श्रीनिवास सिंह मोनू
लखनऊ। एक ओर सरकार तालाबों के सौंदर्यीकरण में अच्छा खासा बजट खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर जल संरक्षण के लिए गांवों में बने तालाबों का अवैध कब्जेदारों द्वारा कब्जा किए जाने के कारण उनके अस्तित्व का ही संकट उत्पन्न हो गया है। धीरे-धीरे वह लगभग गायब होते जा रहे हैं। पुराने जमाने में लोग नदियों से लेकर तालाबों तक के जल को पीने के लिए प्रयोग में लिया करते थे। तमाम पशु पक्षियों के लिए साफ एवं स्वच्छ जल इन तालाबों में उपलब्ध रहता था, किंतु धीरे-धीरे जैसे समय बीतता गया नए – नए प्रयोग सामने आने लगे। अब आम जन इनका पानी पीना तो दूर उनके रखरखाव से भी दूर भागने लगा है। परिणाम स्वरूप सभी गांव में तालाब या तो जंगल बन गए हैं या फिर उन्हें अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है।
सरकार द्वारा जमीन के गिरते जलस्तर को देखते हुए एक कानून भी पास किया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों के तालाबों को आदर्श तालाब के रूप में विकसित किया जाए जिससे संपूर्ण गांव का पानी तालाब में इकट्ठा हो व भूजल दोहन से जो समस्याएं उत्पन्न हो रही है उसे कम किया जा सके। आदेश होते ही ग्राम प्रधानों द्वारा आदर्श तालाब या फिर गांव के दूसरे तालाबों को मनरेगा के तहत खुदवा कर उसके बजट का बंदरबांट तो कर लिया गया किंतु अधिकतर गांवों के तालाबों में कोई दबंग इस पर कब्जा न करें ऐसा सुनिश्चित नहीं किया गया, जिसके चलते तालाबों के अधिकतर भाग पर भूमाफियाओं द्वारा अवैध रूप से कब्जा जमा लिया गया है।
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इसकी हकीकत जानने के लिए हमें कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है राजधानी के दूसरे विकास खंडों के गांवों में बने तालाबों के साथ साथ सरोजनी नगर विकास खंड के अधिकतर गांव जिनमें नारायणपुर, रौतापुर, रामदासपुर, अमावा, लतीफ नगर, मवई, पिपरसंड, रहीम नगर जैसे दर्जनों गांव शामिल हैं इन गांवों में बने तालाबों के अधिकतर भाग पर दबंगों का कब्जा हो चुका है और प्रशासन भी इन दबंगों के आगे नतमस्तक है। जिसके चलते तालाबों में आने वाला पानी तालाबों तक न आकर गांव की नालियों में ही बजबजाता रहता है, जिससे हमेशा भयंकर बीमारियों का खतरा बना रहता है। साथ ही भूजल दोहन से उत्पन्न समस्या का भी कोई समाधान होता नहीं दिख रहा है।
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