, उन्होंने ही कभी कहा था-हमेशा बड़ो का आदर करो तथा श्रेष्ठों को पूज्य मानों। दो शब्दों क्रमशः ‘‘बड़े’’ व ‘‘श्रेष्ठ’’ का भावार्थ समझाते हुए उन्होंने कहा था-जो तुमसे उम्र में बड़े हो उसे ‘बड़े’ समझो तथा जो न केवल उम्र में बल्कि किसी ज्ञान में तुमसे ज्यादा जानकार हो उसे ‘‘श्रेष्ठ’’ समझो। उन्होंने ‘‘उम्र’’ और ‘‘ज्ञान’’ को तुलनात्मक अंतर करने का आधार मानने को सिखाया है, न कि जाति, धर्म व मजहब को। अतः मेरे द्वारा आपका चरण स्पर्श किया जाना क्या मेरे बाबूजी द्वारा प्रदत्त संस्कार के अनुरूप नहीं हैं? आप न केवल मुझसे उम्र में बड़े हैं। बल्कि ज्ञान में श्रेष्ठ हैं तथा सबसे बढ़कर आप मेरे गुरूवर हैं। गुरू तो शिष्य के लिए ईश्वर सदृश होते है जिनके शिक्षा-दीक्षा पर शिष्य का जीवन रूपी महल की नींव आधारित होता है, इसी नींव का नाम हैं-‘‘सम्पूर्ण व्यक्तित्व’’। इसी नींव का परावर्तन होता है उस शिष्य का प्रत्येक गतिविधि व आचरण में, जो वह अपने जीवन में अपनाता है।

राष्ट्रीय ध्वज का भावनात्मक सम्मान (अध्याय-9 पृष्ठ-53)
 सुमन (नायक) द्वारा अपने पिता जी के समक्ष जिद्द किया जाना कि – इस बार 15 अगस्त समारोह हेतु प्रभातफेरी के समय कपड़ा का तिरंगा झण्डा लेगा न कि कागज का तिरंगा झण्डा।
पिताजी ने इस जिद्द को खारिज करने दो बातें कहीः- (1) आपके पास जो हवाई चप्पल है वो भी टूट गया है, जबकि प्रभातफेरी के समय टूटे चप्पल की जगह नया जूता आराम देह होगा, अभी आपको जूता खरीद देता हूँ। (2) कापड़ा का तिरंगा झण्डा लेंगे तो उसे सम्मान जनक ढंग से सम्भाल कर रखना होगा घर में। अपने घर में चूहों का फौज हैं, सारे कपड़े, ऊनी वस्त्र कुतर देता है। झण्डा के कपड़ा को कुतर देगा तो झण्डा का अपमान होगा।
इन दोनों बिन्दुओं का सुमन जो अभी किशोरावस्था में हैं, फिर भी उसका जवाब इस प्रकार था- (1) इस वर्ष के प्रभातफेरी के लिए स्कूल शिक्षक द्वारा सुमन को प्रभातफेरी दल का प्रमुख बनाया गया था। वह काफी उत्साहित था प्रभावशाली प्रभातफेरी करने हेतु। सुमन को मालूम था कि उसके दल के 30-40 बच्चों के पास तो कागज के बने झण्डे होंगे ही, वह दल का प्रमुख है, उसके पास थोड़ा अलग कपडे़ के झण्डे़ होना जरूरी था ताकि प्रभातफेरी के समय आम लोगों को भी पता चल सके कि इस दल का प्रमुख कौन है। वह पिताजी को जवाब देते बोला-प्रभातफेरी के समय तो लोग झण्डे को देखते है, पॉव को नहीं। अतः मुझे जूते नहीं चाहिए। मुझे तो सिर्फ झण्डा खरीद दीजिए। जब हमारे देश के बूढ़े,नौजवान, महिलायें, बच्चें अपने सीनों पर लाठी व गोली खाकर हमें आजादी का उपहार भेंट किए, तो क्या एक दिन कुछ घण्टों के लिए हम प्रभातफेरी नंगे पॉव नहीं कर सकते?
(2) रही, झण्डा की सुरक्षा व सम्मान की बात, मैं उसे सुरक्षित रखूँगा। उसे प्रभातफेरी के बाद झाड़-पोंछकर एक झिल्ली में बंद कर अपनी माँ के उस अलमीरा में रखूँगा, जहाँ मेरी माँ अपनी सबसे कीमती गहना रखती है, वहाँ चूहों के आक्रमण का कोई खतरा नहीं।
सुमन की बात तथा बातों में छुपी जज्बात् को महसूस कर, मन में पुत्र की भावना से गौरवान्वित होते हुए हेडमास्टर साहब बोल उठे-अभी चलता हूँ बेटा, आपको आपके पसंद का कपड़े का झण्डा खरीदने। 

