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ब्लाक प्रमुख पद को हथियाने में बड़े-बड़े दिग्गजों की निति हुई बिफल

डॉ.एस.बी.एस.चौहान।

चकरनगर,इटावा।चंबल घाटी में बहु चर्चित विकासखंड चकरनगर के ब्लाक प्रमुख पद को हथियाने के लिए जहां पूर्व समय में कुख्यात दस्यु सरगनाओं के अनुरोध पर दस्यु सम्राटों के फरमान हावी हुआ करते थे और उनके आदेशों के सामने शासन और प्रशासन भी बौना दिखाई देता था। समय के चलते दस्यु सरगनाओं का सफाया हो गया। वेताज बादशाहों से विहीन यह चंबल घाटी राजनीतिक दबाव या यूं कहें कि ताकतवर शक्तियों के बीच आज भी यहां की जनता प्रताड़ित दिखाई दे रही है और चुनाव धनबल बाहुबल के द्वारा जीतने के दावे आज भी प्रस्तुत होते दिखाई दे रहे हैं। जबकि वर्तमान समय में अविश्वास प्रस्ताव के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदेश के सबसे अधिक खर्चीली धनबल के सहारे चुनाव लड़ा जा रहा है। इस ब्लाक प्रमुख की कुर्सी करोड़ों का बारे का न्यारा कर अपना अपना दावा प्रस्तुत करने वाले दल आज भी अपने हथकंडे अपनाने में मशगूल है। वहीं दोनों दलों के अंदरूनी सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस पद को हथियाने के लिए बाहुबलियों और कुबेर पतियों के द्वारा लगभग 3 – 4 करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया गया है ऐसी जानकारी विश्व सूत्रों के द्वारा प्राप्त हो रही है क्योंकि अधिक खर्चीले इस चुनाव में निर्वाचन आयोग के नियम कानूनों को मानो ताक में रख कर पत्थर तले दवा दिया गया हो और यह सभी अंग बने हुए हैं वहीं प्रशासन भी मानो गांधारी पट्टी बांधकर यह सब कुछ देखने को मजबूर हो। प्राप्त जानकारी के अनुसार विकासखंड चकरनगर के अंतर्गत त्रिस्तरीय चुनाव के दौरान चुनाव संपन्न कराया गया था जिसमें 2 प्रत्याशियों ने अपनी अपनी ताकत का आजमाइश कराते हुए चुनाव प्रशासन को भी सकते में लाकर खड़ा कर दिया था यहां पर भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है बता रहा हूं मतदाताओं ने दोनों ही प्रत्याशियों को बराबर बराबर मत देकर चुनाव प्रशासन को आश्चर्यचकित कर दिया जिस पर प्रशासन को चुनाव से संबंधित अधिकारियों के द्वारा संपर्क साधना पड़ा क्योंकि यहां पर पैसे की बेहद खर्चीली व्यवस्था के तहत यह चुनाव लड़ा गया था तो इसके लिए घनश्याम वर्मा तत्कालीन उप जिला अधिकारी चकरनगर के मौखिक प्रस्ताव पर यह तय किया गया की पर्ची डलवाकर भाग्य की आजमाइश कर ली जाए जिस पर दोनों प्रत्याशी सहमत हो गए और पर्ची डाली गई वह पर्ची प्रभादेवी राजावत के पक्ष में भाग्य आजमाइश के तहत निकली जिस पर उन्हें कुर्सी आसीन कर दिया गया। चलते अविश्वास प्रस्ताव के कुर्सी से जबरन हटाकर चुनाव अखाड़ा तैयार हो गया किसके लिए चुनाव आयोग ने 9 तारीख फिक्सेशन रखी जिसके तहत लगभग 6 माह से दोनों ही दलों के नेताओं ने अपने अपने कब्जे में मतदाताओं को ले लिया। वह बात अलग है कि इन्हें इतना धन उपलब्ध कराया गया कि यह थाने में अपनी शिकायत भी पंजीकृत नहीं करवा सकते पैसे की मस्ती में चूर पराधीन यह मतदाता अपनी स्वेच्छा से मताधिकार का प्रयोग भी नहीं कर सकते और यदि करते हैं तो जो खर्च उनके नीचे हुआ है वह उनकी चमड़ी से वसूल कर लिया जाएगा। क्योंकि पिछली बार ऐसा हुआ जो सूत्रों के माध्यम से जानकारी मिली कि जिन्होंने दोनों पक्षों से यदि एक पक्ष से 5 लाख तो दूसरे पक्ष से 7लाख प्राप्त कर अपने मताधिकार का प्रयोग किसी को वादा तो किसी को दे डाला। जिस पर दोनों दल हावी हो गए और ऐसे मतदाताओं की जान आफत में लटक गई। ईश्वर की कृपा से समय नहीं बीता अविश्वास का प्रस्ताव आया उसके बाद यह चुनाव की प्रक्रिया तैयार की गई महीनों से परे यह मतदाता जिन्हें बीडीसी /क्षेत्र पंचायत सदस्य कहते हैं कोई भोपाल तो कोई लखनऊ यानी जहां स्वर्ग में भी जाना चाहे तो वहां के लिए भी इनको सोने की नसेनी प्राप्त है और यह वहां पर भी शेर सपाटा कर वापस आते हैं। 