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कोविड टास्क फ़ोर्स में एक भी महिला सदस्य नहीं, ‘बिहार में महिलाओं की दशा व दिशा और उनका भविष्य’ विषय पर कांग्रेस की परिचर्चा में उठा कई मुद्दा

पटना ब्यूरो संजय कुमार मुनचुन : ‘बिहार में महिलाओं की दशा एवं दिशा और उनका भविष्य’ विषय पर ज़ूम के माध्यम से एक परिचर्चा बिहार कांग्रेस के रिसर्च विभाग के द्वारा आयोजित की गई।

इस परिचर्चा में भारत एवं बिहार की जाने माने जेंडर एक्सपर्ट एवं महिलाओं पर काम करनें वाले लोगों ने भाग लिया। मुख्य वक्ता के रूप में महिला सशक्तिकरण पर दिल्ली केंद्र सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति की पूर्व अध्यक्षा डा. पैम राजपूत, अखिल भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली में अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका प्रो. आशा कपूर मेहता, श्रीमति अमिता भूषण, विधायिका, एवं अध्यक्ष, महिला कांग्रेस बिहार, रजत रे, पूर्व वरिष्ठ विशेषज्ञ, यू एन एफ पी ए, नई दिल्ली, डा. शेफाली राय, विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, पटना विश्वविधालय, के कीर्ति, पूर्व निदेशक, महिला समाख्या, बिहार एवं कंट्री डाइरेकटर, कारितास, स्वीजरलैंड, सुहासनी राव, विधि विशेषज्ञ एवं कार्यपालक निदेशक, क्यूब रूट, नई दिल्ली,लेनी जाधव, राष्ट्रीय समन्वयक, रिसर्च विभाग, कांग्रेस, रश्मि झा, कन्सल्टेंट, यूनीसेफ़, प्रत्युस कुमार, वरीय अधिकारी, ऑक्सफ़ेम, बिहार एवं सौरभ कुमार सिन्हा, सचिव, रिसर्च विभाग, बिहार कांग्रेस, आदि थे। बिहार कांग्रेस रिसर्च विभाग के चेयरमैन आनन्द माधव ने इस बैठक की अध्यक्षता की।


पैम राजपूत ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि हमें उन कारणों पर भी ग़ौर करना चाहिये जिसके कारण महिलाओं ने किसी ख़ास दल को वोट दिया और कया वह पूरा हो पाया ? हम सब महिला आरक्षण की बात करते हैं लेकिन जब महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने का समय आता है तो सब गौण हो जाता। आज कोविड टास्क फ़ोर्स को ही देखिये एक भी महिला सदस्य नहीं है। वास्तव में कोई भी राजनीतिक दल महिलाओं को बहुत कुछ देनें को इच्छुक नहीं है। सभी समीतियों में, नीति निर्णय की प्रक्रिया मे आदि में पचास प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी हो। मनरेगा में भी 100 दिन महिलाओं को और 100 दिन पुरुषों को काम मिले। साथ एक परिवार से एक महिला और एक पुरुष को काम मिले यानि 50:50 प्रतिशत।

प्रो. आशा कपूर मेहता ने कहा कि महिलाओं का लेबर पार्टीसिपेशन रेट बिहार में मात्र 3 प्रतिशत है। इसे बढानें की जरुरत है।महिलाओं का स्वास्थ्य, उनमें एनिमियां कमी, स्किल वर्क में महिलाओं को शामिल करना आदि विषयो को प्राथमिकता देनी होगी। साथ ही महिलाओं के खाते में कैश ट्रांसफ़र तुरंत के तुरंत हो यह ज़रूरी है।डा. शेफाली राय ने कहा कि सिर्फ़ महिला आरक्षण का रट लगानें से कुछ नहीं होगा, राजनीतिक दलो को अपनें घर से इसकी शुरुआत करनी चाहिये। अर्थात पहले चुनाव में तैंतिस प्रतिशत महिलाओं को टिकट देना चाहिये। यहाँ लागू करनें के लिये तो कोई हाथ नहीं पकड़ रहा। उन्होंने यह भी कहा कि मैनिफ़ेस्टो के लिये जो बातें हों वह उसमें शामिल किया जाय और सरकार आने पर उसे लागू भी किया जाय।उन्होंने कहा सबसे पहले महिलाओं के लिये उचित राजनीतिक माहौल बने। रजत रे ने कहा कि, यदि हम वास्तविक परिवर्तन चाहते हैं, तो सरपंच पति के युग से महिला सरपंच तक पहुँचने के लिए बहुआयामी रणनीति तैयार करें। यदि हम ऐसा नहीं कर सकते, तो हम बहुत कुछ नहीं कर सकते।उन्होंने कहा कि जब भी हम महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों और सशक्तिकरण के बारे में बात करते हैं, हमें ग्रामीण और हाशिए की आबादी के बारे में सोचना चाहिये। हमें सक्षम शहरी शिक्षित महिलाओं को दूसरों के लिए उत्प्रेरक बनाने की आवश्यकता है।

अमिता भूषण ने कहा कि बलात्कार ख़ास कर सामूहिक बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इसपर रोक लगाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि महिलायें राजनीति में आना चाहती है पर इस पुरुष प्रधान समाज में उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता और उनका शोषण भी होता है। इसे बदलनें की आवश्यकता है। रश्मि झा का मानना है कि बिहार में जो महिलाओं की स्थिति है वह किसी से छिपी नहीं है। इसके लिये बहुत काम करनें की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जेंडर स्टडीज़ सेंटर की स्थापना हर विश्वविघालय में विधिवत हो तथा जहाँ यह चल रहा उसे सुदृढ़ किया जाय। वहाँ से निकल रहे बच्चों के राज्य में चल रहे महिला सशक्तिकरण के कार्य से जोड़ा जाय।
के कीर्ति ने इस बात पर ज़ोर देते हुयी कहा कि कोरोना काल में भी लड़कियाँ ग़ायब हो रही हैं, महिलाओं को राजनीतिक शक्ति और अधिकारिता देनें की ज़रूरत है।बिहार में महिला समाख्या को पुन: जीवित करना होगा।महिलाओं को ज़मीन और जोत पर अधिकार देना होगा। सुहासिनी राव ने कहा कि दो बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं एक वन स्टाप सेंटर का पुनर्निर्माण और दूसरा गर्भवति महिलाओं के पोषण पर ध्यान दिया जाय।

आनन्द माधव ने अपने संक्षिप्त भाषण में कहा कि इस कोरोना काल में महिलाओं के उपर दोहरी मार पड़ी है, एक तो पहले जो वो कर रही थीं उससे छुटकारा नहीं, और अब घर में सबों के चौबीस घंटे रहनें से सुबह से शाम तक उनकी फ़रमाइशों को पूरा करना साथ ही रात में बिस्तर पर भी साथ देना।भोगना महिलाओं को ही पड़ रहा। पुरुष भी जो बीमारी लेकर आ रहे हैं वह भी पहले महिलाओं को ही दे रहे।लाखों का संख्या में प्रवासी मज़दूर वापस आ रहे, जिसमें महिलाओं की संख्या भी अधिक है, ये समस्याओं की गंभीरता को और बढ़ा रहे है। हमारे इस बैठक का उद्देश्य है समस्याओं का हल ढूँढना । अंत में लेनी जाधव ने बैठक के मुख्य बिंदुओं को संक्षेपित करते हमसे धन्यवाद ज्ञापन किया।

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