झंझारपुर मधुबनी/डॉ.संजीव शमा : दिव्यांगजन के हकों के लिए जीवन भर लड़ने वाले और सतत उनकी सहायता के लिए तत्पर रहने वाले जिले के तेघरा गांव निवासी डॉ.गजेन्द्र नारायण कर्ण अब हमारे बीच नहीं रहे। 55 वर्षीय डॉ.कर्ण पिछले कुछ वर्षों से कैंसर से जूझ रहे थे। उनका अंतिम संस्कार बीते सोमवार को दिल्ली में कर दिया गया।डॉ.कर्ण बचपन में ही पोलियो के शिकार हो चुके थे बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।विपरीत परिस्थिति में रहकर उन्होंने जीवन जीने की राह को तलाशा। वे अपने आप में इसके जीते-जागते उदाहरण थे।
उक्त बातें आईडीपीएस के चेयरमैन एन.के.कर्ण ने कही। उन्होंने कहा कि डॉ. गजेन्द्र नारायण कर्ण का मिथिला के छोटे से गाँव तेघरा से जेएनयू तक का सफर एक संघर्ष गाथा के रूप में याद रखा जाएगा ।जेएनयू के ‘अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान’ से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले डॉ. कर्ण अकादेमिक उपेक्षाओं के भी शिकार कम नहीं हुए, बावजूद उनके जोश में कभी कोई कमी नहीं देखा गया।उनके प्रयास से ही यूजीसी द्वारा ‘विकलांगता-अध्ययन’ को एक विषय के रूप में मान्यता मिली जिसे एक बड़ी सफलता के रूप में स्वयं डॉ कर्ण मानते थे। डॉ.कर्ण नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन में डीजेबलिटी कोर ग्रुप के मेंबर थे। इसके अलावा वे नीति आयोग के पैनल में रुरल इकोनोमी, ग्लोबल रिसर्च नेटवर्क जैसी कई राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़े हुए थे।उन्होंने अपनी एक संस्था बनाई थी ‘सोसायटी फ़ॉर डिजेबिलिटी एंड रिहैबिलिटेशन स्टडीज’ जिसके माध्यम से उन्होंने देश भर में विकलांगों के अधिकार के लिए अंतिम समय तक संघर्षशील रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी की प्राध्यापिका डॉ.कर्ण की धर्मपत्नी डॉ.संध्या ने बताया कि डॉ.कर्ण ने अपनी संस्था के माध्यम से हजारों दिव्यांगों को ह्वीलचेयर, लैपटॉप आदि देकर सबल बनाने में अपना योगदान दिया। उनके द्वारा विकलांगता विषय पर देश भर में सैकड़ों सेमीनार का आयोजन भी किया जो अविस्मरणीय है।
पत्नी प्रो.(डॉ.)संध्या के साथ डॉ. गजेन्द्र नारायण कर्ण
डॉ कर्ण के दिल्ली में काफी करीबी रहे प्रो.श्रीधरम ने दूरभाष पर बताया कि जेएनयू में दिव्यांग जन के लिए जो भी बैरियर फ्री कैम्पस बना उसको तैयार करवाने में डॉ.कर्ण का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि भारत की ‘डीजेबलिटी समस्या’ पर लिखी गई उनकी अनेक पुस्तक अंतर्राष्ट्रीय अकादेमिक संस्थाओं में संदर्भ ग्रंथ के रूप में पढ़ाई जाती है। प्रो. श्रीधरम ने बताया कि वे विकलांगता पर अँग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी ‘विकलांगता समीक्षा’ नाम से जर्नल का प्रकाशन करते थे जिसके संपादन का दायित्व उन्होंने मुझे दिया था।हम अगले अंक की तैयारी में लगे थे और वे चल बसे। उनके निधन से मिथिलांचल समेत संपूर्ण राष्ट्र को बहुत बड़ी क्षति हुई है।
जीवन-संघर्ष के योद्धा मिथिला के सपूत डॉ.गजेन्द्र नारायण कर्ण के निधन पर जिले के शिक्षाविद डॉ.महेंद्र नारायण राम,कुमार रामेश्वर,रतन रवि, भागीरथ दास,अजय दास, कुमार जितेन्द्र,अनुप कश्यप, प्रकाश कर्ण,डॉ.संजीव शमा, कुमार साहब,डॉ.अनिल ठाकुर,काशीनाथ झा किरण, विनय विश्वबंधु,अमरकांत लाल,सतीश साजन,प्रो.प्रीतम निषाद,प्रजापति ठाकुर, दिलीप कुमार झा,डॉ.हेमचन्द्र झा, अजित आज़ाद, मलयनाथ मिश्र,प्रो. सर्वनारायण मिश्र,प्रदीप पुष्प आदि प्रबुद्ध लोगों ने संवेदना प्रकट करते हुए विनम्र श्रद्धांजली दी है ।