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अपना अस्तित्व ही नही बचा पा रहा बख्शी का तालाब

राज प्रताप सिंह : बीकेटी/लखनऊ।राजधानी से सीतापुर जाने वाले राष्टीय राजमार्ग के किनारे केशरिया रंग में रंगी बुर्जियां दिखाई पड़ती है। जो बताती है कि आप बख्शी का तालाब क्षेत्र में आ पंहुचे है। यह वही तालाब है जिसके नाम पर यह पूरा क्षेत्र जाना व पहचाना जाता है। इसी के नाम पर वायु सेना स्टेशन विधानसभा सीट तहसील ब्लाक रेलवे स्टेशन व कस्बा है।आज जहां यह तालाब है वहां कभी घना जंगल हुआ करता था। यह पूरा क्षेत्र उस समय भुखमरी और पेयजल की भयंकर समस्या से जूझ रहा था। जिस समय इस भूमि पर बख्शी जी के कदम पड़े। जो अवध के मशहूर नवाब वाजिद अली शाह के दादा नवाब मुहम्मद अली शाह के वजीर थे। वह मूलरूप से कन्नौज जिला फरूखाबाद के रहने वाले थे। उनका पूरा नाम श्री त्रिपुर चन्द्र बख्शी पुत्र मजलिस राय बख्शी था। यहां के लागो की दीन दशा को देखकर उनका दिल द्रवित हो उठा। उन्होने यहा एक तालाब बनाने की कल्पना की जिसमें उनका उददेश्य लोगो को रोजगार देने के साथ साथ क्षेत्र को पेयजल जैसी मुख्य समस्या से भी निजात दिलाना था। सन 1805 मे उन्होने अपने सपने को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया। जो 1815 मे पूरी तरह साकार रूप मे सामने खड़ा था। इन दस वर्षो मे आठ बुर्जो वाला एक सुन्दर सा तालाब । जिसमे जनानाघाट मदार्ना घाट गऊघाट व आमजन के स्नान व पेयजल ले जाने की व्यवस्था थी। तालाब के पूरब मे बाहर बाग पश्चिम में पायोबाग उत्तर में मधुबन बाग लगाये गये थें। भव्य शिव मन्दिर व विशाल राधा कृष्ण मंदिर ठाकुर द्वारे का भी निमार्ण करवाया। इतने भव्य निर्माण के बाद दूर दूर से लोग इसे देखने के लिये आने लगे गुमनामी में पड़ी यह जगह अब एक सुन्दर दर्शनीय स्थल बन गयी थी। इस तालाब के निर्माण से जहां क्षेत्रीय लागो की पेयजल की समस्या से निजात मिली वही लोगो को रोजगार भी मिला जिससे उनकी आर्थिक स्थित मे भी सुधार हुआ। पंडित गोविंद मिश्रा ने बताया निर्माण पूर्ण होने के बाद वह परोपकारी महात्मा वृन्दावन चले गये और वही पर अपनी सारी सम्पत्ति दान करके स्वंयम भूमिगत हो गये। बुजुर्ग बताते हैं कि बख्शीजी ने यह पूरा निर्माण नवाब से छिपाकर किया था। इसलिये वह फिर लौट कर नही आये। लेकिन उनके इस निर्माण ने पूरे क्षेत्र को पहचान दी दी जो हमेशा कायम रहेगीं । वर्तमान में तालाब के तीन ओर लगे बाग केवल यादो में ही रह गये हैं।जहां कभी ये बाग हुआ करते थे आज वहां प्रापटी डीलरो द्वारा कालोनियां बसा दी गयी है। ठाकुर द्वारे व शिव मंदिर ही केवल अपने अस्तित्व की लड़ायी लड़ रहे है । सिंचाई विभाग द्वारा इस ऐतिहासिक तालाब के सन्दर्यीकरण की जिम्मेदारी मिली थी। जिनको दो किस्तो में चार करोड़ से अधिक रुपयों का आवंटन किया गया। जिससे तालाब की साड़ियों पर लाल पत्थर लगाएं गये है। लोहे की रेलिंग और क्षतिग्रस्त भागों को दुरुस्त किया गया है। तालाब में पानी भरने के लिए पम्पिंग सेट लगाया गया है। वही समस्त बुर्जियों पर लाइटिंग के साथ तालाब के बीचोबीच लाइटिंग फौव्वारा लगाया गया है। लेकिन नगर पंचायत को सुपुर्त नही किया गया है। जिस कारण इन सुविधाओं का लाभ नही मिल पा रहा है। 

अधिशासी अधिकारी श्रीश मिश्रा ने बताया कि कुछ टेक्निकल दिक्कतों के कारण तालाब का हस्तांतरण नही हो पाया है। उपजिलाधिकारी की अगुवाई में जल्द ही बैठक तय करकर हस्तांतरण की कार्यवाही पूरी की जाएंगी।

तालाब को संवारने को किये गये प्रयास

  1. 1992 मे स्थानीय लोगो ने मिलकर इसे संवारने का प्रयाश किया  पूरब की तरफ की सीडि़यो की मरम्मत करायी ता सकी । लेकिन तत्कालीन विधायक गोमती यादव व पर्यटन मंत्री लल्लू सिंह ने काम रूकवा दिया । तर्क दिया गया कि स्थानीय लोगो के काम करने से इसका मूल स्वरूप बिगड़ जायेगा।
  2. 1995 तत्कालीन मंत्री भगौती सिंह व विधायक राजेन्द्र यादव ने फावड़ा यज्ञ प्रारम्भ कराया। स्थनीय लोगो के सहयोग से तालाब की सफाई की गयी और तालाब का पानी निकालकर दूसरे तालाब में डाल दिया गया । लेकिन कुछ समय चलकर इस कोशिश ने दम तोड़ दिया।
  3. 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के निर्देशन पर कल्याण सिंह सरकार ने 80लाख रूपये दो किस्तो में निर्गत किया गया । जिससे तालाब के चारो तरफ लोहे की जाल से बाउन्ड्रीवाल बनवायी गयी। लेकिन फिर काम रूक गया।
  4. 2009 पूर्व विधायक व कैबनेट मंत्री नकुल दुबे ने 21 जून को बड़े ताम झाम के साथ घोषणा की कि छह माह की अवधि मे इसे काया कल्प कर दिया जायेगा । लेकिन कुछ लैम्प पोस्टो और दो चार पौधे लगाने के आगें काम नही हुआ।
  5. 2012 अगस्त माह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तालाब के कायाकल्प के लिये दो किस्तो में चार करोड़ से अधिक रूपये निर्गत किया। जिससे तालाब का सौदर्यीकरण किया गया।

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