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यात्रा वृत्तांत :: मिथिला के पर्यटन स्थलों की दुर्दशा, मानों विद्यापति की मूर्तियाँ रो-रोकर गा रही हैं……. उगना रे मोर कतय

डेस्क : बिहार राज्य की उत्तरी-पूर्वी भू-भाग जनकवंशीय राजा “मिथि” के द्वारा बसाया नगरी मिथिला के नाम से विश्व विश्रुत है। रामायण महाकाव्य काल (त्रेता युग) में विदेह के नाम से महाकाव्य में संकलित क्षेत्र, कभी नदियों की बहुलता के कारण तीरमुक्ति / तिरहुत नाम से जाना गया, तो अब कवि शेखर ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा रचित वर्ण रत्नाकर, कवि कोकिल विद्यापीठ द्वारा रचित मैथिली पदावलियों व हरि मोहन झा की मैथिली गद्यों के साहित्याकाश में मिथिला के नाम से प्रसिद्ध है।

मिथिला वेद, उपनिषद् वैदिक शास्त्रों व दर्शनों के उद्गम स्थल है। यह विद्या, विद्वानों और दर्शनशास्त्रज्ञों का धवल धाम रहा है। संस्कृति व परम्परा जहाँ बनती है, यह वही क्षेत्र है। संस्कृति से ज्यादा देश की सम्पत्ति कुछ नहीं होता। जिस देश की संस्कृति व सभ्यता समाप्त हो जाती है, उस समाज को मिटने में देर नहीं लगती। इसलिए मिथिला की भूमि को भारत की संस्कृति एवम् परम्परा में अमूल्य स्थान प्राप्त है।

इस धरती ने एक ओर जहाँ मिथिलाधिपति राजर्षि सीरध्वज जनक को जन्म दिया, जिन्हें विदेह की संज्ञा प्राप्त थी, तो इस पवित्र भूमि में माँ सीता का अवतरण हुआ।

प्रातः स्मरणीय ऋषि व विद्वतगण गौतम याज्ञवल्क्य जनक कुमारिल भट्ट मण्डन मिश्र, वाचस्पति मिश्र, उदयनाचार्य, अयाची मिश्र, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, विद्यापति, शंकर मिश्र, सर गंगानाथ झा, सर अमरनाथ झा, आइ.सी.एस. आदित्य झा, श्री लक्ष्मीकान्त झा, श्रीधर दास के अवतरण भूमि मिथिला पुरा काल से आधुनिक काल तक विविध विधाओं की प्रशस्त प्रकाश को मिथिला के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष में प्रकीर्ण करती आ रही है। विविध क्षेत्रों में मिथिला की उपलब्धियाँ अनुपमेय हैं। भगवती भारती के इन वरदपुत्रों पर मिथिला “यावत्चन्द्र दिवाकरौ गर्व करती रहेगी। मिथिला में वैसे तो सैकड़ो जगह पर्यटन के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं जिनमें विकसित होने की पूर्ण क्षमता है, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण स्थल इस प्रकार हैं :-

