डेस्क : मिथिला के गौरवशाली अतीत को संभाले प्रसिद्ध सौराठ सभा का कायाकल्प किया जाएगा। इसके लिए जिला प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है।
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डीएम शीर्षत कपिल अशोक के निर्देश पर रहिका सीओ ने सभा को बेहतर स्वरूप देने के लिए प्रस्ताव तैयार किया है। सभा को राजकीय दर्जा दिलाने से लेकर इसके सुंदरीकरण का प्रस्ताव है। एसडीओ सदर को भेजे प्रस्ताव में इस कार्य के लिए 50 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। समस्तीपुर, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, सीतामढ़ी समेत नेपाल के लोग यहां आते हैं।
सीओ के प्रस्ताव में कहा गया है इस सभा में मधुबनी के अलावा कई जिलों के मैथिल ब्राह्मण बेटा-बेटी की शादी को लेकर यहां आते हैं। माना जाता है कि यहां पंजीकार के पास वर और कन्या पक्ष की वंशावली रहती है। वे दोनों तरफ की सात पीढि़यों के उतेढ़ (विवाह का रिकॉर्ड) का मिलान करते हैं। दोनों पक्षों के उतेढ़ देखने पर यह पुष्टि हो जाती है कि दोनों परिवारों के बीच सात पीढि़यों में कोई वैवाहिक संबंध नहीं हुआ है। तब पंजीकार कहते हैं,’अधिकार होइए!’यानी पहले से रक्त संबंध नहीं है, इसलिए रिश्ता पक्का करने में कोई हर्ज नहीं। इसके लिए समस्तीपुर, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, सीतामढ़ी समेत नेपाल के लोग यहां आते हैं।
प्रस्ताव के अनुसार यहां चार एकड़ 34 डिसमिल जमीन में मंदिर, धर्मशाला, मंडप आदि धार्मिक संरचना है। इसका जीर्णोद्धार व सुंदरीकरण किया जाएगा। जिला मुख्यालय से आठ व प्रखंड मुख्यालय से तीन किमी दूर इस स्थल तक पहुंचने के लिए एसएच (स्टेट हाइवे) है। इस कारण इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। इसके अलावा नष्ट हो रहीं पंजियों का भी डिजिटाइजेशन होगा।
सभा गाछी में सभी गांव का अलग-अलग स्थान तय था। यहां वर अपने अभिभावक के साथ लाल पाग पहन कर बैठे रहते थे। कन्यागत, वर को देख उसका परिचय प्राप्त कर अपनी कन्या के लिए चुन कर विवाह के लिए ले जाते थे। उस समय खानदान का महत्व था। पैसों का नहीं। लेकिन, धीरे-धीरे दहेज का चलन शुरू हो गया। इस कारण गरीब उत्तम कुल की कन्या के विवाह में बाधा आने लगी। इससे एक गलत परंपरा की शुरूआत हुई।
वहीं सभा से पसंदीदा लड़कों का अपहरण कर जबरिया विवाह भी कराए जाने लगे। इस कारण भी वरागत यहां आने से कतराने लगे और फिर घर से ही विवाह संबंध निर्धारित करने का चलन शुरू हुआ। दहेज के विरोध में महिलाएं आने लगीं। इससे भी इसका छीजन हुआ। यह बता दें कि महिलाओं का सभा में आना वर्जित था। इन सभी के कारण यहां लोगों का आना कम से कम होता चला गया। धीरे-धीरे गत शताब्दी के अंतिम दशक आते-आते सभा में सभा अवधि में लोगों का आना कम हो गया। जिला प्रशासन के प्रयास से इसके गौरवशाली अतीत को संजोने का प्रयास शुरू किया गया है।