सामाजिक समरसता का आईना है ईद-उल-फितर का त्योहार : मो.रिजवान
झंझारपुर मधुबनी/डॉ संजीव शमा : रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजेदार द्वारा रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद-उल-फितर का ऐलान होता है। इस तरह से यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को ‘अल्फा’ कहा जाता है। लोग अल्लाह से दुआएं मांगते व रमजान के रोजे और इबादत की हिम्मत के लिए खुदा का शुक्र अदा करते हर तरफ दिखाई पड़ते हैं ।
लोगों में उमंग और उत्साह यह बयान करता है कि लो ईद आ गई। ईद-उल-फितर पर्व मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है । जो न सिर्फ समाज को एक दूसरे से को मजबूती से जोड़ता है, बल्कि यह पैगंबर मोहम्मद के दिये गए प्रेम और सौहार्द भरे संदेश को जन जन में फैलाता है। ईद को मीठी ईद भी कहा जाता है । यह त्योहार खासकर हिंदुस्तानी समाज के ताने-बाने और उसकी भाई चारे की सदियों पुरानी परंपरा का द्योतक है।ईद जैसे पवित्र त्योहार के दिन विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग सभी गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं ।
ईद का प्यारा व्यंजन सेवइयां अमूमन दिल की हर तल्खी की कड़वाहट को मधुरता से लवरेज कर देता है। ईद-उल-फितर एक महीने तक भूख-प्यास सहन करके खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का दिया गया सबसे बड़ा तोहफा है। इस त्योहार की खूबी सेवइयां में लिपटी मोहब्बत की मिठास है। ईद-उल-फितर एक रूहानी महीने में कड़ी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला रूहानी पैगाम है। तालमेल और मोहब्बत का मजबूत बंधन है ईद, रोजेदार मो. रिजवान बताते हैं कि यह त्योहार इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना है। एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी समर्पण से लगाया जा सकता है। दुनिया में चांद देखकर रोजा रहने और चांद देखकर ईद मनाने की पुरानी परंपरा रही है । आज के डिजिटल युग में तमाम बहस-मुबाहिसे के बावजूद रोजा के साथ सनातनी परंपरा का जो रिवाज कायम है वह हर कस्बे मोहल्ले व शहर में देखा जा सकता है । व्यापक रूप से देखा जाए तो रमजान और उसके बाद ईद व्यक्ति को एक इंसान के रूप में सामाजिक जिम्मेदारियों को अनिवार्य रूप से निभाने का दायित्व भी सौंपती है।
रमजान के महीने में हर सक्षम बंदा को जकात के रूप में अपनी कुल संपत्ति के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीब निःसहाय लोगों में बांटना होता है। इससे समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन तो होता ही है, साथ ही गरीब रोजेदार भी अल्लाह के इनामरूपी त्योहार को मना पाते हैं। ईद की वजह से समाज के लगभग हर वर्ग को किसी न किसी रूप में लाभ पहुंचता है। चाहे अर्थ लाभ हो या फिर सामाजिक समरसता का । हमारे हिंदुस्तान में गंगा-जमुनी तहजीब का पैगाम है ईद का त्योहार । जो एक दूसरे के साथ मिलकर उसे और जवां और खुशनुमा बनाता है। हर धर्म और वर्ग के लोग इस दिन को तहेदिल से मनाते हैं। ईद के दिन सिवइयों या शीर-खुरमे से मुंह मीठा करने के बाद जब छोटे-बड़े, अपने-पराये, दोस्त-दुश्मन गले मिलते हैं तो चारों तरफ मोहब्बत का नजारा देखने को मिलता है। खुशी से दमकते चेहरे पर इंसानियत का पैगाम झलकता है।
कुरआन के अनुसार पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को ‘ईद’ कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम दिया गया है ।ईद हमें यह अहसास कराता है कि पूरी मानव जाति एक है और इंसानियत ही उसका मजहब है।