सिगरेट (या किसी नशा के लत) को प्यार से छुड़ाया जा सकता है (अध्याय-13, पृष्ठ 92-93)
जब से मीना को पता चला कि अभी कुछ दिनों से सुमन जी कुछ अन्य मित्रों से साथ सिगरेट पीने लगे हैं तो वह परेशान रहने लगी। सुमन इन मित्रों के साथ खेलते हैं, तथा इनमें से एक दो मित्र जो सिगरेट पीने के आदी हैं, वे सुमन को भी सिगरेट पीने का चस्का लगा दिए हैं।
मीना पहले उन मित्रों को समझाती है कि वे सुमन जी को सिगरेट पीने न कहें, तथा उन्हें मना भी करें। परन्तु इस अप्रत्यक्ष प्रयास का सकारात्मक नतीजा न आता देख, मीना प्रत्यक्ष रूप से सुमन को मना करने ठान लेती हैं। मीना सतत् प्रयास करती रही, सुमन को सिगरेट पीते पकड़ने हेतु। एक दिन उसका प्रयास सफल होता है, जिसका कथानक इस प्रकार हैः-
एक दिन हुआ यूँ कि सुमन शाम को खेलने के बाद बाजार से एक सिगरेट खरीदकर उसे सुलगाकर घर की ओर सड़क पर कुछ ही आगे बढ़ा था कि अचानक पीछे से रिकशा में मीना और उसके छोटे भाई आ टपके सुमन रंगे हाथों पकड़ा गया। सुमन अचानक घटे इस घटना से सन्न रह गया और हड़बड़ाहट में पूछा – मीना आप, रिकशा से कहाँ जा रही हैं? मीना का तेवर चढ़ आया था – सुमन जी, मैं कहीं भी जा रही हूँ इससे आपको क्या मतलब? ये बताइए कि यह सिगरेट आप क्यों पीते हैं? आपको मालूम है कि कब से मैं आपको सिगरेट पीना छुड़वाना चाहती हूँ। मैं परोक्ष रूप से हर प्रयास करके थक गई। आज प्रत्यक्ष मौका मिल गया है। बताइये आप इसे पीना कब छोड़ देंगे? क्या आप जानते हैं यह कितना हानिकारक है? इससे गंभीर बीमारियाँ होती हैं, जानलेवा है यह। क्यों इसे आप अपना रहे हैं? अब तो आप खुद भी पैसा खर्च करते हैं इसे पीने के लिए। कृपया छोड़ दीजिए इसे पीना। यह खतरनाक आदत है, मैं कोई खतरनाक खेल करते न देखना चाहती हूँ आपको। सुमन बीच में टोकते हुए कहा – ठीक है मीना, छोड़ दूँगा मैं इसे।


