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बेहतर रोजी-रोटी के लिए सीखें अंग्रेजी – डॉ बीरबल झा

डेस्क : डॉ बीरबल झा का मानना है कि रोजगार पाने के लिए अंग्रेज़ी सीखना का ज्ञान जरुरी है। क्योंकि, आज के रोज़गार बाजार में अभियर्थियों के लिए स्पोकन इंग्लिश स्किल एक मापदंड बन गया है भले ही उनकी की शैक्षणिक योग्यता कितनी ही मजबूत क्यों न हो। अतएव छात्र-छात्राओं को चाहिए की एक अच्छा रोज़गार पाने के लिए वे इंग्लिश स्पिकिंग स्किल से लैस हों। इस क्षेत्र में खासकर बहुराष्ट्रीय कम्पनिया अच्छे कम्युनिकेशन स्किल वाले अभ्यर्थी को ही प्राथमिकता देते हैं। उक्त बातें देश के जाने-माने शिक्षाविद एवं अंग्रेज़ी के लेखक डॉ बीरबल झा ने एक सेमिनार में कही।

ग़ौरतलब है की शुक्रवार को पूर्णिया ज़िला के विद्या विहार इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रांगण में हिमालयन रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा आयोजित इंग्लिश फार युथ विषय पर ओपन सेमिनार को सम्बोधित करने के लिए डॉ॰ झा दिल्ली से आए हुए थे। उन्होंने अपने स्पष्ट सोच और विचार से न सिर्फ छात्रों का ज्ञानवर्धन किया, बल्कि छात्रों को प्रोत्साहित कर उन्हें भविष्य के लिए बेहतर करियर चुनने का भी सुझाव दिया। ताकि वे बेहतर नौकरी के लिए अंग्रेज़ी को चुन सकें।


डॉ झा ने आगे कहा कि पहले अंग्रेज़ी को एक औपनिवेशिक भाषा के रूप में देखा जाता था और इसी आधार पर लोहिया विचारधारा के अंतर्गत इसका विरोध होता रहा, परन्तु आज की परिस्थिति में बेहतर रोजी-रोटी के लिए बोलचाल की अंग्रेज़ी का ज्ञान पाना अनिवार्य सा हो गया है ! युवा पीढ़ी को चाहिए कि अर्थशात्र के मांग एवं पूर्ति सिद्धांत के अनरूप अपने आप को ढालें एवं वक्त के तकाजे को समझें और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खुद को हर कसौटी पर खरा उतारें।
कॉन्फ़ेड्रेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज के एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत के पागमैन के रूप में ख्याति प्राप्त डॉ बीरबल झा ने कहा अगले दस साल में 50 प्रतिशत नौकरियां अपना बजूद खो देंगी, यह देश के लिए एक चिंता का विषय है। समाधान यह है की अंग्रेज़ी आधारित आधुनिक तकनीक से जुड़ें।

1963 में पारित ऑफिसियल लैंग्वेज एक्ट को उद्धृत करते हुए डॉ झा ने कहा भारत में त्रिभाषा पद्धति लागू है जिनमें अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है इसलिए भारत जैसे विशाल बहुभाषी समाज में जहाँ 1652 भाषाएँ बोली जाती हैं में तीन भाषा का ज्ञान व्यक्ति हित एवं समाज हित में है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि स्थानीय भाषा की उपेक्षा हो। मातृ भाषा सर्वोपरि है। मगर बढ़ती अंग्रेज़ी की मांग को भी नकारा नहीं जा सकता। इस मौके पर संस्थान के सचिव राजेश मिश्रा ,निदेशक अशेश्वर यादव अदि मौजूद थे !

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