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रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस पर वरिष्ठ पत्रकार सह लेखक प्रदीप कुमार सिंह की कलम से विशेष प्रस्तुति

यह एक शुभ संयोग है कि रक्षा बंधन पर्व इस वर्ष भारत की आजादी के दिवस 15 अगस्त को पड़ा है। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता।

सत्य के महान खोजी महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को ‘करो या मरो’ का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। उन्होंने एक सच्चे राष्ट्र पिता के अधिकार से भरी दृढ़ता तथा कठोरता से भरकर अपने प्रिय पुत्रों के समान देशवासियों से कहा था कि हर व्यक्ति को इस बात की खुली छूट है कि वह अहिंसा पर आचरण करते हुए अपना पूरा जोर लगाये। हड़तालों और दूसरे अहिंसक तरीकों से पूरा गतिरोध अंग्रेजी शासन के खिलाफ पैदा कर दीजिए। सत्याग्रहियों को मरने के लिए, न कि जीवित रहने के लिए, घरों से निकलना होगा। उन्हें मौत की तलाश में फिरना चाहिए और मौत का सामना करना चाहिए। जब लोग मरने के लिए घर से निकलेेंगे तभी मानवता बचेगी। अब बस एक नारा ही हमारे अंदर प्रत्येक क्षण गंुजे ‘करेंगे या मरेंगे’। स्वतंत्रता के हर अहिंसावादी सिपाही को चाहिए कि वह कागज या कपड़े के एक टुकड़े पर ‘करो या मरो’ का नारा लिखकर उसे अपने पहनावे पर चिपका ले, ताकि सत्याग्रह करते-करते शहीद हो जाय तो उसे उस निशान के द्वारा दूसरे लोगों से अलग पहचाना जा सके, जो अहिंसा में विश्वास नहीं रखते।

रक्षाबंधन सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पवित्र बंधन जिसे जनमानस में रक्षाबंधन के नाम से सावन मास की पूर्णिमा को भारत में ही नही वरन् नेपाल तथा मारीशस में भी बहुत उल्लास एवं धूम-धाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन अर्थात रक्षा की कामना लिए ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टि पर विद्यमान है। इन्द्राणी का इन्द्र के लिए रक्षा कवच रूपी धागा या रानी कर्मवति द्वारा रक्षा का अधिकार लिए पवित्र बंधन का हुमायु को भेजा पैगाम और सम्पूर्ण भारत में बहन को रक्षा का वचन देता भाईयों का प्यार भरा उपहार है, रक्षाबंधन का त्योहार। रक्षाबंधन की परंपरा महाभारत में भी प्रचलित थी, जहाँ श्री कृष्ण की सलाह पर सैनिकों और पांडवों को रक्षा सूत्र बाँधा गया था।
आपसी सौहार्द तथा भाई-चारे की भावना से ओतप्रोत रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुस्तान में अनेक रूपों में दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरूष सदस्य परस्पर भाई-चारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। राजस्थान में ननंद अपनी भाभी को एक विशेष प्रकार की राखी बाँधती है जिसे लुम्बी कहते हैं। कई जगह बहनंे भी आपस में राखी बाँध कर एक दूसरे को सुरक्षा का भरोसा देती हैं। इस दिन घर में नाना प्रकार के पकवान और मिठाईयों के बीच घेवर (मिठाई) खाने का भी विशेष महत्व होता है।