मिथिला में पर्यटन स्थल :-

  1. पुनौराधाम सीतामढ़ी, बिहार पुनौराधाम माँ सीता का प्राकट्य स्थल है। हल चलाते समय राजा सीरध्वज जनक ( 22 वें जनक, जनक वंश के ) को इसी जगह पर सीता एक बच्ची के रूप में मिली थी। त्रेता युग में यह घटना घटी थी। माता सीता का अवतरण स्थल विश्वभर में प्रसिद्ध है।
  2. जनकपुर धाम :- माना जाता है कि त्रेता युग में यह मिथिला की राजधानी थी। माँ सीता के पिता महर्षि जनक यहाँ राज करते थे। भगवान राम की शादी सीता से यहीं हुई थीं। नेपाल में स्थित (मिथिला क्षेत्र) जनकपुर हिंदुओं का बड़ा तीर्थ स्थल है। यहाँ स्थित राजा जनक का महल तथा सीता राम विवाह मण्डप विश्व प्रसिद्ध हैं।
  3. राजनगर किला, मधुबनी :- यह दरभंगा महाराज की पुरानी राजधानी रही है। दरभंगा महाराज के पुराने महलों के भग्नावशेष यहाँ की ऐतिहासिक समृद्धि को आज भी बखान करते नजर आते है। हालांकि भूकंप के चलते यह महल अब खंडहर हो चले हैं। परन्तु किला के अहाता स्थित संगमरमर से बना काली मंदिर तथा लेटे हुए बजरंग बली की मूर्ति विश्व प्रसिद्ध है।
  4. राज किला, दरभंगा :- लाल ईटों से बना यह किला देश के चंद आकर्षक किलों में से एक है। यह दरभंगा महाराज द्वारा निर्माण कराया गया था। किले में नरगौना पैलेस, आनन्द बाग महल और बेला महल प्रमुख हैं।
  5. बलिराजगढ़ बाबूबरही मधुबनी :- यह एक प्राचीन किला व गढ़ है। यह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया द्वारा संरक्षित स्थल है और इसे राजा बलि के गढ़ के रूप में जाना जाता है। पाँच चरणों में यहाँ हुई खुदाई में तीन हजार साल पुरानी सामग्री मिली थी।
  6. उच्चैठ भगवती मंदिर, बेनीपट्टी मधुबनी :- यह सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती का मंदिर है। इसका ऐतिहासिक महत्व है। मान्यता ऐसी है कि यहीं कालीदास को मां काली ने वरदान दिया था और इसके बाद ही वह महान कवि के रूप में विख्यात हुए। यह स्थान तंत्र साधना के लिए भी जाना जाता है।
  7. उग्रतारा स्थान, महिषी सहरसा:- उग्रतारा भगवती प्रमुख शक्ति पीठ में से एक है। ऐसी मान्यता है कि सती का बायां नेत्र यहाँ गिरा था। यह स्थान तंत्र साधना के लिए विख्यात है। यहाँ उद्भट विद्वान मण्डन मिश्र का जन्म हुआ था, जिनकी विदूषी पत्नी भारती थी।
  8. श्यामा माई काली मंदिर दरभंगा :- बिहार के दरभंगा शहर में ललित नारायण मिथिला विश्व विद्यालय के प्रांगण में मां काली का एक भव्य मंदिर है। इसे श्यामा काली मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसे श्मशान घाट में महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर बनाया गया है और यह अपने आप में असामान्य घटना है। मंदिर की स्थापना 1933 ई. में दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने की थी।
  9. अहिल्या स्थान जाले प्रखण्ड, दरभंगा जिला :- माना जाता हैं कि अपने पति ऋषि गौतम के श्राप से अहिल्या पत्थर बन गई थी। यहीं भगवान राम के चरण-स्पर्श से उनका उद्धार हुआ था। रामचरित मानस में तुलसीदास एवम् रामायण में वाल्मिकी ने इस भूमि को काफी पावन बताया है। यहीं से कुछ दूर स्थित ब्रह्मपुर जगह पर गौतम ऋषि का यज्ञ कुण्ड है। यहीं पर कई वेदों व उपनिषदों के ऋचाओं की रचना हुई। यह भारत सरकार द्वारा विकसित हो रहे रामायण सर्किट का हिस्सा है।
  10. बिस्फी, मधुबनी :- यह कवि कोकिल विद्यापति की जन्म स्थली है। उन्होंने यहां पर संस्कृत और मैथिली में कई ग्रंथों व पदावलियों की रचना की। कहते हैं कि विद्यापति के भक्ति भाव से अभिभूत होकर भगवान शंकर उगना (चाकर) बन कर उनके यहाँ चाकरी करने आए थे।

भारत के सेवा उद्योग (सर्विस सेक्टर ऑफ इण्डियन इकोनॉमी) में पर्यटन का हिस्सा सबसे अधिक है। पर्यटन से आय का हिस्सा राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 6.80 प्रतिशत और भारत के कुल रोजगार में 10.20 प्रतिशत का योगदान है।

