डेस्क : कविता नियोजित करके नहीं लिखा जा सकता है ये बातें मैथिली के युवा साहित्यकार नारायण झा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित एंव श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर नामक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही। उनसे बातचीत करने के लिए मैथिली के युवा लेखक प्रणव नार्मदेय मौजूद थे।
लेखन वृति में आने के प्रश्न पर नारायण झा ने कहा कि स्नातक करने के उपरांत अखबार में लेखन की शुरुआत “पाठकनामा” से की। मैथिली में लेखन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विनय मोहन जगदीश के प्रेरणा से लेखन की शुरुआत की।
अपने लेखन में कविता रचना पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि बचपन में विद्यालय में कविता पाठ कराई जाती थी जिससे कि मस्तिष्क पर उसका प्रभाव रहता है जिसके कारण कविता लिखना शुरू किया। कविता लेखन की धारणा पर उन्होंने कहा कि समाज, देश , प्रकृति में जो समस्याएं होती है वही कविताओं को जन्म देती है।
उन्होंने अपनी पहली कविता “शिक्षकक प्रशिक्षण” नामक शीर्षक से लिखी। पहली कविता जो मुद्रित हुई वो “रविन्द्र नाथ ठाकुर” थी। अपनी कविता शिल्प पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने तुकबन्दी से शुरुआत की किंतु अब छंदमुक्त में सहजता अनुभव करता हूँ। अपने कविता पर पहले के पीढ़ी के प्रभाव पर बात करते हुए कहा कि बाबा नागार्जुन, प्रणव मिश्र, राजकमल, हरेकृष्ण झा से प्रेरणा मिलती है। कविता में व्याकरण , मनोरंजन एवं विचारधारा पर उन्होंने कहा कि कविता अब मनोरंजन की वस्तु नहीं रही है। कविता में विचारधारा को लाना काव्य को संकुचित करने के जैसा है। सोमदेव के सहजतावाद के बाद सहज भाव से कविता लिखा जाने लगा। समकालीन कविता में नवयुवक की कविता पर उन्होंने कहा कि कविता अब ज्यादा संजीदा और प्रभाविक लिखी जा रही है।
लेखक नारायण झा ने कहा कि एक शिक्षक होने के नाते में बच्चों की पढ़ाई भी मातृभाषा में करवाता हूँ और चाहता हूं कि हर शिक्षक ऐसा ही करें। आगे उन्होंने अपने कार्य योजना पर बात करते हुए कहा कि विश्व साहित्य के अनुवाद पर काम किया जाएगा तथा लेख, निबन्ध इत्यादि विधाओं में काम करना है। इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया।
इस कार्यक्रम में पद्मश्री उषा किरण खान, धीरेंद्र कुमार झा, कथाकार अशोक, उमेश मिश्र, प्रेमलता मिश्रा, रामानंद झा रमण, अनीश अंकुर, शाहनवाज खान आदि लोग उपस्थित थे।