रक्षा सूत्र के साथ अनेक प्रान्तों में इस पर्व को कुछ अलग ही अंदाज में मनाते हैं। महाराष्ट्र में ये त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से प्रचलित है। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारत में इस पर्व को अवनी अवित्तम कहते हैं। कई स्थानों पर इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।
सारी मानव जाति के हमदर्द तथा विश्वविख्यात कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर ने तो, रक्षाबंधन के त्योहार को स्वतंत्रता के धागे में पिरोया। उनका कहना था कि राखी केवल भाई-बहन का त्योहार नहीं है अपितु ये इंसानियत अर्थात मानवता का पर्व है, भाई-चारे का पर्व है। जहाँ जाति और धार्मिक भेद-भाव भूलकर हर कोई एक दूसरे की रक्षा कामना हेतु वचन देता है और रक्षा सूत्र में बँध जाता है। जहाँ भारत माता के पुत्र आपसी धार्मिक भेदभाव भूलकर भारत माता की रक्षा और उसके उत्थान के लिए मिलजुल कर प्रयास करते हैं।
रक्षा बंधन को धार्मिक भावना से बढ़कर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में बहिनें सीमा पर तैनात सैनिकों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं स्वयं की सुरक्षा के साथ उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। स्कूली छात्रायें तथा स्वयं सेवी संगठन देश की सुरक्षा में तत्पर देश के जवानों के लिए बड़े ही स्नेह व गर्व के साथ राखियाँ भेजते हैं।
देश की सुरक्षा में अपने घरों से दूर रह रहे वीर जवानों के लिए राखियां भेज कर हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। आज अगर हम सब देशवासी अपने को सुरक्षित महसूस कर पाते हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ सैनिक भाइयों की बहादुरी की वजह से है। हम इन सैनिक भाइयों से अपनी रक्षा की उम्मीद करते हैं, साथ ही उनकी दीर्घायु की कामना भी करते हैं। यही बहादुर भाई हमारी व हमारी मातृभूमि की रक्षा करते हैं। वे दिन-रात कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में रहकर देश की सुरक्षा करते हैं। अपने इन्ही वीर भाईयों के दम पर हम लोग अमन-चैन से रहते हैं। सैनिकों के रूप बहनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
राखी का यह त्योहार देश सहित विश्व की रक्षा, विश्व पर्यावरण की रक्षा तथा मानव जाति के हितों की रक्षा के लिए संकल्प लेने वाला पवित्र पर्व है। भारत सहित सारे विश्व में निवास करने वाले प्रवासी भारतीय बहिनें तथा बेटियाँ अपने प्रिय भाइयों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। रक्षा की कामना लिये भाई-चारे और विश्व एकता तथा विश्व शान्ति के धागे से बंधा हुआ है। जहाँ वसुधैव कुटुम्बकम् की सर्वोच्च भावना के साथ मानव जाति एक रक्षासूत्र में बंध जाती है।
विश्व एकता की शिक्षा द्वारा हम विगत 60 वर्षों से ऐसे प्रयास कर रहे हैं कि अब सारे विश्व को युद्धों तथा आतंकवाद से मुक्त किया जाये। युद्ध तथा आतंकवाद में अब किसी माँ की गोद तथा किसी बहन की मांग सुनी न हो। हमारे जीवन का ध्येय वाक्य ‘जय जगत’ के पीछे छिपी भावना युद्ध रहित तथा आतंकवाद रहित दुनिया बनाना है। जहाँ किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जय हो।
हम सभी को मिलकर स्वतंत्रता दिवस पर इन पंक्तियों ‘‘जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं’’ को साकार रूप देना है। वैश्विक युग में स्वदेश प्रेम का विस्तार विश्व प्रेम के रूप में विकसित होना ही ‘मानवता’ है।


21वीं सदी की विकसित मानवता की पुकार है कि जिस प्रकार देश संविधान तथा कानून से चलता है उसी प्रकार यदि भारत को पुनः विश्वगुरू बनाना है तो उसे सभी देशों की सहमति से विश्व की सरकार, विश्व की चुनी हुई संसद, विश्व का संविधान तथा प्रभावशाली विश्व न्यायालय बनाना पड़ेगा। विश्व की सभी समस्याओं का शान्तिपूर्ण समाधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में निहित है। हमारा विश्वास है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत ही विश्व के सभी देशों के साथ मिल-बैठकर एकता तथा शान्ति स्थापित करने की साहसिक पहल करेगा।
मानव जाति के लिए यह निर्णय करने का सबसे उपयुक्त समय है कि अब हमें विश्व की एक लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाकर युद्धों तथा आतंकवाद से धरती को समूल विनाश से बचाना है। अपने युग के सत्य के महान खोजी महात्मा गांधी जैसी महान विश्वात्मायंें ‘करो या मरो’ की एक बार पुनः निर्णायक तथा मार्मिक अपील मानव जाति से कर रही है।
संसार के प्रत्येक सत्य के खोजी को उस आवाज को मानवता के नाते कान लगाकर ध्यान से सुनना चाहिए तथा यथा शक्ति कुछ न कुछ योगदान करना चाहिए। अन्यथा जीवन छोटी-छोटी इच्छाओं में फंसकर व्यर्थ ही बीत जायेगा और अन्तिम समय यह कह-कहकर पछताना पड़ेगा कि समय तथा शक्ति के रहते कुछ कर न सके? हमें संसारी तथा संन्यासी के बीच का मार्ग अब तेज संसारी बनकर निभाना है। मानव जाति की गुफाओं से शुरू हुई महायात्रा की सर्वोच्च मंजिल विश्व एकता से बस एक कदम दूर है। विश्व एकता के लिए एक कदम आगे की ओर बढ़ाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों तथा महान शहीदों जैसे साहसिक जज्बे तथा मानवीय जुनून की परम आवश्यकता है।

प्रदीप कुमार सिंह
लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार

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