भारत में वार्षिक तौर पर वर्ष 2020 में लगभग 71.40 लाख विदेशी पर्यटक का आगमन तथा 6.01 करोड़ घरेलू पर्यटक द्वारा भ्रमण (यात्रा) परिलक्षित होता है। राज्यवार इन घरेलू पर्यटन यात्राओं की संख्या पर नजर डालें तो प्रथम स्थान तमिलनाडु का था तो दसवाँ स्थान पंजाब का था ( इसमें वन टू टेन में) बिहार का स्थान नहीं था। भारत में सभी राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों में आए विदेशी पर्यटक यात्राओं की संख्या पर गौर करे तो पहले स्थान पर महाराष्ट्र है तथा नौ वें स्थान पर बिहार है, जिसमें लगभग बमुश्किल से 3.02 लाख विदेशी पर्यटक यात्रा किए।

भारत में पर्यटन विकास और उसे बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय नोडल एजेन्सी है और “अतुल्य भारत” अभियान इसकी देख-रेख करता है। यात्रा एवं पर्यटन प्रतिस्पर्धा रिपोर्ट ने भारत में पर्यटन को प्रतियोगी कीमतों के संदर्भ में विश्व में छठा स्थान दिया है अर्थात् भारत में पर्यटन व्यय विश्व के अन्य देशों से सस्ता है ।

भारत में पर्यटन से विदेशी मुद्रा आय वित्तीय वर्ष 2019 में लगभग 2.11 लाख करोड़ था, जो कोविड महामारी के कारण काफी घटकर वर्ष 2020 में लगभग 50 हजार करोड़ रहा। पर्यटन उद्योग, जो भारतीय अर्थ व्यवस्था के तृतीय व सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सेवा क्षेत्र के अंतर्गत आता है, उस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। पर्यटन क्षेत्र देश की आर्थिक संवृद्धि और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यटन देश का वृहद् सेवा उद्योग है। यह एक महत्त्वपूर्ण सेवा उन्मुखी क्षेत्र है, जो सकल राजस्व और विदेशी मुद्रा अर्जन की दृष्टि से त्वरित विकास करता है। यह क्षेत्र सेवा प्रदाताओं का सम्मिश्रण है। सरकारी और निजी क्षेत्रों, दोनों की इनमें संयुक्त सेवा है। जिनमें यात्रा एजेंट, यात्रा संचालक, हवाई, सड़क और समुद्री परिवहन, पर्यटक गाइड, होटल, अतिथि गृह, रेस्तराँ, और दुकानें शामिल हैं। पर्यटन किसी देश / राज्य में रहने वाले लोगों के जीवन-स्तर तथा रहन-सहन की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यटन से प्राप्त राजस्व से कई विकास योजनाओं का संचालन होता है। यही नहीं, सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को दूर करने में भी पर्यटन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पर्यटन पर्यावरण की गुणवत्ता बढ़ाने, अधिक रोजगार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देता है साथ ही अर्थव्यवस्था के विकास को भी अभिप्रेरित करता है। आज के समय में जहाँ हर देश को पहली जरूरत अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है, वहीं आज पर्यटन के कारण कई देशों की अर्थव्यवस्था पर्यटन उद्योग के इई-गिर्द घूमती है। पर्यटन भारत का सबसे विशाल “सेवा उद्योग” है। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने में पर्यटन का विशेष योगदान है। पर्यटन क्षेत्र में कार्यरत कुल श्रमिक बल में 70 प्रतिशत महिलाएँ है।

अन्य उद्योगों की तुलना में पर्यटन क्षेत्र में कम पूंजी विनियोग से ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन होता है। भारत में विदेशी मुद्रा के अर्जन में पर्यटन तीसरा स्थान रखता है। भारत में पर्यटन क्षेत्र के भाग हैं विरासत स्थल जैव-भौगोलिक जोन, इको टूरिज्म, समुद्री किनारा (सी- बीच) धार्मिक स्थल, सांस्कृतिक महत्व के स्थल, ग्रामीण पर्यटन, स्वास्थ्य पर्यटन । गरीबी व बेरोजगारी दूर करने हेतु यह महत्वपूर्ण क्षेत्र है। भारत में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। हमारा देश बहु धार्मिक और बहु- सांस्कृतिक देश हैं, थाईलैण्ड जैसा छोटा सा एशियाई देश हमारी तुलना में कई गुणा अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर पाने में सक्षम है।

