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गायत्री मंत्र :: हृदय रोग निवारक व कुशाग्र बुद्धि दायक, प्रसिद्ध लेखक शंकर झा की कलम से

डेस्क : गायत्री मंत्र के सकारात्मक प्रभाव का वैज्ञानिक शोधात्मक निष्कर्ष

(1) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद द्वारा गायत्री मंत्र का मानवीय जीवन पर प्रभाव को लेकर किए गए अनुसंधान से स्पष्ट हुआ है कि गायत्री मंत्र का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव है। विगत् दो दशकों (वर्ष 1998 से प्रारम्भ) के शोध व विश्लेषणों से पता चला है कि गायत्री मंत्र के सही तरीके से जप करने पर दो महत्वपूर्ण फायदे हैंः

पहला जप करने वालों का चित्त शांत व मन में प्रसन्नता उत्पन्न होती है, जो ब्लडप्रेशर (रक्त चाप) को नियंत्रित करता है, हृदय विकार का शमन करता है तथा मनुष्य के बौद्धिक शक्ति को जाग्रत कर बौद्धिक क्षमता को बढ़ाती है। छात्र अगर चौबीस घण्टा में आधा घण्टा भी सही तरीका से गायत्री मंत्र का नियमित पाठ करे तो दिमाग की बौद्धिक क्षमता में कई गुणा वृद्धि हो जाती है, फिर वह पढ़ाई के क्षेत्र में हर मुकाम हासिल कर सकता है।

शोध के निष्कर्ष

एम्स नई दिल्ली द्वारा 25-28 वर्ष आयु वर्ग के कुछ व्यक्तियों को शोध के दौरान गायत्री मंत्र का जप सही तरीके (108 बार,मन ही मन) से कराया तथा जप के बाद उनके शरीर खासकर मस्तिष्क पर प्रभाव का आकलन किया। मस्तिष्क के अध्ययन हेतु अन्य उपकरणों के साथ-साथ एम.आर.आई (मैग्नेटिक रिजोनेन्स इमेजिंग) मशीन का भी उपयोग किया गया। जिन व्यक्तियों ने गायत्री मंत्रों का जाप किया उनके मस्तिष्क में एक सप्ताह बाद ही एक विशेष रसायनिक पदार्थ,जिसका नाम गावा है, उसकी ज्यादा मात्रा पायी गई, जबकि अन्य व्यक्ति जो गायत्री मंत्र का जाप नहीं करते, उनके मस्तिष्क में यह परिवर्तन नहीं देखा गया। गावा नाम का रसायनिक पदार्थ नींद लाने, मन में प्रसन्नता लाने हेतु सक्षम है। एम्स के इण्डोक्राइन विशेषज्ञ का कहना है कि जिस व्यक्ति के दिमाग खासकर ब्रेन का अगला हिस्सा (फ्रॉण्ट ब्रेन) के प्री-फ्रॉण्टल कारटेक्स में गावा रसायन की कमी हो जाती है तो उस व्यक्ति को ठीक से नींद नहीं आती, वह चिंतित रहने लगता है तथा कुछ समय पश्चात् डिप्रेसन में चला जाता है। प्री.फ्राण्टल कारटेक्स ब्रेन का वह हिस्सा है जो मनुष्य को सोचने, तर्क करने, प्लान करने, भावनाओं को प्रदर्शित करने, यादाश्त की क्षमता, समस्या का समाधान की क्षमता आदि देता है।


एम्स ने पाया कि गायत्री मंत्र के जाप करने वाले सभी व्यक्तियों के ब्रेन में गावा रसायन की मात्रा एक सप्ताह बाद ही प्रचुर मात्रा में मिलने लगी, जिससे इनका मन ज्यादा शांत, हृदय की धड़कन सामान्य होने लगी तथा सोचने व तर्क करने की क्षमता, प्रसन्नता की स्तर आदि में गुणात्मक परिवर्तन दिखने लगा।
एम्स व आईआईटी ने अनुसंधान व डाटा विश्लेषण के उपरांत घोषणा की कि गायत्री मंत्र का जाप जादुई दवा की तरह कार्य करता है। बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है तथा मनुष्य को रक्त चाप से मुक्ति दिलाता है।

(2) गायत्री मंत्र का महत्व को जर्मनी व अमेरिका ने भी माना हैः-

कुछ दशक पूर्व जर्मनी के हेमबर्ग विश्वविद्यालय ने विश्व के प्रचलित कुछ मंत्रों पर शोध के उपरांत पाया कि सनातम धर्म के ऋग्वेद में संकलित गायत्री मंत्र बहुत ही लाभकारी है, बौद्धिक स्तर को कई गुणा बढ़ा कर लोगों को कुशाग्र बनाता है।