मीना की आँखों में आशा की किरण चमक उठी। लेकिन सहसा विश्वास नहीं हुआ अतः पूछी – सुमन जी क्या आप मेरी इस भावना का कद्र करेंगे ना? आप छोड़ देंगे न इसे? सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा – हाँ मीना, मैंने कह दिया ना? अवश्य मैं इसे छोड़ दूँगा। तुरंत मीना सुमन का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोली – आप अपना हाथ मेरे सर पर रखकर कसम खाइए कि आप जीवन में सिगरेट कभी नहीं पियेंगे। सुमन ने गंभीर होते हुए कहा – मीना मैं आपके सर पर हाथ रखकर कभी कसम नहीं खाऊँगा। मीना ने पूछा – क्यों? सुमन ने कहा – क्योंकि सर पर हाथ रखकर कसम खाना ईश्वर के सामने कसम खाने का पर्याय होता है, अगर उसके बाद जीवन में धोखा से भी कभी मैं सिगरेट पी लिया तो, इसका अभिशाप मुझे न लगकर आपको लगेगा, जो कभी नहीं चाहूँगा मैं कि मेरे बुरे कर्मों का कुफल आपको मिले, यह हरगिज नहीं होगा। तब बात रही आपकी भावना को कद्र करने का। यह तो मेरा सौभाग्य है कि आपका भी मेरे प्रति कोई भावना है। उसे कद्र करने का सुअवसर कभी नहीं मैं गवाना चाहूँगा। हाँ, मगर सुन लीजिए, मेरा भी एक शर्त है आपसे कि मैं सिगरेट न पीने का तभी वचन दूँगा जब आप मुझे यह वचन दें कि अब आप पहले कि तरह बराबर अपने विद्यालय जायेंगी तथा अनावश्यक मेरे खेल देखने में समय नहीं गँवायेंगी क्योंकि मैं आपको पढ़ाई में हमेशा अव्वल देखना चाहता हूँ। मीना ने सोचकर व शांत होकर कहा – हाँ सुमन जी अब मैं ऐसा ही करूँगी। आपके निर्देश का अक्षरशः पालन करूँगी। सुमन ने कहा – अब मैं भी सिगरेट नहीं पीऊँगा। इसके बाद सुमन अपने घर वापस आ गया।

प्रदूषण रोकने व पौधारोपण का सशक्त संदेह (अध्याय – 26 पृष्ठ 179)
दीपावली के अवसर पर पटाखा के प्रदूषण से बचाव के उपाय रामायण का संदेशः-
दीपावली में दीप जलाना काफी है, पटाखा फोड़ना अनिवार्य नहीं, किसी शास्त्र में पटाखा का उल्लेख नहीं है। मात्र पैसे की ताकत दिखाने लोग करोड़ों का पटाखा जला डालते हैं। पटाखा में टन-के-टन बारूद जलने से वायुमण्डल कितना प्रदूषित हो जाता हैं, हाइपरटेंशन के मरीज पर कितना बुरा असर पड़ता है। पहले जो कुछ हुआ, उसका असर ग्लोबल वार्मिंग है। भारत में गर्मी के महिनों में कई जगह का तापमान 50 डिग्री सेलसियस पहुँच गया है। ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के जीव-जन्तु हेतु खतरनाक ढंग से आगे बढ़ रहा है। इसको रोकने हेतु दीपावली का उत्सव से अच्छा उत्सव कौन सा होगा? क्यों न एक वर्ष के अंतराल में ही सही दीपावली के दिन पटाखों पर करोड़ों के व्यय के बदले पौधों के रोपण पर करोड़ो व्यय कर ग्लोबल वार्मिंग नामक रावण पर विजय प्राप्त करने का उत्सव मनावें। निश्चित रूप से इस जनकल्याणकारी कार्यक्रम से श्रीराम जी प्रसन्न होएँगे, आशीर्वाद देंगे कि पृथ्वी उस तरह न जले जिस तरह लंका जहा था।