अर्थ-व्यवस्था में धार्मिक पर्यटन का योगदान :-

देश के कुल पर्यटन क्षेत्र में धार्मिक यात्राओं की 60-70 फीसदी हिस्सेदारी है। हिन्दुस्तान सनातन संस्कृति में धर्म एवम् आध्यात्म का विशेष महत्व है। हाल के समय में देश में ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण अनेक मंदिरों एवम् अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय ख्याति के धर्म-स्थलों का जीणोद्धार एवम् विकास किया जा रहा है। इसके चलते इन शहरों में धर्मावलंबियों की यात्रा में तेजी आई है और इसके कारण पर्यटन के क्षेत्र में आर्थिक गति विधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। धार्मिक पर्यटन की बजट से निम्नलिखित आर्थिक क्षेत्रों के विकास की गति मिलती है :-

(क) होटल उद्योग
(ख) यातायात उद्योग
(ग) स्थानीय हस्त व शिल्प कला उद्योग
(घ) बहु भाषियों के जानकारों (गाइड के रूप में) को रोजगार

नेशनल सैंपल सर्वे संगठन (NSSO) के अनुसार भारत में करीब पांच लाख मंदिर और तीर्थ स्थल हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तीन लाख करोड़ से भी अधिक की है। दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं, उन्होंने अपने धार्मिक स्थलों को बेहद खूबसूरत बनाकर अपने व दूसरे धर्म के लोगों को आकर्षित कर अपने यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।

वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा मंदिरों के जीर्णोद्धार एवम् विकास हेतु किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं। इनके विकसित होने से इन केंद्रों पर पर्यटन की संभावनाएँ बहुत बढ़ जाती हैं। अहमदाबाद में सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशाल मूर्ति की स्थापना, वाराणसी में भगवान काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का निर्माण सोमनाथ मंदिर में माता पार्वती के देवस्थान का निर्माण, केदारनाथ, बद्रीनाथ के अहातों का पुनः निर्माण, उज्जैन में श्री महाकाल लोक स्थल की स्थापना, अयोध्या में श्री राम मंदिर की स्थापना का कार्य जैसे प्रयास पूरे विश्व में एक नए भारत की तस्वीर पेश करने में सफल रहे हैं।

एक ताजा सर्वेक्षण के रिपोर्ट के अनुसार भारत में धार्मिक पर्यटन का चलन बढ़ने की वजह से वाराणसी, पुरी और अयोध्या में होटल की बुकिंग, यातायात हेतु वाहनों की बुकिंग अन्य शहरों की तुलना में अधिक रही है।

सरकार की तरफ से प्रसाद, स्वदेश दर्शन, क्षेत्रीय उड़ान व्यवस्था जैसी योजना शुरू करने की वजह से भी देश में धार्मिक पर्यटन बढ़ा है। दिल्ली कटरा श्रीशक्ति एक्सप्रेस के संचालन से वैष्णोदेवी में पर्यटकों की भीड़ लग गई है। इस वजह से अंतर्राष्ट्रीय होटल श्रृंखला भी अब धार्मिक स्थलों पर नए-नए होटलों का निर्माण कर रही है। वाराणसी में पर्यटन के क्षेत्र में पिछले केवल चार वर्षों के दौरान 10 गुणा से अधिक पर्यटकों की बढ़ोत्तरी हुई है। काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद से इसमें बड़ा उछाल आया है। वहीं, राज्य का पर्यटन विभाग भी इस दिशा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। यहाँ वाटर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसके तहत क्रूज चलाया जा रहा हैं। आध्यात्मिक टूरिज्म के रूप में गंगा आरती महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।