अमेरिकन वैज्ञानिक डॉ. हबार्ड ने विश्व के कई धर्मों के कई मंत्रों/श्लोकों का अध्ययन अपने फिजियोलॉजी लैब में किया। गायत्री मंत्र के प्रभाव का अध्ययन व विश्लेषण करने पर चमत्कारिक परिणाम प्राप्त हुआ। उन्होंने डाटा विश्लेषण से पाया कि गायत्री मंत्र के जप से प्रति सेकंड एक लाख दस हजार ध्वनि तरंगे उत्पन्न हुई, जो दुनियां के सभी धर्मों के महत्वपूर्ण मंत्रों से उत्पन्न तरंगों के सापेक्ष सर्वाधिक रहा। इन्हीं उत्पन्न ध्वनि तरंगों (साउण्ड वेभ्स) के चलते सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई जिनके मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

(3) जबलपुर के जाने माने हृदय रोग चिकित्सक डॉ.रवि शंकर शर्मा ने अपने तीन साल के शोध के उपरांत पाया कि गायत्री मंत्र का नियमित जप करने से उच्च रक्तचाप तथा हृदय संबंधी रोग नहीं होते हैं। उत्साह एवम् सकारात्मकता बढ़ती है। त्वचा में चमक आती है व यादाश्त भी बढ़ती है। उन्होंने पाया कि ‘ऊँ’ के दीर्घ उच्चारण से भी हृदय गति एकदम सामान्य हो जाती है।

(4) थियोसॉफिकल सोसाइटी के प्रमुख श्रीकृष्णमूर्ति ने गायत्री उपासना के अनुभवों का वर्णन करते लिखा थाः-
इस मंत्र का उपयोग स्वार्थ के लिए न करके परमार्थ के लिए करना चाहिए। गायत्री सूर्य भगवान के आवाह्नन का मंत्र है और जब उसका उच्चारण किया जाता है तभी जप करने वाले पर प्रकाश की एक बड़ी लपक सूर्य में से पड़ती है। प्रार्थना के समय चाहे सूर्य उदय हो रहा हो, चाहे मध्याह्न का समय हो, चाहे संध्या समय अस्त हो रहा हो, चाहे मध्य रात्रि का समय हो, सूर्य की लपक सुक्ष्म रुप से जप करने वाले पर अवश्य पड़ती है। रात्रि के समय तो वह लपक पृथ्वी को भेद कर आती है।

गायत्री मंत्र का परिचय,भावार्थ व मंत्र प्रभाव का कारण

ऊॅ भूर्भुवः स्वः, तत् सवितुर्वरेण्यम्।
भर्गोः देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।।

इस मंत्र में सविता देव की उपासना है इस लिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रुप में भी पूजा जाता है। गायत्री एक हिन्दू देवी हैं, इनके जीवन साथी ब्रह्मा हैं, इनकी वाहन हंस है।
मां गायत्री को वेदमाता कहा गया है, इन्हें भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्र के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गायत्री का अवतरण माना जाता है इस दिन गायत्री जयंती मनाते हैं।

हिन्दी में भावार्थः-

सृष्टि प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज, हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे।


यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के 62वें सूक्त के अंतर्गत 10वां श्लोक है गायत्री मंत्र। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं,जो त्रेता युग में श्रीराम व लक्ष्मण के गुरु थे।
ऋग्वेद में लगभग दस हजार मंत्र हैं। परन्तु इस एक मंत्र जिसे गायत्री मंत्र कहते हैं, पर विचार,मंत्रणा सबसे ज्यादा आज तक हुई है। इस मंत्र में 24 अक्षर हैं। उनमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किन्तु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन 24 अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियॉ(भूर् भूवः स्वः) और उनसे पूर्व प्रणव/ओंकार (ऊँ) को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरुप इस प्रकार स्थिर हुआ हैः

(1) ऊॅ (प्रवण/ओंकार)
(2) भूर्भुवः स्वः (व्याहृतियाँ)
(3) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र का शाब्दिक अर्थः-

ऊँ = ब्रह्मा का अभिवादन शब्द
भूः = भूलोक
भुवः = अंतरिक्ष लोक
स्वः = स्वर्ग लोक
तः = परमात्मा/ ब्रह्मा
सवितुः = सृष्टिकर्त्ता/सूर्य
वरेण्यम् = पूजनीय
भर्गः = अज्ञान/पाप निवारक
देवस्य = ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि = हम ध्यान करते हैं
धियो = बुद्धि
यो = जो
नः = हमें
प्रचोदयात् = प्रकाशित करें।

ऊँ के ऋषि ब्रह्मा हैं। ऊँ (अ उ और म अक्षरों के मेल) का अकार, उकार म कारात्मक स्वरुप है। उसके अनुसार ऊँ को सारी सृष्टि का मूल माना जाता है। ऊँ से ही हमारी सृष्टि का विकास होता है। गायत्री हमें ज्ञान,प्रकाश और ऊर्जा की महासत्ता से जोड़ती है।

इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है। सवितारुपी मन ही मानव की महती शक्ति है। जैसे सविता देव हैं, वैसे ही मानव के मन भी देव हैं। ऋग्वेद कहता है देवं मनः अर्थात् मन देव हैं। मन ही प्राण का प्रेरक है। मन और प्राण के इस संबंध की व्याख्या गायत्री मंत्र में परिभाषित है। सविता मन प्राणों के रुप में सभी कर्मो के अधिष्ठाता हैं। धी मतलब बुद्धि। सविता मन, केवल मन के द्वारा होने वाले विचार/कल्पना नहीं, बल्कि उन विचारों का कर्मरुप में मूर्त/परिणत होना है। किन्तु मन की इस कर्म शक्ति प्रेरणा हेतु मन का सशक्त/बलिष्ठ होना आवश्यक है। मन की शक्तियों का तो कोई सीमा नहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिए सक्षम बना पाता है, वही उस व्यक्ति के लिए तेज का वरणीय अंश है। अतः गायत्री मंत्र के जप से सविता की आराधना से सविता या मन का जो दिव्य अंश है वह पार्थिव शरीर में अवतीर्ण होकर पार्थिव शरीर में प्रकाशित हो। इस गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पायी जाती है। यहाँ एक मात्र अभिलाषा यही है कि मानव को ईश्वर की ओर से मन रुप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा वह उसी सविता (मन) को और मजबूत करे और अच्छे कर्म करने प्रेरित हो।

गायत्री उपासना की विधि विधानः

गायत्री मंत्र का जाप कभी भी किसी भी स्थिति में की जा सकती है। हर स्थिति में लाभदायी है। परन्तु विधि पूर्वक न्यूनतम कर्म काण्डों के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गई है। शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान,नियत समय पर सुखासन में बैठकर नित्य तीन माला (कम-से-कम) गायत्री मंत्र का जाप की जानी चाहिए। इसमें पंद्रह मिनट का समय लगता है। होठ हिलाते रहें, किन्तु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सके। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं, दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्घि की स्थापना हो रही है।

मंत्रों के प्रभाव का कारण :-

मंत्र का आशय यह है कि उसमें शब्दों का एक विशेष योजना के अनुसार एक विशेष ध्वनि में उच्चारण किया जाय। उसके प्रत्येक अक्षर में एक विशेष कंपन उत्पन्न करने की शक्ति पाई जाती है अर्थात् मंत्र का प्रत्येक पद स्वर के एक कंपन के सदृश होता है। मंत्रों में जिस नियम के अनुसार स्वरों की रचना की जाती है, उसे ठीक प्रकार से उच्चारण करने पर अवश्य ही कंपन एक विशेष गति से उत्पन्न होते हैं और वे कंपन धीरे-धीरे हमारे शरीर के भिन्न-भिन्न कोशों को जागृत करते हुए उन्हें शुद्ध बनाते हैं। इन शुद्ध हुए कोषों के उपासक मन्त्रोचार करके अपने इष्ट देव को अपनी तरफ आकर्षित करने में समर्थ होता है। इसी क्रिया को देवता का आवाह्न कहते हैं।


स्वरों से एक विशेष प्रकार के कंपन वातावरण में उत्पन्न होते हैं, और उनसे सूक्ष्म सृष्टि में एक खास तरह के आकार बनते हैं। इस प्रकार स्वरों के विभिन्न प्रकार के कंपन अलग-अलग तरह की अनेक आकृतियों को उत्पन्न करते हैं। मंत्रोंचार पूर्ण रुप से शुद्ध होना चाहिए। उनके स्वरों में किसी प्रकार की विकृति नहीं होनी चाहिए। इसी आधार पर भिन्न-भिन्न देवों के आवाह्न के लिए भिन्न-भिन्न मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। जिस देव की प्रार्थना हम करना चाहते हैं, उनके मंत्र का बार-बार शुद्ध रीति से उच्चारण (जप) करने से सूक्ष्म मानसिक सृष्टि के ऊपर उसका आकार पैदा हो जाता है और उस देवता की शुभ शक्तियों को आकर्षित करने का वह केंद्र बन जाता है। यही कारण है कि आर्य ग्रंथों में कहा गया है कि मंत्र बिना देवता हैं ही नहीं। मंत्र का प्रभाव हेतु उपासक में आन्तरिक श्रद्धा के साथ-साथ संकल्प बल भी हो तथा एकाग्रता हो। उपासक में इष्ट देव के प्रति भक्ति भाव हो।

तुलसी या चन्दन की माला पर गायत्री मंत्र का जाप करें।

समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री मंत्र की महिमा एक स्वर से स्वीकार की है। गायत्री मंत्र तीन देवों ब्रह्मा, विष्णु व महेश का सार है।

शंकर झा

एम.एस.सी.(कृषि अर्थशास्त्र),एल.एल.बी.
{छ.ग. राज्य वित्त सेवा}
अपर निदेशक/नियंत्रक (वित्त)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,रायपुर (छ.ग.)

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