माल/लखनऊ (राम किशोर रावत) : जहां एक तरफ प्रदेश सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर वृक्षारोपण करती है वहीं वन विभाग व पुलिस विभाग की मिलीभगत के चलते इलाके में हरे भरे प्रतिबंधित पेड़ों को लकड़ी माफियाओं द्वारा खुलेआम चल वाया जा रहा आरा। जिसके बाद इस लकड़ी को ट्रक में लाद करके लखनऊ व सीतापुर की मंडियों में बेची जा रही है। रास्ते में दक्षिणा चढ़ाते हुए निकल जाते हैं लकड़ी माफिया। शिकायत होने पर खानापूर्ति करके वाहवाही लूटते रहते हैं जिम्मेदार।
माल इलाके के अऊमाऊ गांव निवासी बुद्धा के 13 पेड़ सागवान के व एक पेड़ कंचन का शीशम बिना परमिट के लकड़ी माफिया द्वारा खुलेआम कटवाया गया ।जिसके बाद डीसीएम में लाद कर के मंडियों में बेच दिया गया जबकि इस लकड़ी की सूचना कंचन ने माल पुलिस दी लेकिन कार्यवाही करने के बजाय गांव में ही अवैध लकड़ी से भरी डीसीएम खड़ी करके समझौता कराने में लगी रही पुलिस। जबकि पुलिस कार्यवाही करने की जरूरत ही नहीं समझी।सबसे बड़ी बात तो यह है कि माल थाने की नाक के नीचे रुदान खेड़ा स्थित पुलिस पिकेट के पास तीन हरे-भरे चौसा के प्रतिबंधित पेड़ों को बिना परमिट के लकड़ी माफियाओं द्वारा चलाया गया आरा।इस लकड़ी को डाले में लादकर माल थाने के सामने से ले जाकर कहीं सुनसान जगह पर पलट कर फिर उसके बाद मंडी से गाड़ी बुला कर लाद दिया जाता है। जिसके बाद रास्ते में चढ़ावा चढ़ाते हुए मंडी पहुंच जाते हैं लकड़ी माफिया। ऐसा ही एक मामला बबुरिहा खेड़ा गांव निवासी डॉक्टर के बाग में 15 हरे भरे प्रतिबंधित पेड़ों को लकड़ी ठेकेदारों द्वारा चलाया गया आरा।सूत्रों की मानें तो इस समय माल इलाके में आरा मशीनें पूरी तरीके से बंद होने के कारण लकड़ी माफिया मंडियों से गाड़ी को बुलवाकर जिसमें लकड़ी लादकर लखनऊ सीतापुर ले जाते हैं जिस गाड़ी का नंबर वन विभाग के अधिकारियों के जानकारी में रहता है।वहीं पुलिस भी सुविधा शुल्क लेते हुए गाड़ी को मंडी पहुंचा दिया जाता है। किसी भी लकड़ी की उच्च अधिकारियों के पास शिकायत करने के बाद खानापूर्ति करके ही ठेकेदार को बचा लिया जाता है। इस कारोबार में पुलिस 50 परसेंट अपना कमीशन लेकर हरे भरे पेड़ों को कटवा देती है वही वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के ऊपर इन हरे भरे पेड़ों देख रेख की जिम्मेदारी होने के बाद भी वह ₹500 से लेकर ₹1000 प्रति पेड़ के हिसाब से वसूल कर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं जिम्मेदार।जब रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं तो कौन करेगा इन हरे भरे पेड़ों की रखवाली।एक और खेल खेलते हैं यह वन विभाग के अधिकारी मेन रोड के किनारे आम के पेड़ों की संख्या अधिक होने पर यह वन विभाग के अधिकारी लकड़ी ठेकेदारों को दो तीन पेड़ का परमिट बनवाने को कहकर सैकड़ों हरे भरे पेड़ों को उसी परमिट के नाम पर कटवा देते हैं। डंका या पीटते रहते हैं कि उस बाग का तो परमिट है।जबकि उस बाग में कोई भी पेड़ सूखा हुआ नहीं दिखाई देता है जिसके बाद भी उन पेड़ों को सूखता हुआ दिखा कर परमिट जारी कर दिया जाता है। इतना ही नहीं इन पेड़ की शाखाओं को कटवाने के बाद फिर दो-तीन महीने में ठूठों को भी कटवा दिया जाता है।यह सब खेल पुलिस वन विभाग की मिलीभगत के चलते लकड़ी ठेकेदारों द्वारा कई वर्षों से खेलते हुए चले आ रहे हैं।
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वहीं सरकार करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद वृक्षारोपण करती है अगर समय रहते किसी भी जिम्मेदार ने इस कारोबार की ओर मुड़कर नहीं देखा गया तो मलिहाबाद फल क्षेत्र का नाम तो रहेगा लेकिन यह हरे भरे पेड़ नहीं रहेंगे।