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विकास के नाम पर हो रहा मजाक,क्षेत्र के कई गांव अभी तक सरकारी सुबिधाओं से वंचित

बिजली,पानी,सड़क,पेंसन,सुलभ शौचालयों का अभाव फिर कैसा ये विकास

डॉ.एस.बी.एस.चौहान

चकरनगर(इटावा)। ओह!!! क्या कमाल की बात है कि जहां एक तरफ सरकार जनपद इटावा को ओडीएफ में घोषित कर वाहवाही लूटना चाहती है और संपूर्ण प्रदेश के हर गांव मजरे में विद्युतीकरण कर सम्मान लेना चाहती है लेकिन आज भी ऐसे गांव पूरा पाले और मजरे मौजूद हैं जहां पर विकास नाम की कोई चीज परिलक्षित ही नहीं हो रही है। आजादी के सात दशक गुजर जाने के बाद भी विकास के मार्ग से लाखों कोस दूर जनता अपना दूभर जीवन आहें भर्ती हुई जी रही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार विकासखंड चकरनगर के ग्राम पंचायत पथर्रा का मजरा खेरे का पूरा जिसे बसे आज करीब सौ वर्ष हो चुके हैं इस नगरी में लगभग 50 घर हैं और आबादी भी लगभग 500 के पार जाती है, लेकिन यह मजरा आज भी विकास के नाम से अछूता अछूता दिखाई दे रहा है। हमारे स्थानीय संवाददाता ने विकासखंड चकरनगर से खबर दी है कि खेरे का पूरा मजरा पथर्रा ग्राम पंचायत में लगता है जहां पर विद्युत पोल और वहां पर विद्युत लाइन दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है यहां के लोग उजेले के नाम पर लालटेन और दीया/ डिब्बी से अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं। क्योंकि यहां पर उजाला प्रकृति का दिया हुआ सूर्य और चंद्रमा से ग्रहण होता है लेकिन सरकार के द्वारा दिया हुआ उजेला यहां पर मनोस्थिति से कोसों दूर है। यहां पर कॉलोनी के नाम पर पूरे मजरे में मात्र तीन कॉलोनी प्राप्त हुई है बाकी के तो लोग छप्पर/ मढ़िया के अंदर चूल्हा गृहस्थी का सामान रखकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। पेयजल संकट भी यहां पर आच्छादित है पेयजल के नाम पर पूरे मजरे में मात्र एक सरकारी हेडपंप अधिष्ठापित किया गया है बाकी के कुछ लोगों ने अपने प्राइवेट हैंडपंप लगवाएं हैं लेकिन इनका पानी का संकट हर समय मजरे के ऊपर मंडराता रहता है जिसके चलते यहां के लोग चंबल के पानी का इस्तेमाल करते हैं। अपने पशुओं को पिलाना नहाना धोना कपड़े साफ करना इत्यादि का कार्य चंबल के पानी से ही मजबूरन करना पड़ता है। शौचालय के नाम पर अभी तक इस मजरे में एक भी सुलभ शौचालय सरकार के द्वारा मुहैया नहीं कराया गया जब यहां के ग्रामीणों से सुलभ शौचालय की बात की गई तो लोग भौंचक्के रह गए और पूछने लगे कि यह शौचालय इस्कीम आखिर है क्या? जब उन्हें यह बताया गया वह मायूस होकर रह गए कि हमारे मजरे में आज तक शौचालयों की कोई जानकारी नहीं दी गई और ना ही कोई भी शौचालय स्थापित किया गया। सूर्यभान निषाद ने बताया कि इस मजरे में मात्र एक दुकान है जिससे बीड़ी बंडल धना तमाखू का काम चलता है बाज़ार के लिए तो बाबरपुर और अजीतमल ही जाना पड़ता है यहां कोई पास में मंडी भी नहीं है मंडी हेतु तो औरैया और भरथना ही जाना पड़ता है। पिंटू निषाद बीएससी का सेकंड क्लास मैं अध्ययन कर रहा है उसने बताया कि मैंने अपना अध्ययन कार्य लालटेन और दिया(दीपक) की ज्योति का सहारा लेकर किया है हमारे गांव में शिक्षा के नाम पर कोई भी पाठशाला अभी तक स्थापित नहीं है हम लोग अध्ययन कार्य के लिए तो गढा कास्दा, बाबरपुर, निरंजन नगर और अजीतमल तक दौड़कर या साइकिल से जाते हैं। शिवकुमार, राजकुमार, जयचंद, गुरबिन्द्र बताते हैं की हमारे गांव में किसी प्रकार की कोई सोसाइटी का लाभ भी प्राप्त नहीं हो पाता है शिक्षा के अभाव चलते हम लोगों को कहीं नौकरी में भी स्थान प्राप्त नहीं होता है पूरे मजरे में मात्र एक व्यक्ति वह भी फोर्स में है बाकी सभी शिक्षा का अभाव चलते गांव की मेढों को खोदने और जोतने में ही लगे रहते हैं सहतू 70 वर्ष बताते हैं कि हमारे गांव में वृद्धा पेंशनों के लिए भी मात्र कालम पूरा है मैंने अपनी पेंशन को प्राप्त करने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया और लगभग 1000 से भी ज्यादा का खर्चा फार्म भरने और दलालों के चक्कर में दे डाले लेकिन अभी तक हमारी पेंशन नहीं बंधी और मैं पेंशन पाने के लिए लालायित हूं।