फैशन के इस युग में प्रेम जनित अपराध को रोकने का उपायः- (अध्याय 26 पृष्ठ 182 व 183)
इन्दू गम्भीर होते बोली – शादी के पूर्व प्रेमी-प्रेमिका की कुछ मर्यादाएँ हैं तथा शादी के बाद पति-पत्नी के प्रेम की कुछ अलग मर्यादाएँ हैं। चूँकि शादी के पूर्व किसी के बीच प्रेम-प्रसंग हो तो उन दोनों की मर्यादाएँ बहुत अहम् हैं, जिनके उल्लंघन से आज के युग में प्रेम-जनित-अपराध हो रहे हैं। सुमन अति उत्सुकतावश पूछा – वो क्या? इन्दु पूर्ण गम्भीर होते बोली – इसे ध्यान से सुनें शादी के पूर्व प्रेम संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है, बशर्ते यह संबंध संस्कारित व्यवहार, सद्भाव, सहिष्णुता, सहयोग, शुभकामनाओं पर बना हो, समाज के रीति-रिवाज का उल्लंघन कम-से-कम हो। प्रेम-प्रसंग जब प्रगाढ़ होता जाता है तब सबसे महत्वपूर्ण दो मर्यादाएँ हैं, पहला ब्रह्मचर्य का पालन तथा दूसरा शादी हेतु माता-पिता की आज्ञा का पालन। प्रगाढ़ प्रेम-प्रसंग के दौरान ब्रह्मचर्य का व्रत पालन सबसे कठिन व महत्वपूर्ण मर्यादा (सीमा) है। प्रेमी सामाजिक परिस्थितिवश इस सीमा का उल्लंघन कर भी कई बार कम क्षति का सामना करता हैं, परन्तु प्रेमिका इस सीमा का उल्लंघन कर अपना सर्वस्व नाश कर डालती है। गिर जाती है, वह प्रेमी की नजरों में, अपनी नजरों में, व समाज के नजरों में। प्रारम्भ होता है लड़की का जीवन तबाह होने का सिल-सिला, कभी ब्लैकमेल के रूप में, कभी प्रेमिका की हत्या के रूप में, कभी प्रेमिका द्वारा आत्महत्या के रूप में। जो प्रेमिका कल तक महारानी होती थी प्रेमी के नजरों में, वही प्रेमिका ब्रह्मचर्य की मर्यादा लांघने पर अब रखैल बन जाती है। यही हो रहा है आज के इस फैशन युग में सारे टी. वी. चैनल, प्रिंट-मीडिया अटापटा है इस एक मर्यादा उल्लंघन के दुष्परिणामों से। अतः प्रत्येक प्रेमिका के प्रेम-प्रसंग के प्रगाढ़ पल में भी, जब प्रेम झरना के पानी सा तीव्र वेग धारण किया हो, शरीर के सारे हॉरमोन्स प्रवाहित हो रहे हों, अपने को तिनके के रूप में मत बहने दें नहीं तो गुम हो जाएँगी तिनके की तरह, मिट जाएगा नामों-निशान। ब्रह्मचर्य व्रत के चट्टान का शक्ल दे दें, ताकि प्रवाह के वेश की शीतलता भी मिले, अपनी पहचान व सम्मान भी बनी रहे।
दूसरा महत्वपूर्ण मर्यादा है शादी हेतु माता-पिता की आज्ञा का पालन। अपनी मित्रता, प्रेम, को शादी में परिवर्तित करने का निश्चय अपने स्तर से करना ज्यादातर घातक सिद्ध होते है और हुए हैं। अगर मित्र या प्रेमी से शादी करना हो, तो निश्चय करने के पूर्व अपने माता-पिताजी से खुलकर चर्चा करनी चाहिए, क्योंकि यह जीवन का बहुत बड़ा फैसला है। जो माता-पिता अपने संतान के पालन-पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य पर मेहनत कर रात-दिन एक किए रहते हैं, जो अपने बच्चों के भविष्य के लिए रात-दिन दुआएँ माँगते हैं, वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त जीवन साथी खोजने की कोशिश करेंगे। उम्र के साथ प्राप्त अनुभव के आधार पर उनका फैसला, आपके कम उम्र व कम अनुभव की अपेक्षा अधिक सही होने की सतत् संभावना रहती है। ज्यादातर माता-पिता की आज्ञा बगैर किया गया प्रेम-विवाह असफल सिद्ध हुए हैं, जबकि माता-पिता की आज्ञा व आशीर्वाद से सम्पन्न विवाह चाहें माता-पिता द्वारा अरेंज किया गया हो, या मित्रता से प्रारम्भ होकर माता-पिता की सहमति लेने उपरांत हो, सफल सिद्ध हुए हैं, क्योंकि माता-पिता का आशीर्वाद में ईश्वर का आशीर्वाद निहित रहता है।

