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अलविदा की नमाज :: अल्लाह से बख्शीश के लिए नम हुईं आंखें

डेस्क : माह-ए-मुबारक रमजान का आखिरी जुमा यानी अलविदा को शहर की जामा मस्जिद बाकरगंज, दरभंगा टावर स्थित जामा मस्जिद के साथ ही तमाम मस्जिदें रोजेदारों की तादात के सामने छोटी पड़ गई। हर एक रोजेदार की आंखे रमजान की विदाई पर नम नजर आई। हजारों की तादात में रोजेदारों ने सजदे में सिर झुकाया। खुदा की इबादत के जज्बे से लबरेज रोजेदारों ने मुल्क की तरक्की व खुशहाली के लिए दुआ की। जुमा अलविदा की तैयारियां शहर में सुबह से ही शुरू हो गई थी। रोजेदारों ने नई टोपी और नया लिबास पहन रखा था। इत्र की खुशबू फैल रही थी। जुबान पर अल्लाह का जिक्र करने के साथ ही रोजेदारों ने सुबह से ही मस्जिदों का रुख कर लिया था। पहली सफ में जगह पाने का उत्साह सुबह 9 बजे से ही रोजेदार मस्जिदों में पहुंचने शुरू हो गए थे। पहली सफ में जगह पाने के लिए सभी लोगों में उत्साह नजर आ रहा था। लबों पर दरूद-ए-पाक का विर्द था। नजरों में अल्लाह से बख्शीश की गुहार झलक रही थी। सभी की आंखों में अल्लाह की रहमत की बारिश का इंतजार था।

जामा-मस्जिद बाकरगंज और दरभंगा टावर स्थित जामा मस्जिद पूरी तरह भरी नजर आई। जगह पर्याप्त न होने के चलते तमाम लोगों को सड़कों एवं आसपास के लोगों के मकानों की छतें और दुकानों के अंदर भी नमाज अदा की। धूप की तपिश में लोगों की जुबान पर अल्लाह का जिक्र था। हर कोई आज खुदा की रहमतें लूटने आया था। इसके अलावा जिले के किलाघाट, दुमदुमा, करमगंज, अब्दुल्लाखां, गंज, बेता, नीमचौक, फैजउल्लाखां, कटहलवाड़ी, शिवधारा, शिशो समेत सैकड़ो मस्जिदें रोजेदारों से भरी रही। मस्जिद में नमाज अदा करने आने वाले रोजेदारों को वजू की दिक्कत का सामना न करना पड़े, इसके लिए लोगों ने घरों के बाहर पानी का इंतजाम किया था। वहीं नगर निगम की तरफ से टैंकर की भी व्यवस्था की गई थी, जिससे रोजेदारों को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े। नमाज अदा करने के लिए शुक्रवार को मस्जिद पर रोजेदार पूरी तैयारी के साथ आए थे। अलविदा जुमा में तकरीर के दौरान इमाम ने इसी के साथ ही बताया कि पूरे अमन के माहौल के साथ अल्लाह के इस ईनाम की खुशियों को एक-दूसरे के साथ बांटे। आपसी भाईचारा कायम रखे।

इस दौरान जामा मस्जिद व उसके आसपास कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। इसके अलावा हर प्रमुख चौराहा पर भी भारी फोर्स तैनात था। रमजान उल मुबारक महीने का आखिरी जुमा यानी अलविदा जुमा रोजेदारों के लिए इस जुमे की काफी अहमियत होती है। माना जाता है कि अलविदा की नमाज में साफ दिल से जो भी दुआ की जाती है, वह जरूर पूरी होती है। अलविदा का मतलब है किसी चीज के रुखसत होने का यानी रमजान हमसे रुखसत हो रहा है। इसलिए इस मौके पर जुमे में अल्लाह से खास दुआ की जाती है कि आने वाला रमजान हम सब को नसीब हो। रमजान के महीने में आखिरी जुमा (शुक्रवार) को ही अलविदा जुमा कहा जाता है। अलविदा जुमे के बाद लोग ईद की तैयारियों में लग जाते है।

अलविदा जुमा रमजान माह के तीसरे अशरे (आखिरी 10 दिन) में पड़ता है। यह अफजल जुमा होता है। इससे जहन्नम (दोजक) से निजात मिलती है। अल्लाह ने इस जुमे को सबसे अफजल करार दिया है। हदीस शरीफ में इस जुमे को सय्यदुल अय्याम कहा गया है। माहे रमजान से मुहब्बत करने वाले कुछ लोग अलविदा के दिन गमगीन हो जाते हैं।

यह आखिरी असरा है, जिसमें एक ऐसी रात होती है, जिसे तलाशने पर हजारों महीने की इबादत का लाभ एक साथ मिलता है। यूं तो जुमे की नमाज पूरे साल ही खास होती है पर रमजान का आखिरी जुमा अलविदा सबसे खास होता है। अलविदा की नमाज में साफ दिल से जो भी दुआ की जाती है, वह जरूर पूरी होती है।

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