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मैथली साहित्यकार अरुण लाल दास का निधन, श्रद्धांजलि और साहित्य जगत में शोक की लहर !

कवि कथाकार अरुण लाल दास

मानव मन को सूक्ष्मता से पढ़ने की अदभुत क्षमता के कवि थे अरुण

मैथिली साहित्य को सुदीर्घ कलेवर प्रदान करने वाले कवि अरुण लाल दास का हृदयाघात से निधन

मैथिली साहित्य जगत में शोक, कवि साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलि

झंझारपुर/संजीव शमा :: मैथिली साहित्य के अनन्य सेवक ‘जेना होइत हो भोर’ मैथिली कविता संग्रह के रचनाकार कवि अरुण लाल दास का बीते शनिवार की रात हृदयाघात से जिले के कलुआही प्रखंड अंतर्गत अपने पैतृक गांव ढंगा पुबारी टोल में निधन हो गया। वे 68 वर्ष के थे। बेंगलुरु से उनके भतीजा विकास लाल दास ने बताया कि पिता स्व. दुर्गानन्द लाल दास व माता स्व0 अन्नपूर्णा देवी के पुत्र कवि अरुण चार भाई की भैयारी में सबसे बड़े थे। वे मेधावी छात्र के रूप में एमएस हाई स्कूल लोहा से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा दरभंगा स्थित सीएम साइंस कॉलेज से प्राप्त की। उन्होंने बताया कि वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से उच्च अधिकारी पद से रिटायर्ड थे। कवि अरुण लाल दास के आकस्मिक निधन की खबर वायरल होते ही मैथिली साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर सुबह से ही लोग शोक संवेदना प्रकट कर आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने में लगे हैं। साहित्यकार व कवि डॉ संजीव शमा ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि कवि अरुण साहित्य के गंभीर पाठक के साथ ही अति सहृदय व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। उनमें मानव मन को सूक्ष्मता से पढ़ने की अदभुत क्षमता विद्यमान थी।

कवि अरुण की लिखी मैथिली कविता संग्रह ‘जेना होइत हो भोर’

उन्होंने कहा कि कवि अरुण बैंक सेवा से निवृत्त होने के बाद साहित्य सृजन में लीन होकर अपनी सृजनशीलता से मैथिली रचना भंडार को समृद्ध करने में लगे रहे। उनकी साहित्यिक रचनाओं में कविता, कथा, लघुकथा, लप्रेक, बीहनि कथा, गज़ल, पुस्तक समीक्षा के अलावा संस्मरण आदि विधा शामिल रहा है। कम समय में अपनी लेखनी के धार से वे साहित्य जगत में जाज्वल्यमान प्रकाश की तरह दमक उठे। साहित्यकार डॉ शमा ने कहा कि उनकी रचना कतिपय विधाओं में मैथिली भाषा की पत्रिका कर्णामृत, कर्णप्रिय, घर बाहर, मिथिला दर्शन, मिथिला मोद, मिथिलांगन, भारती मंडन, अर्पण के अलावा अखबार मैथिली पुनर्जागरण प्रकाश आदि में प्रकाशित है। बीते दिनों कवि अरुण गाम घर : नवानी द्वारा आयोजित रंगोत्सव एवं हैप्पी फ़ॉर यू द्वारा आयोजित काव्य धारा कार्यक्रम में अपनी कविताओं का सुंदर वाचन कर श्रोताओं का मन मोह लिया था। वे सदैव अपनी नवीन रचनाओं को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रचनाधर्मिता को जीवंत रखने का कार्य करने में लगे थे। सेवानिवृत्ति के बाद अक्सर वे महानगर में रहने लगे थे बावजूद उनके चिंतन में हमेशा गांव घर बसा रहा।

कथागोष्ठी के दसवें आयोजन ‘कथा विशेश्वर’ में कवि अरुण लाल दास पुस्तक विमोचन में

साहित्यकार मनोज कर्ण ने कवि लेखक अरुण के निधन पर अपनी संवेदना प्रकट करते हुए कहा कि अभी तो साहित्य आपके पैर पर खड़ा होने की प्रतीक्षा ही कर रहा था और आप विदा हो लिये। कवि अरुण मातृभाषा मैथिली के कितने बड़े अनुरागी थे उनकी इस रचना से पता चलता है। वे लिखते हैं – ‘अपनहि घरमे माय उपेक्षित तहिना मातृभाषा, घर बाहर हम इंग्लिश छांटी अपन प्रभुत्व ताहिमे आंकी, पढ़ि लिखि हम करी चाकरी हमर यैह परिभाषा।’ कवि अरुण अपने पीछे पत्नी मीरा लाल दास पुत्र मनीष लाल दास ( मल्टी नेशनल कम्पनी), पुत्री ज्योति लाल कर्ण (मिथिला पेंटिंग आर्टिस्ट), आभा लाल दास (एसबीआई मैनेजर) के अलावा पोते पोतियों, नाति नतिनी से भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। उनका अंतिम संस्कार गांव में रविवार को किया गया। कवि अरुण के निधन पर कवि डॉ शुभ कुमार वर्णवाल, कुमार साहब, डॉ दिलीप कुमार दास, अमरनाथ झा, डॉ संजीव शमा, उदय जायसवाल, डॉ अनिल ठाकुर, डॉ श्रीपति सिंह, डॉ विनय विश्वबंधु, अमरकांत लाल, सत्येंद्र कर्ण, अजय कुमार दास, डॉ महेन्द्र नारायण राम, जगदीश प्रसाद मंडल, डॉ दीपक कुमार सिंह, समीर कुमार दास आदि कवि साहित्यकारों ने अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए ईश्वर से आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

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