बिहार पर्यटन विभाग द्वारा मिथिला क्षेत्र के पर्यटन स्थलों की उपेक्षा :-

बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा जारी बिहार पर्यटन के मुख्य पृष्ठ को उनके वेब पोर्टल – टूरिज्म बिहार, गोभ. इन का अवलोकन कीजिए। यहाँ बिहार के पर्यटन स्थलों को विभिन्न सर्किट के रूप में दर्शाया गया है, जैसे रामायण, जैन, बौद्ध, सूफी गुरू सर्किट आदि । इस मुख्य पृष्ठ पर बिहार का प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षक स्थलों के रूप में, महाबोधि मंदिर, तख्त श्री हरि मंदिर जी पटना साहिब, नालंदा वि.वि. का भग्नावशेष, विश्व शांति स्तूप वैशाली को दिखाया गया है परन्तु मिथिला के एक भी पर्यटक स्थल को नहीं दर्शाया गया है। त्रेता युग में माँ सीता के जन्म स्थल पुनौरा धाम सीतामढ़ी, राम-सीता विवाह मंडप स्थल, जनकपुर, अहिल्या स्थान जो रामायण सर्किट में शामिल हैं, राज दरभंगा किला, जो मिथिला का विशिष्ट पर्यटन स्थल है, में से किसी का स्थान न होना, मिथिला से उपेक्षा भाव को दर्शाता है। कुछ दिन पूर्व मैं अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिथिला क्षेत्र के इन धार्मिक व आध्यात्मिक पर्यटन स्थलों में से कुछ का भ्रमण किया। भ्रमण दौरान जो पाया उसका उल्लेख स्थलवार प्रस्तुत किया है। हमने पाया कि पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु आवश्यक अधोसंरचना का अभाव है। जबकि अधोसंरचना का विकास कर पर्यटन से भाड़ी मात्रा में राजस्व अर्जन कर गरीबी व बेरोजगारी दूर की जा सकती है।

गौतम ऋषि का आश्रम व यज्ञ कुण्ड जाले प्रखण्ड कमतौल स्टेशन के पास :

अहिल्या स्थल से कुछ ही दूर स्थित मिथिला के महान सपूत गौतम ऋषि का आश्रम व यज्ञ कुण्ड अवस्थित है। यह वहीं आश्रम है जहाँ ऋग्वेद के ऋचाओं (जिन्हें मारूत सूक्त कहते हैं) सामवेद के ऋचाओं तथा सामवेदी ब्राह्मणों के उपनिषद् छन्दोग्योपनिषद् की रचना कर ऋषि गौतम ने वैदिक परम्परा की नींव डाली थी। यह वही गौतम कुण्ड है जब त्रेता युग में एक बार अकाल पड़ा था, तो उस समय के विभिन्न जनपदों से ऋषि-मुनियों ने पानी के अभाव के कारण भाग कर मिथिला के ऋषि गौतम के पर्णकुटी में आश्रय लिए थे। गौतम ऋषि ने बड़ी संख्या में आए ऋषि मुनियों के जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु मारूत सूक्त के वेद मंत्रोच्चारण कर पवन देव की कृपा से विरों के द्वारा कुण्ड का निर्माण कराया था, जिससे सभी ऋषि-मुनियों को पर्याप्त जल मिला था। गौतम ऋषि ने मिथिला के सार्वभौमिक आध्यात्मिक परम्परा के अनुरूप वसुधैव कुटुम्बकम् तथा अतिथि देवो भवः सभी को वर्षों आश्रय दिया था। जहाँ ऋग्वेद, यजुर्वेद (शुक्ल) व सामवेद की कई ऋचाओं की रचना व संकलन हुई साथ ही इन वेदों के गूढ़ ब्रह्मसूत्रों पर कई उपनिषदों की रचना भी हुई। राजा निमि के गुरु वशिष्ठ के श्राप से विदेह होने पर, गौतम ऋषि के आचार्यत्व में सभी ऋषियों ने मंत्रों की शक्ति से उनके शरीर को मथ कर मिथि को उत्पन्न कर यज्ञ सम्पादित कराया था। यही इश्वाकुवंशीय राजा मिथि ने मिथिला नामक नगरी बसाया था। अपने परिवार के साथ जब मैं धार्मिक पर्यटन पर यहाँ पहुँचा तो पर्यटन स्थल हेतु आवश्यक अधोसंरचना का नितांत अभाव देखा। गौतम ऋषि के यज्ञ कुण्ड का भवन टूटा-फूटा था। उसका फूस का छप्पड़ टूटा हुआ था । ऐसे ऐतिहासिक स्थल का भग्नावशेष को संरक्षित व सवर्द्धित करने की आवश्यकता है।

