संजय कुमार मुनचुन : उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब सरकारी बंगला नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार (7 मई) को यह फैसला सुनाया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक कानून बनाया था, जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को रहने के लिए सरकारी बंगला प्रावधान किया गया था। इसी कानून को एक जनहित याचिका के जरिए चुनौती दी गई थी, जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार के बनाये कानून को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब अखिलेश यादव, मायावती, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह को प्रदेश में मिला सरकारी बंगला खाली करना होगा। उच्चतम न्यायालय ने कार्यकाल समाप्ति के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास में बने रहने की अनुमति देने वाले उत्तर प्रदेश के संशोधित कानून को रद्द करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के कानून में संशोधन मनमाना और पक्षपातपूर्ण है। यह समानता की संवैधानिक अवधारणा का भी उल्लंघन करता है।
इसके पहले भी एक बार सुप्रीमकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन आवास का नियम रद्द कर दिया था लेकिन तब यूपी की तत्कालीन अखिलेश सरकार नया कानून ले अाई थी। लेकिन एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के कानून को अमान्य घोषित कर दिया।
बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को लखनऊ में बड़े-बड़े बंगले आवंटित किये गए हैं। फिलहाल छह पूर्व मुख्यमंत्रियों के पास हजरतगंज के पॉश इलाके में कई-कई एकड़ में बने बड़े-बड़े सरकारी बंगले हैं। इन बंगलों पर इनको जीवन भर रहने का अधिकार दिया गया है। इसी अधिकार को गैरकानूनी मानते हुए ‘लोक प्रहरी’ नामक एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2017 में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र सरकारी खर्च पर इस तरह के बंगले देना गैरकानूनी है। इस पर हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मामले में उसका पक्ष जानना चाहा था।