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बिहार :: हर जाति के लिए अलग-अलग मंदिर, सामाजिक सद्भाव की मिसाल है यह गांव

डेस्क : देश का पहला गांव जहां अलग-अलग जातियों के एक दर्जन से अधिक मंदिर एक ही स्थान पर मौजूद हैं।नवादा जिले के मेसकौर प्रखंड का सीतामढ़ी गांव यूं तो जगत जननी माता सीता की निर्वासन स्थली और लव-कुश की जन्मस्थली के रूप में विख्यात है, लेकिन यह गांव एक अलग मायने में अनोखा है। सीतामढ़ी में माता सीता का मंदिर एकलौता ऐसी मंदिर है जहां सभी जाति के लोग पूजने को आते हैं। इसके अलावा अन्य सभी मंदिरों में उसी जाति के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। वैसे किसी जाति का कोई भी व्यक्ति किसी अन्य जाति के मंदिर में बेहिचक आ-जा सकता है। इस पर कोई रोक नहीं है। सीता मंदिर के मुख्य पुजारी सीताराम पाठक बताते हैं कि भगवान राम ने लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी के क्रम में धोबी के ताना मारने पर जब माता सीता को निर्वासित किया था तब उन्होंने यहीं पनाह पाया था। माता सीता यहां 11 वर्षों तक रही थीं। किवंदति है कि 11 बाय 16 फीट के एक चट्टान पर माता सीता के आग्रह पर भगवान विश्वकर्मा ने मंदिर का निर्माण किया था। यहीं पर बने एक गुफा में लव और कुश का जन्म हुआ था। ग्रामीण बताते हैं कि आजादी से पूर्व भी कुछ मंदिरों का निर्माण कराया गया था। कबीर मठ मंदिर सबसे पुराना मंदिर है। यह रवि दास का मंदिर है। इसके पुजारी सुरेश राम हैं। राजवंशी ठाकुरबाड़ी में भगवान बजरंगबली की मूर्ति है लेकिन इसके भक्त और पुजारी राजवंशी समाज के हैं। इसी प्रकार चंद्रवंशी कहार समाज का भी अपना मंदिर है और उसमें उनके कुल देवता मगधेश जरासंध के अलावा भगवान राम लक्ष्मण और हनुमान की भी प्रतिमा स्थापित हैं। इसी प्रकार से चौहान समाज का चौहान ठाकुरबाड़ी, कोयरी समाज का बाल्मीकि मंदिर, चौधरी पासी जाति के लिए शिव मंदिर, सोनार जाति के भगवान नरहरि विश्वकर्मा मंदिर, यादवों के लिए राधा कृष्णा मंदिर यहां मौजूद है। ब्रह्मर्षि मुसहर समाज का शबरी मंदिर अपने आप में अनोखा है जो भगवान के भक्त की स्मृति में है। यहां माउंटेन कटर बाबा दशरथ मांझी की स्मृतियां भी सहेजी गयी हैं। ठाकुर नाई जाति का मंदिर समेत तमाम मंदिर यहां अपनी खूबियों के कारण प्रसिद्ध हैं। फिलहाल भूमिहार जाति का मंदिर निर्माणाधीन है। 

सबसे खास बात यह है कि मंदिर में किसी के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है और आज तक कभी किसी जाति के लोगों में यहां तकरार जैसी नौबत नहीं आयी है। जातिगत मंदिरों के साथ एक अच्छा पहलू यह जुड़ा है कि यहां उसी जाति के पुजारी होते हैं। मंदिर सिर्फ पूजन के ही काम नहीं आता बल्कि यहां से सामाजिकता का भी बखूबी निर्वाह किया जाता है। सामाजिक सम्मेलन आपसी पहचान को मजबूती देने के काम आता है तो सीतामढ़ी मेले में आने वाले जातिगत लोग वैवाहिक बातों को तय कर रिश्ताबंदी को भी सुदृढ़ करते हैं।

सामाजिक सद्भाव का देता है संदेश
ग्रामीण कहते हैं कि आये दिन छोटे-मोटे कारणों को लेकर अक्सर लोग आपस में लड़ जाते हैं। मगर यह गांव सामाजिक सद्भाव की मिसाल है। अलग-अलग जातियों के मंदिर होते हुए भी इस गांव के लोग सामाजिक सद्भाव की परम्परा के वाहक बने हैं। आजतक जात-पात को लेकर इस गांव में किसी का किसी से विवाद नहीं हुआ। यह गांव अनेकता में एकता का सन्देश देता है।

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