9 तारीख को यानी आज प्रतिबंधित मताधिकार का प्रयोग करेंगे अब यहां पर यह कहा जाए कि प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है ऐसा नहीं यह कोई चूक नहीं है यह सर्वविदित है लेकिन उसके बावजूद भी प्रशासन कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं है। यदि यही चुनाव स्वतंत्र मताधिकार के तहत होता तो मौज और आनंद कुछ और ही होता। मतदाताओं ने भी यह निश्चित कर लिया है कि आज इसे बनाओ तो कल उसे बनाओ क्योंकि हाथ पैर चलाने से ही लक्ष्मी पास में आएगी और अपना स्वर्ग नसैनी भी बनी रहेगी। धन्य है यह लक्ष्मी पतियो जो स्वतंत्र निर्णय लेकर अपनी मनमानी पर तुले हुए हैं यदि ऐसी कार्यवाही को जिले की जिला प्रमुख /जिलाधीश महोदया अपने संज्ञान में लेते हुए अपनी पुलिस को यह हिदायत होती कि हर मतदाता तो उसके कारणों का पता करके अंग्रेजी हुकूमत और मनमानी पर उतारू नहीं हो पाते। भला यहां पर इस बात का उल्लेख निष्पक्षता पूर्वक किया जा सकता है कि यदि पहले चंबल घाटी में दस्यु सम्राटों के फरमान दस्यु शरण दाताओं के इशारे पर चला करते थे तो आज धवलों के इशारे पर पूंजीपतियों का फरमान जारी है। मतदाता चंबल घाटी का कभी भी स्वतंत्र होकर वोट नहीं डाल पाया और ना आज डाल पाने की स्थिति में है। यहां की जनता को सदैव दूसरे का गुलाम बने रहना लाजमी सा लग रहा है और इसके लिए कोई आज तक पुख्ता इंतजाम नहीं हो सका। चुनाव प्रक्रिया के तहत यह बात सत्य है कि भरथना से लेकर चकरनगर चौराहा और चकरनगर चौराहा से लेकर विकासखंड मुख्यालय तक पुलिस इस तरीके से छाई हुई कि जैसे मानो छावनी बनी हो परिंदा भी पर नहीं मार सकता यह बात सत्य है लेकिन क्या इस चीज को नकारा जा सकता है कि इतनी शक्ति इतनी व्यवस्था किस लिए सिर्फ इसलिए कि मतदान प्रभावित ना हो लेकिन यही मतदान अगर 6 महीने पहले प्रभावित कर अपने कब्जे में ले लिया गया हो तो क्या इसके लिए प्रशासन के पास कोई कानून, कोई धारा, कोई व्यवस्था नहीं है और यदि नहीं है तो पहले दस्यु सम्राटों का फरमान था तो अब पूंजीपतियों का कब्जा। चंबल घाटी का स्वतंत्र बोट किसी भी कीमत पर किसी भी सरकार के द्वारा नहीं डलवाया जा सकता। आज उन घरों की हालत इतनी मजबूत हो गई है कि जिन्होंने क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर अपनी कुर्सी हतियाई है आज वह 10 – 10 लाख व 20 – 20 लाख के व्यक्ति बन गए हैं। आज वह जो भी मुंह से निकालते हैं वही नसीब होता है। तो भला इसकी कार्यवाही के लिए कौन थाने जाएगा और थाने जाएगा तो क्या थानाध्यक्ष की औकात कि किसी पूंजीपति/ लक्ष्मीपति के खिलाफ मुकदमा कायम कर ले। ऐसा सिर्फ कागजों में बहाल हो सकता है लेकिन जमीनीं हकीकत यह शो नहीं करती है और यदि यह संभव है कानून में कोई दम है तो तेज तर्रार कानून में माहिर जिला प्रमुख श्रीमती सेल्वा कुमारी जे और पुलिस प्रमुख श्री वैभव कृष्ण जी को लगता है यह मामला संज्ञान में नहीं दिया गया वरना इस पर कोई ना कोई कार्यवाही संभव थी। हालांकि इस संबंध में कई बार सोशल मीडिया पर और समाचार पत्रों में पूर्व में भी लिखा गया लेकिन कोई संज्ञान न लिए जाने से आजविडंबनापूर्ण स्थिति बनी हुई है। या यूं कहें कि चंबल घाटी के गलियारों से छन छन कर मिली खबरों के अनुसार इस क्षेत्र पंचायत में 44 क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं जिनमें से 1 प्रत्याशी के कब्जे में 16 मतदाता और दूसरे प्रत्याशी के कब्जे में 14 मतदाता बताऐ जा रहे हैं और 14 मतदाता जो स्वतंत्र घूम रहे हैं उनका अपना मतदाता अधिकार सुरक्षा से होगा। इनमें 14 के ऊपर कोई दबाव भी है तो वह परिलक्षित नहीं हो रहा है क्योंकि वह जी चाहे शादी में खेत खलिहान में हर जगह आ जा रहे हैं और बाजार में भी घूमते दिखाई देते हैं। बाकी के भूमिगत मतदाता सिर्फ वोट डालने के समय ही दिखाई देंगे लोगों का मानना है कि इन मतदाताओं की सेहत इतनी खूबसूरत हो गई है जो 24 घंटे ऐशो-आराम और हर प्रकार के सुख संसाधनों से युक्त अपना दही बिलो रहे हैं। घर पर खर्चे के लिए पैसे की भरमार की जा रही है जिससे कहीं किसी प्रकार का कोई पता नहीं ले। अब देखना यह है कि यह मतदाता अपने दांव बनने वाले प्रमुख पर 1 साल के बाद किस तरीके से चलाते हैं क्योंकि यहां पर यह बात जरूर दोहराई जा सकती है कि शायद जिससे इनकी मान्यता पुनः हाथी पर चढ़कर इनके दरवाजे आकर शंख बजाय।

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