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आजादी की जंग के सितारों पर छाया गुमनामी का अंधेरा

1930 से 1941 तक पत्नी सहित तीन बार जेल गये भोलानाथ गुप्ता 
– दुधमुंहे बच्चे के साथ पत्नी राम देवी ने भी काटी थी जेल
– जवाहर लाल नेहरू सरीखे नेता इनके घर मे करते थे गुप्त मिटिंग


राज प्रताप सिंह : बीकेटी/लखनऊ।देश को अंग्रेजो के चुंगल से आजाद कराने के लिये कितने ही आजादी के मतवालों ने अपनी जाने दी जवानी दी वर्षो तक जेलों में कठोर यातनायें सही थी । लेकिन वह रुके नही देश की आजादी पाने तक संघर्ष करते है। आखिर देश आजाद हुआ लेकिन आजादी की इस रोशनी में स्वतंत्रता संग्राम के अनगिनत सितारे गुमनामी में खो गये। ऐसे ही गुमनाम सितारे है भोलानाथ गुप्ता और उनकी पत्नी राम देवी गुप्ता जिन्होंने न शिर्फ़ आजादी के लिये संघर्ष किया। बल्कि कई बार जेल गये कठोर यातनाएं सही लेकिन आज इनका नाम भी कोई लेने वाला नही है।

यह बात उन दिनों की है जब भारत अंग्रेजो की बेड़ियों से आजाद होने के लिये मचल रहा था। महात्मा गांधी की अगुवाई में देश मे आजादी पाने की आंधी चल रही थी। उसी आंधी को और बढ़ाने के लिये राजधानी के बख्शी का तालाब के भौली गांव के रहने वाले भोलानाथ गुप्ता ने भी अपनी जवानी देश को सौप दी थी। वह कांग्रेस के परचम तले आंदोलनों में हिस्सा लेने लगें । 1930 में जब गांधी जी ने नमक सत्याग्रह में दांडी यात्रा कर नमक बनाकर कानून तोड़ने निकले थे। वही भोलेनाथ गुप्ता भी अपने साथियों के साथ राजधनी के झंडेवाला पार्क में नमक बनाने पहुँच गये। गोरो ने आंदोलनकारियो पर लाठीचार्ज किया और घोड़े दौड़ाये । जिसमे अन्य साथियों सहित भोलानाथ भी गम्भीर रूप से घायल हो गये । हालात ये थे कि इनको मरा समझकर अंग्रेजों ने पोस्टमार्टम हाऊस भेजवा दिया । लेकिन डॉक्टरों ने इनकी सांसे चलता देख इनका इलाज करवाया। 9 जून 1930 को उन्हें छह माह की कठोर सश्रम की सजा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद उनका मनोबल गिरा नही बल्कि दुगुने उत्साह के साथ वह आंदोलनों में लग गये । इस दौरान जवाहरलाल नेहरू सहित अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इनके घर आकर गुप्त बैठके करते रहते थे। इस दौरान वह दिल्ली लाहौर सहित देश के अन्य भागों में जाकर आजादी की लौ को बढ़ा रहे थे। इनकी कार्यप्रणाली से आहत अंग्रेजों ने इन्हें 7 अप्रेल 1932 में फिर जेल में ठूस दिया इन्हें छह माह का कठोर कारावास और 20 रुपये का अर्थदंड लगाया गया ।अर्थदंड न अदा करने पर तीन महीने और जेल में काटने का फरमान सुनाया गया। 20 अक्टूबर 1932 को वह जेल से रिहा हुये । लेकिन बाहर आते ही पूरे मनोयोग से जुट गये । गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन की की भनक अंग्रेजों को थी। इसलिए देश मे कांग्रेस के बड़े नेताओं को जेल में भरा जा रहा था।

22 मई 1941 को गोरो ने उन्हें फिर तब पक्का पुल के समीप गिरफ्तार कर लिया जब वह अपने दुधमुंहे बच्चे की दवाई लेकर अपनी पत्नी रामदेवी के साथ वापस लौट रहे थे। उनकी पत्नी ने भी जेल जने की जिद की लेकिन उन्होंने कहा कि बेटा छोटा व बीमार है। तो पत्नी ने जवाब दिया भारत माता के कितने बेटे कुर्बान हो रहे है एक भेट मेरी तरफ से भी हो जायेगी ।  अदालत ने भोलानाथ को एक वर्ष का कारावास व उनकी पत्नी को 3 महीने कारावास की सजा सुनाई। जेल से कटने के बाद पति पत्नी आजादी के लिये संघर्ष करते रहे । जहां 1968 में भोलानाथजी का निधन हो गया। वही उनकी पत्नी ने 14 अगस्त 2010 को इस नश्वर शरीर को त्यागकर आजाद हो गयी। आज क्षेत्र में इनके नाम पर कोई स्मारक तक नही है। बहुतेरे नेता आये अस्वाशन दिया और चलते चले गये।

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