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होलिका दहन::असत्य पर सत्य की विजय और अधर्म पर धर्म का साम्राज्य:पंडित श्री ब्रह्म कुमार मिश्रा आचार्य

चकरनगर(इटावा)रिपोर्टर:डॉ.एस.बी.एस.चौहान।

पुरानी परंपरा के अनुसार होलिका दहन के कार्यक्रम सृजन हेतु बीते दिवस पूर्णमासी के दिन होलिका का अधिष्ठापन किया गया। बताया जाता है कि इस होलिका दहन के पीछे शास्त्रों में बहुत ही सुंदर व्याख्यान है। प्रख्यात पंडित श्री ब्रह्म कुमार मिश्रा आचार्य जी ने बताया कि मैं जब श्रीमद्भागवत पुराण पढ़ता हूं तो उस समय इस होलिका दहन की कथा भगवान कृष्ण की लीला के समय में बताता हूं जिसमें असत्य पर सत्य की विजय और अधर्म पर धर्म का साम्राज्य से संबंधित बहुत ही रोचक कथा है उसी परंपरा के अनुसार आज भी हमारे देश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी यह सब होलिका दहन को किसी न किसी रूप में अनुसरण किया जाता है और मनाया भी जाता है। हमारे तो देश में यह परंपरा पुराने समय से चली आ रही है हमारे बुजुर्गों ने इस परंपरा को बनाया है और आज उन्हीं की सीख को लेते हुए हम लोग भी मनाते हैं यहां तक कि समी धर्मों से संबंधित सब एक दूसरे के गले मिलते हैं और भाईचारा को बढ़ावा देते हैं इसी प्रक्रिया के तहत होली धन्नो पूर्णमासी के दिन शुरुआत होती है जहां पर गांव के लोग अपने-अपने घरों से 5-5 कंडे /उपले ले जाकर एक निश्चित जगह पर रखते हैं जो आगे चलकर होलिका दहन के दिन इसमें नियुक्त व्यक्ति विशेष आग लगाता है फिर फाग का जश्न मनाया जाता है लोग इकट्ठा होकर ढोलक मंजीरा के बीच फगवा होली मनाते हैं एक दूसरे के ऊपर रंग गुलाल अबीर लगाते, डालते हुए एक दूसरे का मुंह मीठा करते हैं कराते हैं। यहां पर विश्राम सिंह 30 वर्ष बताते हैं इस होलिका दहन के बाद साख में लगने वाले चाचा व बहनोई, और भाभी के साथ होली खेलने में बहुत ही मौज आती है ईश्वर करे यह होली बार-बार और हर बार आए। जिससे आपस की बुराइयां दूर हो एक दूसरे के गले मिलकर शुभकामनाएं के साथ साथ ढेरों सारी बधाइयां भी देते हैं। बंगाली बाबू उम्र करीब 45 वर्ष बताते हैं कि यह सब होली के रंगारंग वातावरण में हम एक दूसरे के गले मिलकर जो द्वेष भावना या काली बुराई है उसे रंग व गुलाल अबीर से दबा देते हैं और दबाव नहीं देते हैं बल्कि उसे नेस्तनाबूद भी कर देते हैं। आपस में एक दूसरे के गले मिलकर वह किसी भी धर्म संप्रदाय का हो एक दूसरे के साथ प्रेम ब्यबहार का वातावरण सृजित करते हैं जो अगले साल तक मुझे बरकरार मिलता है। प्रदीप दीक्षित 51 वर्ष बताते हैं कि मैंने होली मनाने का जो हर्षोल्लास आज के 35 साल पहले देखा था उसमें आज बढ़ोतरी हुई है आपस के प्रेम खटास को दूर कर एक दूसरे के गले, भले ही दिखावा में मिलते हो लेकिन मिलते हैं और एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं और शुभकामनाओं का भी आदान-प्रदान होता है इस होली का का कार्यक्रम अष्टमी तक चलाया जाता है जिसे लोग फगवा होली अष्टमी के रुप में मनाते हुए अष्टमी के दिन ही इस कार्यक्रम से विदाई ले कर नवदुर्गा कि व्रत और कार्यक्रम में सम्मिलित हो जाते हैं सिंह वाहनी मां नवदुर्गा पाठ से लेकर पूजन हवन व्रत की क्रियाएं सुचारु रुप से चालू हो जाती हैं वहां भी हम अचरी कीर्तन भजन गाकर एक दूसरे के उज्जवल भविष्य की कामनाएं करने लगते हैं।

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