मिथिला की नायिका का आँचल की विशेषता (अध्याय-23 पृष्ठ 166 व अध्याय-27 पृष्ठ 184)
इन्दू की साड़ी का आँचल सुमन के पेट व सीने पर लहरा रहा था। आँचल से निकलती भीनीं-भीनीं खूशबू सुमन को एक अलग अहसास दिला रहा था। सुमन जब एक पल के लिए आँचल को ध्यान से देखा था तो आँचल पर कढ़े अलग-लगल रंग के कशीदे सुमन को मिथिलांचल की धरती की सुन्दरता, हवा की विशुद्धता व हरियाली की रंगीन तस्वीरें पेश कर रहा था। हवा में आँचल इस तरह लहरा रहा था जैसे कह रहा हो सुमन को-यह रंगीन खूशबूदार आँचल को अपनी सीने पर, बसा लीजिए अपने हृदय में, ताकि प्यार, से भर देगा आपके दिलो-दिमाग को, महका देगा आपकी बगिया को तथा जीवन में कभी धूप आएगा, सघन रंगीन छाया देकर धूप के असर को बेअसर कर देगा यह। ऐसा आँचल, ऐसी शुद्धता, ऐसी महत्व भरा प्यार मुश्किल है मिथिला से बाहर पाना।

अध्याय-27 पृष्ठ 184ः-
इन्दू कुछ पल सोचकर बोली – मिथिला की हरेक महिला, चाहे वह दुल्हन हो या बूढ़ी माँ, सभी का आँचल विशेष होता है। जहाँ दुल्हन अपने पति के प्रवास के दौरान इस आँचल से अपने शरीर के अंगों को अन्य के नजरों से बचा कर रखती है, वहीं पति के प्रेम देते वक्त, आँचल का हरा रंग उस सघन छाया का एहसास कराता है जिसके नीचे उसका पति कर्मभमि के सारे तपिश से शकुन भरा मुक्ति पाता है। पल दो पल के इस छाया में वह बार-बार आना चाहता है। वहीं बूढ़ी माँ, अपने कर्मठ बेटे को परिश्रम कर घर वापस आने पर अपने जीर्ण-शीर्ण आँचल में एसके चेहरे लपेट कर ममत्व का एहसास दिलाती है, हाँ ये आँचल विशेष हैं जो मिथिला के परिधान हैं।


मिथिला के प्रवासी सपूतों से मिथिलांचल के विकास में भागीदारी हेतु आह्वान (अध्याय-29)
सुमन से इन्दू याद दिलाते बोली – आप कहते थे कि मेरी आँचल के तले आपको बहुत षकुन, प्रेम व ममत्व मिलते हैं। भूल जाते हैं सारे गमों व कठिनाईयों को आप इस आँचल के घने साए में। जब आप बहुत बड़े आदमी बन जायेंगे, तब मिथिला माँ का आँचल लहरा-लहरा कर आप जैसे सपूतों को बुलाएगा, बोलेगा, मेरा अतीत बहुत गौरवषाली रहा है बेटा, यहीं माँ सीता का जन्म हुआ, यहीं भगवान महावीर का जन्म हुआ यहीं महात्मा गाँधी सत्याग्रह करना सीखे। हाल के कुछ दषकों में पुत्रों के बीच जातिगत भेदों, राजनीतिक अदूरदर्षिता, बाढ़ की भयावहता आदि के कारण मेरा आँचल फटकर तुकड़ो में विभक्त हो गए हैं। आओं मेरे योग्य सपूतों प्रदेष में हो या प्रदेष के बाहर, सिल दो इस आँचल के तुकड़ो को नई मषीनों से, रंग-बिरंगे कषीदें कढ़ दो नई तकनीकि व पूँजी निवेष से, सुषासन की नई व्यवस्था में स्वागत है आप सभी का, ताकि फिर से मजबूत व रंगीन हो जाय यह आँचल, जिसमें छुपा लूँ आप जैसे सपूतों को, इतना ममत्व दे सकूँ आपको, कि आपकी मजबूरी न रहे इस आँचल के पार झाँकने की।

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