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हरतालिका तीज :: सौभाग्य की कामना का महाव्रत

डेस्क : हरतालिका तीज को बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. तीज के दिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. कुछ महिलाएं इस दौरान निर्जला व्रत रखती हैं. माना जाता है कि यह व्रत करवा चौथ के व्रत से भी ज्यादा मुश्किल होता है. इस व्रत में पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए लगभग 30 घंटों तक भूखी रहती हैं.

‘हरतालिका तीज’ का महत्त्व

भगवान शिव और पार्वती की कहानी तो आप जानते है, सती को खोने के बाद शिव ने कितने तप किये और पार्वती के रूप में सती को पाया. यह धर्मगाथा यही खत्म नहीं होती है बल्कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति पाने के लिए 107 जन्म लिए थे. इसी क्रम में मां पार्वती के कठोर तप के बाद 108वें जन्म में भगवान शिव ने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया है. वह दिन जब यह शुभ कृत्य हुआ था, उस शुभ दिन को ही हड़ताली तीज कहते कहते है, मां पार्वती के कठोर तप को देख कर इस दिन की महत्वपूर्णता इतनी बढ़ गई कि जो भी इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करेगा, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी.

इस दिन विशेष तौर पर कुवारी लड़कियां व्रत और उपासना करती है, ताकि उन्हें अच्छा वर मिले. सिर्फ इतना ही नहीं विवाहित महिलाएं भी अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए इस शुभ दिन पर पूजा अर्चना करती है. यह त्यौहार सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि पुरुष भी मां की पूजा अर्चना करते है. यदि आप भी इस दिन व्रत रख रही है, तो इसकी विधि-विधान का पूरी तरह से पालन करे.

जो महिलाएं हडतालिका तीज का व्रत रखती है, सबसे पहले नहा कर मां पार्वती की मूर्ति को रेशमी वस्त्र और गहने से सजाया जाता है. यह निर्जला व्रत होता है, इसमें पानी तक नहीं पिया जाता है. इस दिन महिलाएं दुल्हन की तरह सजती है, यहां तक कि इस दिन मेहंदी लगाना भी शुभ माना जाता है. इस दिन हड़तालिका इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि मां पार्वती की सहेली ने उस दिन उनका हरण कर लिया था.

मां पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से होने वाला था, उन्होंने अपनी तकलीफ अपनी सहेली को बताई, जिसके बाद मां पार्वती की मदद करते हुए वह उन्हें एक गुफा में ले गई, जहां मां पार्वती ने भगवान शिव का ध्यान करना शुरू कर दिया था. उनकी तपस्या से खुश हो कर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. पुरे दिन नीरजा व्रत रखने के बाद अगली सुबह नदी में शिवलिंग और पूजन सामग्री का विसर्जन करने के साथ यह व्रत पूरा होता है.

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