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बिहार :: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर गोष्ठी समेत कई कार्यक्रम का आयोजन

दरभंगा (विजय सिन्हा) : अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय सहित विभिन्न संगठनों द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिन्द्री विभाग में पूर्व अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र ठाकुर ने कहा कि मातृभाषा ही शिक्षा का माध्यम बने, तो राष्ट्र और समाज का सही विकास संभव है। परंतु भारत एक ऐसा देश है, जहां की शिक्षा-दीक्षा की भाषा विदेशी है। उन्होंने कहा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी मैकाले के शिक्षा पद्धति लागू है। 

इस मौके पर डॉ. विजय कुमार, डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद सुमन, शोधार्थी ज्वालाचंद्र चौधरी, पार्वती कुमारी, खुशबू कुमारी, राजन कार्तिके, अशोक कुमार कुशवाहा आदि ने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विजय कुमार और धन्यवाद ज्ञापन शोधप्रज्ञ उमेश कुमार शर्मा ने किया। वहीं विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग में अध्यक्ष प्रो. प्रीति झा की अध्यक्षता में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. मनोज कुमार झा ने कहा कि हमलोगों को अपनी मातृभाषा के उन्नयन के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। इस मौके पर दर्शनशास्त्र के प्राचार्य अमरनाथ झा, अरूणिमा सिन्हा, डॉ. नीरजा मिश्र आदि ने विचार रखे। अतिथियों का स्वागत अशोक कुमार मेहता और संचालन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वीणा ठाकुर ने किया।

 

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर विद्यापति सेवा संस्थान की ओर से सभी मातृभाषा अनुरागियों को शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने 1952 ई0 में बांग्लादेश में भाषा आंदोलन के दौरान अपनी मातृभाषा के लिए शहीद हुए युवाओं को नमन किया। इस मौके पर उन्होंने केंद्र व राज्य सरकारों की मैथिली भाषा के विकास के प्रति बरती जा रही संवेदनहीनता पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए मैथिली भाषा के विकास की लड़ाई में युवाओं से आगे आने का आह्वान किया। मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमला कांत झा ने कहा कि मैथिली भाषा के विकास को लेकर आज जो माहौल है, उसके समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस जैसे अवसर बहुत प्रासंगिक हो जाते हैं। प्रो जीव कांत मिश्र ने कहा कि मातृभाषा दिवस लोगों में अपनी व अन्य जनों के मां की भाषा के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना उत्प्रेरित करते हैं।

 

प्रवीण कुमार झा ने विश्व की लगभग 3000 भाषाओं के अस्तित्व पर विलुप्तता के मंडरा रहे खतरे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मातृभाषा किसी भी व्यक्ति के संस्कारों की संवाहक होती है और इसके माध्यम से किसी भी देश अथवा समाज की संस्कृति को मूर्त रूप मिलता है। आशीष चौधरी ने कहा कि मातृभाषा शिशु, माता, समाज, राष्ट्र और विश्व को एक सूत्र में जोड़ती है। प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई ने कहा कि मातृभाषा मानव जीवन से संबद्ध समस्त विषयों को सीखने समझने एवं ज्ञान की प्राप्ति में सबसे सरल माध्यम होती है।

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