सौरभ शेखर श्रीवास्तव की स्पेशल रिपोर्ट (नई दिल्ली) : बिहार के मधुबनी जिले के मंगरौनी गांव व दिल्ली विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार झा को उनके अद्वितीय काव्य कौशल, भारतीय संविधान पर काव्य रचना और अंग्रेजी साहित्य में विशेषज्ञता के सम्मान में ‘विश्व काव्य पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
‘विश्व काव्य दिवस’ के अवसर पर ‘काव्य कौशल और कविता के सामाजिक प्रभावों’ पर राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में अंग्रेजी भाषा कौशल के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्था ब्रिटिश लिंगुआ के तत्वावधान में एक उच्चस्तरीय भाषाई गोष्टी आयोजित किया गया था।
डॉ ए के झा बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय लोकेश नाथ झा के बेटे हैं जिन्होंने 1974 से 2019 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के अधीन श्री अरबिंदो कॉलेज के अंग्रेजी विभाग में अंग्रेजी साहित्य का अध्यापन किया। वर्तमान में वे सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं। उन्होंने भारतीय संविधान पर प्रथम विश्व काव्य ग्रंथ लिखा है – (1) लोग, संविधान और उसके स्तंभ, (2) लोगों का शासन, (3) जन संविधान के स्तंभ (हिंदी)। इस अवसर पर बोलते हुए, प्रोफेसर ए के झा ने कहा, “कविता संवाद संचार का सबसे विशिष्ट रूप है जिसमें मानव जाति ने प्राचीन काल से ही अपनी बेहतरीन अभिव्यक्ति पाई है।”
प्रोफेसर झा ने आगे कहा कि “विश्वव्यापक संवैधानिक काव्य संग्रह” जो कि हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध है अठारहवीं शताब्दी के प्रोफ़ेसर जोसफ एडिसन जिन्हें आधुनिक मीडिया के पिता का दर्जा प्राप्त है, के प्रयास से जन साधारण के बीच उतारा जा सकता है। उनका मानना है कि इस पहल के द्वारा जागृत धार्मिक ज्ञान की मदद से विश्व को एक बेहतर स्थान बनाया जा सकता है।
अंग्रेजी भाषा साहित्य के जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता व ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक डॉ बीरबल झा ने इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य चाहे वह गद्य हो या पद्य के प्रति प्रेम किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व और बौद्धिकता का परिचायक होता है। समाज की छवि इस बात से निर्धारित होती है कि लोग किस साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न हैं क्योंकि साहित्य ही समाज का दर्पण होता है। सांस्कृतिक एवम धार्मिक आयोजनों के लिए लोकप्रिय रूप से भारत के पागमैन व मिथिला के ‘यंगेस्ट लिविंग लीजेंड’ के रूप ख्याति प्राप्त डॉ बीरबल ने आगे कहा कि आरम्भिक युग में गीता, रामायण, बाइबिल या कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथो को छंदों के रूप में लिखा गया था।
यहाँ गौरतलब कि कोई भी कविता हो उसकी लय होती है इसलिए वह मन, हृदय और आत्मा को जोड़ती है। इसका मानव जीवन पर सुखदायक और स्फूर्तिदायक प्रभाव पड़ता है जो चिरव्यापी होता है। यह दिलों को छूता है और शीघ्र ही और दो या दो से अधिक जनो के बीच संबंध बनाता है।’
उल्लेखनीय रूप से, विश्व काव्य दिवस 1999 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा घोषित, काव्य अभिव्यक्ति के माध्यम से भाषाई विविधता का समर्थन करने और लुप्त हो रही रही भाषाओं को सुनने के अवसर को बढ़ाने के लिए हर साल मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में कविता के पढ़ने, लिखने, प्रकाशन और शिक्षण को बढ़ावा देना है। इस कविता की भूमिका की विद्धवता पूर्ण परिचर्चा में कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे, खासकर सामाजिक अधिवक्ता, न्यायाधीश, प्राध्यापक एवं समाज के अन्य बुद्धिजीवी वर्ग के सदस्य। इसमें कविता संग्रहों के माध्यम से संपूर्ण विश्व को एक बेहतर समाज बनाने की बात कही गई।
बौद्धिक चर्चा और पुरस्कार वितरण समारोह में शामिल होने वालों में प्रमुख रूप से हिन्दू कॉलेज के प्रोफेसर नैनू राम, एडवोकेट अंजनी मिश्रा और हरदीप कौर, राजेश सेन, शिवानी भट्टाचार्या, रोहिणी प्रसाद तिवारी, शैलजानन्द ठाकुर व रमाकांत चौधरी शामिल थे।