हमारे मजरे में एक नहीं दर्जनों लोग इसके पात्र हैं लेकिन वह पात्रता की श्रेणी मैं मुझे नहीं गिना जा रहा है। सोनेलाल, व बाबा सदाराम बताते हैं कि हमारे गांव में आने के लिए कोई भी लिंक रोड डामर रोड आज तक नहीं बनी है पानी बरसने में यानी बरसात के दिनों में तो गांव से बाहर निकलना और थाने तक भी पहुंचना मुश्किलों से भरा होता है। गांव में 100 नंबर गाड़ी भी प्रवेश नहीं कर पाती समस्याओं से जूझते हुए एक और हम समस्या है कि यदि हमारे मजरे में अग्नि कांड की समस्या हो जाए तो फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी गांव तक पहुंच पाना संभव नहीं है। शिवनारायण 66 वर्ष बताते हैं कि यह सड़क निर्माण और गांव के विकास हेतु चुनाव के दौरान नाना प्रकार के आए नेता सिर्फ वादा भर कर जीतने के बाद गांव की तरफ मुड़कर कभी नहीं देखते हैं। ग्राम वासियों ने वर्तमान ग्राम प्रधान जनवेद सिंह सेंगर से आश जताई थी कि शायद इनके कार्यकाल में गांव में कुछ विकास संभव होगा लेकिन वह भी हाथ पर हाथ रखे गांव की किसी भी समस्या में अपनी सहभागिता नहीं दिखाते है इसी गांव निवासी युवा अपरवल सिंह घाट ठेकेदार बताते हैं कि हम लोगों का यह दुर्भाग्य है कि ऐसे स्थान पर हम लोगों का जन्म ईश्वर ने दिया है कि जो विकास की मुख्यधारा से आज भी हम लोग कोसों दूर हैं। सरकार जहां एक तरफ विकास का ठोक कर दावा करती है प्रशासन भी इस दावे में ताली मिलाकर वही आवाज करता है की संपूर्ण उत्तर प्रदेश में विकास की गंगा बह गई विकास की वजह से क्षेत्र फटा पड़ रहा है लेकिन जब हम अपने गिरेबान में झांक कर देखते हैं तो यह समझ में ही नहीं आता कि विकास हमारे गांव को कब मिलेगा सरकार की और प्रशासन की नजर हमारे अविकसित मल्लाहों के गांव को विकसित करने के लिए कब बीड़ा उठाया जाएगा? यहां पर भी दिलचस्प बात सामने आई इससे साफ जाहिर होता है कि वृद्धा पेंशन/ विधवा पेंशन या शादी और मृत्यु के समय मिलने वाली आर्थिक सहायता उसी व्यक्ति को दी जाती है कि जो पात्र हो या अपात्र हो दलाल के माध्यम से या रोजगार सेवक के माध्यम से सलूट मारते हैं थैली पाने के लिए थैले का मुंह खोलना पड़ता है की कहावत को सत्यार्थ करते हुए चलते हैं तो उसका लाभ मुहैया हो पाता है लेकिन जो इस सत्यार्थ से दूर रहते हैं उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता है। 70 वर्षीय सहतू ने बताया कि मैंने अपनी वृद्धा पेंशन के लिए एक बार तो ढाई सौ रुपए और दूसरी बार में ₹500 फार्म भरने के नाम पर कागज पूर्ति के लिए दिए लेकिन पेंशन मुझे आज तक प्राप्त नहीं हो सकी इस संबंध में दूसरे जागरूक और सम्मानित ने बताया कि यहां पर रोजगार सेवक विकासखंड में स्थापित कुर्सी पर बैठे पेंशन का कार्य देख रहे काउंटर पर राठोर से सीधा ₹1000 मांगते हैं जिसमें पेंशन बनवाने की पुरजोर कोशिश की जाती है जब यह पैसा की भरपाई कर दी जाती है जिसमें शेयर रोजगार सेवक और एडीओ तक होता है और जब तक यह कोरम पूरा नहीं होता है तब तक फार्म चाहे सौ वार भरा जाए और यदि राठौर की नजर तिरछी है तो पेंशन का पात्र व्यक्ति भी अपात्र हो जाता है यह हाल हैं मजरा पूरा खेरा का जहां पर लोग विकास की किरण देखने के लिए अपनी जीवन लीला को समाप्त कर चुके हैं या उनका अंतिम समय पूरा होने जा रहा है। क्या यह आश की जा सकती है की नई जनरेशन को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा?

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