डेस्क : बिहार प्रदेश युवा जदयू के निवर्तमान संगठन सचिव सह मुजफ्फरपुर नगर के प्रभारी राजेश्वर राणा उर्फ बिल्टू सिंह ने कहा कि जब इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य कोर्स की पढ़ाई करने बिहार के छात्र बाहर जाने लगे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह फैसला लिया कि क्यों ना बिहार में ही बहुत सारे इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज खोले जाए। नीतीश कुमार चाहते तो निजीकरण को बढ़ावा दे सकते थे। लेकिन उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और आज स्थिति अलग है।
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आगे राजेश्वर राणा ने कहा की 2005 से 2020 तक बिहार में 39 इंजीनियरिंग कॉलेज खोले गये। जहां छात्र आज शिक्षा हासिल कर रहे हैं। बिहार में 1960 से 2005 तक एक भी इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं खुला था। निजी क्षेत्र के तीन इंजीनियरिंग कॉलेज भी लालू-राबड़ी राज में बंद हो गए। 2005 से 2020 तक बिहार में 39 इंजीनियरिंग कॉलेज खुले। 1954 से 2005 तक राज्य में सरकारी क्षेत्र में 3 इंजीनियरिंग कॉलेज थे और उनकी प्रवेश क्षमता 800 थी। आज के दिन में यह प्रवेश क्षमता बढ़कर 9,275 हो चुकी है।

श्री राणा ने बताया कि बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेज का फीस 10 रूपए प्रति माह और एनुअल डेवलपमेंट फीस 2500 रुपए प्रति वर्ष है यानी कुल पढ़ाई का खर्च लगभग 14,800 मात्र है। इतने पैसे तो बाहर आकर पढ़ने में सिर्फ ट्रेन के रिजर्वेशन में खर्च हो जाते हैं। आज के दिन में किसी भी प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने की फीस 4 साल में 15 से 16 लाख रुपए है।लेकिन बिहार में सिर्फ ₹14,800 फीस में कोई भी छात्र इंजीनियर बन सकता है। बिहार के बच्चों को बिहार में उच्च तकनीकी शिक्षा देना तथा स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के माध्यम से आर्थिक अड़चनों को दूर करना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्राथमिकता में रहा है और उनके इस कदम से बिहार के बच्चों को लाभ मिला है।
