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डॉ संजीव शमा ने मिथिला विभूति कायस्थ कुलभूषण महाकवि पंडित लालदास के व्यक्तित्व-कृतित्व पर की वेब परिचर्चा

डेस्क : शिम्मर फिल्म्स इंटरनेशनल द्वारा आयोजित मिथिला मैथिली के व्यक्तित्व और कृतित्व वेब परिचर्चा के 52 वां एपिसोड मिथिला विभूति ‘रमेश्वर चरित मिथिला रामायण के प्रणेता महाकवि पंडित लालदास : व्यक्तित्व आ कृतित्व’ विषय पर केंद्रित था ।

महाकवि के संदर्भ में अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए साहित्यकार व अन्वेषक डॉ संजीव शमा ने कहा कि मिथिला के पुण्य प्रांगण खड़ौआ गांव में कायस्थ कुलभूषण महाकवि पंडित लालदास का जन्म 9 फरवरी सन 1856 ई. को हुआ था । उन्होंने कहा कि महाकवि के सौम्यमूर्ति, दिव्य संस्कार, विलक्षण लिपि ज्ञान एवं गंभीर विचारपूर्ण मुख मुद्रा से अभिभूत मिथिलेश रमेश्वर सिंह महाराज ने उन्हें अपने दरबार में ससम्मान स्थान दिया था । महाराज मिथिलेश की कृपादृष्टि पाकर महाकवि उनके साथ राजनगर में रहने लगे । साथ ही उन्हें मिथिलेश के साथ अनेकानेक दुर्लभ तीर्थाटन करने एवं अनेकों धर्मग्रंथ को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

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साहित्यकार डॉ शमा महाकवि के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि मिथिलेश उनके विलक्षण प्रतिभा व प्रगाढ़ पांडित्य पर विमुग्ध होकर उन्हें धौत सम्मान से सम्मानित करते हुए पंडित की उपाधि से विभूषित किया था । उन्होंने बताया कि मिथिलेश ने ही महाकवि को कायस्थर्षि विशेषण से भी अलंकृत किया । साहित्यकार डॉ शमा ने महाकवि के कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि महाकवि का जीवन काल 65 वर्ष का रहा । उन्होंने कुल 23 ग्रन्थों की रचना किये । जिनमें पांच ग्रन्थ को वे पूर्ण नहीं कर पाये । महाकवि के ग्रन्थावली की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी पहली रचना मिथिला महात्म्य एवं अंतिम पूर्ण रचना श्रीमदभगवत गीता का मैथिली पद्यानुवाद है । महाकवि की वह रचना जिसने महाकवि को प्रसिद्धि दिलाया वह है रमेश्वरचरित मिथिला रामायण जो अष्टकाण्ड के रूप में मैथिली महाकाव्य है ।

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इसके अलावा उनकी प्रसिद्ध कृतियों में सावित्री सत्यवान नाटक, चण्डी चरित, स्त्री धर्म शिक्षा, महेश्वर विनोद, हरिताली व्रत कथा, जानकी रामायण, साङ्ग सप्तशती दुर्गा टीका आदि प्रमुख है । उन्होंने रामायण के अष्टम काण्ड के रूप में लिखित पुष्कर काण्ड की चर्चा करते हुए कहा की पुष्कर काण्ड को महाकवि की क्षमता का प्रतीक माना गया है । उन्होंने कहा कि महाकवि अपने रामायण में सीता को अग्नि में प्रवेश करते कहीं नहीं दिखाया है। महाकवि की नजर में सीता उपेक्षिता नहीं बल्कि शाक्त के रूप में केंद्रित है । उन्होंने सीता को मर्यादा की स्रोत शक्ति एवं शक्ति पुंज माना है।

अन्वेषक डॉ शमा ने कहा कि पुष्कर काण्ड में महाकवि ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्रादि समस्त देवता को शक्ति आराधक बताया है, बावजूद उन्होंने वैष्णव व शैवमत का कहीं विरोध नहीं किया जो कवि की विलक्षणता को प्रदर्शित करता है । उन्होंने कहा कि मिथिला की परंपरा में शाक्त भावना को राम काव्य में उदभाषित करने का श्रेय महाकवि पंडित लालदास को जाता है ।शिम्मर फिल्म्स के निदेशक सुमित सुमन ने बताया कि व्यक्तित्व व कृतित्व विषय आधारित परिचर्चा का 52 वां एपिसोड श्रोताओं द्वारा काफी सराहा गया । उन्होंने कहा कि मिथिला विभूति के व्यक्तित्व व कृतित्व को समय की सीमा में बांधा नहीं जा सकता है ।

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उन्होंने शिम्मर फिल्म्स द्वारा आयोजित किये जा रहे कार्यक्रम को सफल बनाने में आरंभ से ही बौद्धिक सहयोग प्रदाता प्रो.पीके झा प्रेम, डॉ.रंगनाथ दिवाकर, प्रमिल कुमार मिश्र, भगवान मिश्र (नेपाल) आदि विद्वानों के प्रति आभार जताया । वहीं उन्होंने पूर्व के कार्यक्रम में प्रो.शशिनाथ झा, डॉ.रंगनाथ दिवाकर, डॉ धनाकर ठाकुर समेत दर्जनों वक्ताओं को साधुवाद दिया । शिम्मर फ़िल्म इंटरनेशनल के वेब कार्यक्रम से जुड़ने वाले मनीषियों में डॉ भीमनाथ झा, समीर कुमार दास, महाकवि के प्रपौत्र सुनील कुमार दास, राजीव कुमार, रोहित कुमार दास, इतिहासकार डॉ दिलीप कुमार, पंकज दास, अनिल कुमार, कौशल किशोर, उपेन्द्र कुमार दास, भवनाथ दास, श्यामानंद दास आदि सैकड़ों सुधि श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया ।

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