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मिथिला में सौराठ सभा 21 जून से, चहुंओर गूंजने लगी ‘प्रीतम नेने चलू हमरो सौराठ सभा यौ’ की धुन

डेस्क : मिथिला की सदियों पुरानी परंपरा है सौराठ सभा जहां पेड़ के नीचे बैठकर सुयोग्य वर-वधु की तलाश की जाती है। जिसमें वर-वधु के जोड़ी मिलान के लिए कई बातों का ध्यान रखा जाता है। एक तो यह कि वर-वधु समान गोत्र में ना हो, इसलिए सात पीढ़ियों तक पंजियां देखी जाती है। इन सबका अपना एक वैज्ञानिक आधार है जिसे अच्छे से देख परखकर फिर शादी ठीक की जाती है। इस वर्ष सौराठ सभा 21 जून से 30 जून तक चलने वाली है।

जून-जुलाई के महीनों में लगने  वाली यह वार्षिक वैवाहिक सभा दस दिनों तक चलती  है। इस परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए वर्ष 2017 में मिथिलालोक फाउंडेशन के तत्वावधान में एक विशेष पहल चलाया गया जिसका नाम ‘चलू  सभा अभियान’ रखा गया। जिसके परिणामस्वरूप उस वर्ष 365 आदर्श विवाह अर्थात बिना दहेज आदि के इतनी बड़ी संख्या में विवाह कार्य का संपादन हुआ।

इस सभा में केवल वर उम्मीदवार की उपस्थिति होने की प्रथा रही है जबकि मिथिला हीं वह पावन धरती है जहां विश्व में पहली बार किसी स्री ने स्वयंवर चुना। जी! हम बात कर रहे हैं सीता माता की जिन्होंने त्रेता युग में राजा राम के संग स्वयंवर रचाया।

अतएव सौराठ सभा में महिलाओं की उपस्थिति पर जोर देते हुए डॉ बीरबल झा ने तर्कसंगत एवं समयानुकूल ‘प्रीतम नेने चलू  हमरो सौराठ सभा यौ’ गीत की रचना की जिसका परिणाम काफी दूरगामी होने वाला है।

डॉ बीरबल झा

 उल्लेखनीय है कि बिहार के मधुबनी जिले के सिजौल गांव में जन्मे सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं अंग्रेजी भाषा के लेखक डॉ बीरबल झा को उनके सामाजिक योगदान और नए प्रयोगों के लिए देश-विदेश से कई पुरस्कार मिल चुके हैं। युवाओं को केंद्रित करके लिखी गई उनकी कई पुस्तकें काफी लोकप्रिय है जिनमें से एक पुस्तक ‘सेलिब्रेट योर लाइफ’ को युवाओं ने न केवल खासा पसंद किया है बल्कि उसे बेस्टसेलर किताब भी बना दिया है।

बिहार में अंग्रेजी भाषा के प्रचार को एक आंदोलन के रूप में खड़ा करने वाले डॉ झा की संस्था ‘ब्रिटिश लिंगुआ’ बिहार सरकार के साथ मिलकर अबतक लगभग तीस हजार से ज्यादा महादलित युवाओं को रोजगार प्रदान करके  उन्हें स्वालंबी बना चुकी है। संस्था के इस प्रयास ने बिहार प्रदेश की जनता को यह सन्देश दिया है कि ‘अंग्रेजी भाषा स्किल’ सीखकर युवा अपने जीवन और कॅरियर को एक नई ऊंचाई दे सकते हैं। इस योजना के साकारात्मक प्रभाव को देश की मीडिया में भी काफी सराहना मिली है।  

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ बीरबल झा को मिथिला के सांस्कृतिक इतिहास में ‘पाग बचाओ अभियान’ के नाम से एक बड़े आंदोलन शुरू करने के लिए जाना जाता है। इस आंदोलन के माध्यम से मिथिला की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर लाने का जो अथक प्रयास किया गया उसके परिणामस्वरूप ही वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ‘मिथिला पाग’ पर एक डाक टिकट भी जारी किया।

गौरतलब है कि डॉ झा मिथिला की संस्कृति को लेकर कई स्तरों पर सक्रिय रहे हैं। इस दिशा में उन्होंने मिथिला के सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकार से जुड़े विषयों को लेकर कई गीत भी लिखे हैं जिन्हें संगीतप्रेमियों ने काफी सराहा है। यहाँ यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर लिखा गया उनके एक बेहद मार्मिक गीत ‘क्या गुनाह था मेरे बच्चे का’ को केवल यूट्यूब पर अबतक 75 लाख से ज्यादा लोगों ने पसंद किया है।

गैर-मैथिली भाषी लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला हिंदी गीत ‘अरे भैया मिथिला घुमा दे’ जिसे विकास झा ने गाया है हिंदी भाषी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसे भी डॉ॰ बीरबल झा ने हीं लिखा है। डॉ बीरबल द्वारा रचित दर्जनों गीतों में से कुछ गीतों के ये बोल उनके जागरूक सामाजिक चिंतक का रूप हमारे सामने उपस्थित करता है।

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