अहिल्या स्थान जाले प्रखण्ड, कमतौल स्टेशन के पास :- चूंकि पौराणिक कथानुसार त्रेता युग में प्रभु श्रीराम खुद अपने जन्म स्थल अयोध्या से चलकर जनकपुर जाने के क्रम में अपने भाई लक्ष्मण व अपने गुरु विश्वामित्र के साथ अहिल्या, जो अपने पति गौतम से श्रापित पत्थर स्वरूप में परिणत हो चुकी थी, के उद्धार के लिए पधारे थे। श्री राम, मॉ अहिल्या का उद्धार कर नव-जीवन प्रदान किए थे। पता चला कि यह बिहार सरकार द्वारा रामायण सर्किट में एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में सूचीबद्ध है। यहाँ जब मैं पर्यटक बनकर भ्रमण हेतु पहुँचा तो पाया कि इस पौराणिक स्थल पर पर्यटकों को आकर्षित करने का कोई अधोसंरचना निर्मित नहीं था। एक छोटा सा मंदिर, एक तालाब, एक बड़ा मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कोई ढंग का न होटल, न पार्किंग, न पर्यटकों के बैठने का स्थान, न शौचालय की सुविधा यहाँ की स्थिति देखकर ऐसा महसूस हुआ कि रामायण काल का इतना महत्वपूर्ण स्थल, जहाँ प्रभु राम द्वारा माता अहल्या का उद्धार किया गया, वह स्थल किस प्रकार अपने उद्धार का बाट जोह रहा है..

बिस्फी अवस्थित विद्यापति के जन्म स्थल :- कवि कोकिल विद्यापति जिनके मैथिली पदावलीयों से मैथिली भाषा का विकास चौदहवीं पंद्रहवीं शताब्दी में सबसे ज्यादा हुआ, जिनके मैथिली गीत पर मिथिला समाज इतराता व गर्व करता है, उनके जन्म स्थल को जब आप देखेंगे तो भूतहा खण्डहर जैसे लगेगा। जन्म-स्थल अहाता के मुख्य गेट खोलने अगर चाभी की व्यवस्था हो गई, और फिर अहाता के अन्दर घुसेंगे तो एक कंक्रीट स्तम्भ पर विद्यापति का स्थापित मूर्ति का दर्शन होते ही स्पष्ट हो जाएगा कि यह बहुत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है एकदम अनाथ अहाता के सजावट के नाम पर लगा पेड़-पौधा को देखने से “चमन बिना माली का दृष्टिगोचर होगा। अहाता में स्थित एक छोटा रंग मंच को जब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में देखेंगे तो सिर पीटने की इच्छा होगी। इस अहाता के अंदर निर्मित विद्यापति स्मृति संग्रहालय के खालीपन व गंदगी को देख स्पष्ट होगा कि इसका व्यवस्थापक वर्ष में एक दो बार ही साफ सफाई कराता होगा।

अन्त में संग्रहालय के अंदर विद्यापति की एक दो मूर्तियाँ शिव पूजन करते देखेंगे तो कोई शंका नहीं रह जाएगा कि विद्यापति के नाथ, उगना, इन्हें छोड़कर चले गये हैं। जिस विद्यापति की पत्नी की गुस्सा व अपनी चूक से उगना रूपी शिव उन्हें छोड़कर अन्तर्ध्यान हो गए और विद्यापति शिव विछोह में फूट-फूट कर रोते हुए विश्व प्रसिद्ध गीत उगना रे मोर कतय गेला ? गाए थे, आज वे अपनी जन्म भूमि की दुर्दशा पर रोष-वश रो-रोकर गा रहे हैं। उगना रे मोर कतय गेला……?

शंकर झा

वित्त नियंत्रक ( छ.ग. वित्त सेवा)

एम.एस.सी. (कृषि अर्थशास्त्र).बी.एच.यू. वाराणसी एम.ए. (समाजशास्त्र) (कोर्स अपूर्ण)

जे.एन.यू. नई दिल्ली एल.एल.बी. रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय रायपुर (छ.ग.)

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